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मिलिंद शिंदे गुट में शामिल: कांग्रेस पर क्या होगा असर, कैसा था देवरा-गांधी परिवार का संबंध?

मिलिंद कांग्रेस छोड़ने वाले उन नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हो गये हैं, जो कभी पार्टी के स्तंभ थे

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47 वर्षीय पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवरा (Milind Deora) ने रविवार (14 जनवरी) को कांग्रेस का दामन छोड़ एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना का हाथ थाम लिया. मिलिंद ने अपने दिवंगत पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता मुरली देवरा के निधन के एक दशक बाद कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया, जिससे देवरा परिवार और कांग्रेस का साथ 55 साल बाद खत्म हो गया.

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मुरली देवरा एक महान सार्वजनिक वक्ता नहीं थे, लेकिन उन्होंने सियासत में रणनीतिक सूझबूझ से अपनी जगह बनाई और पार्टी लाइनों से परे दोस्ती की, जिसके बाद उन्हें एक 'किंगमेकर' कहा जाने लगा और उन्होंने एक समय दक्षिण मुंबई को कांग्रेस के गढ़ के रूप में मजबूत किया था.

अब जब मिलिंद ने कांग्रेस के साथ अपनी यात्रा समाप्त की, यहां जानना महत्वपूर्ण हो गया कि उनका गांधी परिवार के साथ रिश्ता कितना मजबूत था और उनके जाने से पार्टी को क्या नुकसान होगा?

गांधी परिवार और देवरा का संबंध

मुरली देवरा का प्रभाव राजनीतिक हलकों से परे व्यापार जगत के शीर्ष लीडर तक फैला था. धीरूभाई अंबानी जैसी प्रमुख हस्तियों के साथ उनका रिश्ता और गांधी परिवार के प्रति अटूट निष्ठा उनके राजनीतिक व्यक्तित्व के निर्णायक पहलू बन गए. रिश्तों का यह जटिल जाल उनके अंतिम संस्कार में सामने आया, जिसमें राजनीतिक और कॉर्पोरेट क्षेत्रों के कई दिग्गज शामिल हुए.

22 साल के प्रभावशाली कार्यकाल के लिए मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहने के अलावा, मुरली देवड़ा चार बार लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा सांसद भी थे. वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में वाली केंद्र सरकार में पूरे पांच साल तक पेट्रोलियम मंत्री थे.

1968 में 25 पैसे का भुगतान कर कांग्रेस से जुड़े मुरली पूरे जीवन पार्टी के साथ गांधी परिवार के हमेशा वफादार रहे. उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा मुंबई में मेयर के रूप में शुरू की थी और बाद के दिनों में मुंबई दक्षिण को कांग्रेस का गढ़ बना दिया.

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1970 के दशक में, जब कांग्रेस को राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर असफलताओं का सामना करना पड़ा, तब देवरा एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे. शरद पवार द्वारा कराए गए टूट से जनता पार्टी के साथ प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन हुआ, जो कांग्रेस के लिए एक चुनौतीपूर्ण था. उस वक्त मुरली देवरा ने बॉम्बे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की भूमिका निभाई. इस पद पर वह दो दशकों से अधिक समय तक रहे.

उन्हें कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रधानमंत्री राजीव गांधी का भी करीबी माना जाता था.

उन्होंने कांग्रेस और मुंबई के कॉर्पोरेट वर्ग के बीच एक पुल की भूमिका निभाते हुए, पार्टी को आर्थिक मदद पहुंचाया. बिड़ला और धीरूभाई अंबानी जैसे औद्योगिक दिग्गजों के साथ उनके संबंधों ने पार्टी की वित्तीय मशीनरी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जब भी सोनिया गांधी मुंबई आती थीं, मुरली देवरा क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में लंच का आयोजन करते थे. यह एक ऐसा कार्यक्रम जिसमें पत्रकार और प्रमुख हस्तियां समान रूप से शामिल होते थे.

हालांकि, बाद के दिनों में मुरली ने मुंबई दक्षिणी सीट की कमान अपने बेटे मिलिंद को दी, जिन्होंने एक दशक जब इसका नेतृत्व किया और केंद्र सरकार में राज्यमंत्री भी बने. इसके बावजूद, पर्दे के पीछे मुरली ने अपना प्रभाव जारी रखा.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आज मुरली देवरा को एक ऐसा दिग्गज कांग्रेसी बताया जो हर बुरे वक्त में पार्टी के साथ खड़ा रहा.

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मिलिंद देवरा के जाने का क्या होगा असर?

इंडिया ब्लॉक की सदस्य कांग्रेस पहले से ही सीट शेयरिंग को लेकर परेशान है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार हो या भगवंत मान के साथ पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार, कांग्रेस का मामला हर जगह उलझा नजर आ रहा है.

वैसे भी हाल ही आए राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ के नतीजों कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है, जहां पार्टी में गुटबाजी के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा.

मिलिंद ने एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना का हाथ थामा है.

वहीं, मिलिंद कांग्रेस छोड़ने वाले उन नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हो गये हैं, जो कभी पार्टी के मजबूत स्तंभ थे, जिसमें कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सुनील जाखड़ और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता शामिल हैं.

मुंबई दक्षिण सीट वर्तमान में उद्धव ठाकरे गुट के शिवसेना सांसद अरविंद सावंत के पास है. ये सीट पार्टी और राजनीतिक गतिशीलता दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. वैसे भी मिलिंद ने दक्षिण मुंबई में कांग्रेस की रणनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनके जाने से कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई है, जिससे एक खालीपन आ गया है जिसे आगामी चुनावों में भरना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

बीते दोनों लोकसभा चुनाव में मिलिंद इस सीट पर दूसरे स्थान पर रहे थे. वहीं, अब जब वो शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं तो चुनाव से पहले पार्टी को न केवल एक अनुभवी राजनेता मिला है, बल्कि इस सीट पर उद्धव गुट को कड़ी टक्कर देने के लिए एक चेहरा भी मिल गया है.

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