तृणमूल कांग्रेस (TMC) आक्रामक रूप से विस्तार कर रही है. पिछले कुछ दिनों की बात करें तो ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC में गोवा फॉरवर्ड पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और BJP के पूर्व नेता किरण कंडोलकर, जनता दल (यूनाइटेड) JD(U) के पूर्व नेता पवन कुमार वर्मा, कांग्रेस से जननायक जनता पार्टी में गए नेता व सांसद अशोक तंवर, BJP से कांग्रेस में गए नेता कीर्ति आजाद जैसे चेहरे शामिल हुए हैं. वहीं इसके साथ ही राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण चेहरे की बात करें तो इसमें मेघालय के पूर्व CM मुकुल संगमा और मेघालय विधानसभा में कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक TMC से जुड़ गए हैं.
हाल ही में राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली में ममता बनर्जी से मुलाकात की और नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए ममता की सराहना की. इसी वजह से अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्वामी भी BJP से TMC के पाले में जाने पर विचार कर सकते हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि मेघालय का राजनीतिक घटनाक्रम सबसे महत्वपूर्ण है. इसके बाद अब जल्द ही TMC राज्य की विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन सकती है.
मेघालय के अलावा TMC से जुड़ने वाले अन्य चेहरे भले ही अभी राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण नहीं लग रहे हैं, लेकिन ये काफी दिलचस्प हैं क्योंकि वे उन राज्यों से आते हैं जहां TMC की कोई भूमिका नहीं है. वर्मा बिहार से हैं, आजाद भी बिहार से हैं, लेकिन ये पहले झारखंड और दिल्ली में चुनाव लड़ चुके हैं. वहीं 2009 से 2014 तक सिरसा से सांसद रह चुके अशोक तंवर हरियाणा से हैं. जबकि किरण कंडोलकर का मामला थोड़ा अलग है. क्योंकि TMC का यह दांव चुनावी राज्य गोवा में अचानक से पार्टी के विस्तार करने की योजना का एक हिस्सा है.
ऐसे में अब यहां विचार करने के लिए दो प्रमुख प्रश्न हैं :
क्या TMC का ये अनिश्चित विस्तार किसी तरह का पैटर्न है?
इसमें और TMC के नेशनल प्लान में क्या संबंध है?
टीएमसी का पैटर्न: चार तरह के विलय या अधिग्रहण
अन्य पार्टियों से TMC में लाने वालों को इस तरह वर्गीकृत किया जा सकता है :
1. बंगाल में 2024 के लिए घेराबंदी : ये पहले ही सबको पता है कि BJP के कई विधायकों और सांसद बाबुल सुप्रियो के दलबदल का मकसद बंगाल में TMC की पकड़ को मजबूत करना है. बंगाल के बाहर भले ही पार्टी विस्तार करे या न करे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में 35 से अधिक सीटें नहीं जीतने पर उसकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं धराशायी हो जाएंगी. इसीलिए यहां पार्टी के लिए जरूरी है कि वह राज्य में BJP के कद को कम कर दे.
2. पूर्वाेत्तर के राज्यों में विस्तार : पूर्वोत्तर में TMC के विस्तार को बाकी राज्यों से अलग माना जाना चाहिए, क्योंकि इस क्षेत्र में पार्टी की उपस्थिति पूरी तरह से नई नहीं है. TMC को पश्चिम बंगाल के अलावा मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में राज्य पार्टी के तौर पर मान्यता प्राप्त है, इसी वजह से TMC को 2016 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में मदद मिली थी.
हालांकि, त्रिपुरा जैसे राज्यों में BJP के आक्रामक विकास और बंगाल में TMC के अपने मुद्दों से पूर्वोत्तर में पार्टी (TMC) के इरादे प्रभावित हुए हैं.
TMC के प्रयासों में भी देरी हुई, क्योंकि पार्टी के क्षेत्रीय प्रभारी मुकुल रॉय ने 2017 और 2021 के बीच साढ़े तीन साल के लिए TMC का दामन छोड़कर BJP का हाथ थाम लिया था.
मेघालय और त्रिपुरा में दलबदल के साथ ही कांग्रेस नेता सुष्मिता देव को पार्टी में शामिल करना TMC की उस योजना का हिस्सा है जो इस पार्टी ने पहले के अपने विस्तार प्रयास के लिए किया था. लेकिन इस बार पार्टी (TMC) ने पहले की तुलना में बड़े पैमाने पर काम किया है.
बंगाल के बाहर TMC के चुनावी विस्तार की सबसे बड़ी संभावना वर्तमान में पूर्वोत्तर में है.
3. TMC कोर एरिया के बाहर स्थानीय नामी शख्सियत : इस वर्ग की बात करें तो इसमें गोवा में किरण कंडोलकर और उत्तर प्रदेश में ललितेश पति त्रिपाठी जैसे बड़े नाम शामिल हैं. जो भले ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध नहीं हैं लेकिन अपने-अपने क्षेत्रों में इन्हें भरपूर स्थानीय समर्थन मिलता है. पंजाब कांग्रेस के एक शीर्ष नेता जगमीत बराड़ भी शिरोमणि अकाली दल में जाने से पहले कुछ समय के लिए TMC में शामिल हुए थे.
बेशक ये स्पष्ट नहीं है कि अगर यही नेता TMC के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं तो तब भी क्या ये अपना समर्थन बरकरार रख पाएंगे कि नहीं. लेकिन इनकी मौजूदगी से TMC को कुछ जगहों पर चुनावी ताकत मिल सकती है.
अन्य दो श्रेणियों के उलट ये श्रेणी उन क्षेत्रों के लिए है, जहां TMC का कोई वास्तविक प्रभाव नहीं है. पार्टी इस मॉडल के तहत संसाधन उपलब्ध कराएगी, लेकिन चुनावी सफलता ज्यादातर इन प्रसिद्ध व्यक्तियों पर ही निर्भर होगी.
इस तरह के आंकड़े एक अन्य संदर्भ जैसे कि एक बड़े एंटी BJP गठबंधन के हिस्से के रूप में TMC के लिए प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व हासिल करने में भी प्रासंगिक हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि उत्तर प्रदेश में ललितेश पति त्रिपाठी 2024 में समाजवादी पार्टी (SP) के नेतृत्व वाले गठबंधन में TMC के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट के लिए लड़ें या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले गठबंधन में TMC के टिकट पर कीर्ति आजाद चुनावी मैदान पर उतरें. क्या संभव हो सकता है? यह बताने के लिए यहां पर यह केवल एक उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया गया है.
4. प्रतिष्ठित या महत्वपूर्ण व्यक्ति : इन लोगों को आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि उनके पास कोई चुनावी मूल्य नहीं होता है. लेकिन TMC द्वारा ऐसे व्यक्तियों को पार्टी में शामिल किया जा रहा है. क्योंकि ये महत्वपूर्ण लोग TMC को एक राष्ट्रीय ब्रांड और नेशनल रिकॉल वैल्यू के साथ एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में मदद करेंगे.
इसमें पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, अभिनेता नफीसा अली, पूर्व राजनयिक से जनता दल (यूनाइटेड) (JD-U) के नेता पवन वर्मा, सूचना का अधिकार (RTI) एक्टिविस्ट साकेत गोखले और टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस जैसी महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल हो सकती हैं. जिस तरह से कांग्रेस या BJP के पास चुनावी राजनीति से बाहर अपने संदेश को आगे बढ़ाने वाले प्रभावशाली लोग हैं ठीक वैसे ही यह प्रभावशाली लोगों का एक ईको सिस्टम बनाने का तरीका है.
एक तरह से TMC ने पश्चिम बंगाल में इस रणनीति को अपनाया हैं जहां उसने इतिहासकार सुगाता बोस, अर्थशास्त्री फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) के पूर्व महासचिव अमित मित्रा, सिंगर कबीर सुमन और एक्टर्स मिथुन चक्रवर्ती व नुसरत जहान जैसी अलग-अलग क्षेत्रों की नामी शख्सियतों को अपने साथ जोड़ने का काम किया है. इस फैक्टर ने TMC को वामपंथियों के जैसे सार्वजनिक क्षेत्र में एक प्रतिद्वंद्वी ईको सिस्टम स्थापित करने में मदद की है.
हालांकि यह भी जाहिर है कि सभी व्यक्तित्व एक समान नहीं होते हैं.
अब इनमें से कुछ हस्तियां मुख्य रूप से प्रभावित करने वालों की तरह काम करेंगीं. लोगों से TMC के बारे में उसी तरह से बात करने का प्रयास करेंगे जैसे किसी व्यवसाय का प्रभावशाली शख्स अपने ब्रांड के बारे में लोगों से बात करता है. वहीं दूसरी ओर, कुछ अन्य लोगों को भारतीय राजनीति में दो महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर्स यानी कॉरपोरेट्स और मीडिया के बीच TMC के ब्रांड को स्थापित करने जैसा एक और आवश्यक व महत्वपूर्ण काम सौंपा जाएगा.
TMC ने अपने खुद के प्रयासों और रणनीतिकार प्रशांत किशोर के माध्यम से कई उल्लेखनीय व्यक्तियों के साथ संपर्क बनाया है और आने वाले दिनों में कई और नामों के पार्टी में शामिल होने की उम्मीद है. इनमें फिल्मी हस्तियां, शिक्षाविद और एक्टिविस्ट शामिल हैं, जिनमें से कुछ किसान आंदोलन में शामिल हैं.
2024 के लिए TMC की इस रणनीति का क्या मतलब है?
वर्तमान में दो पार्टी देश में मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की स्थिति को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं, उनके नाम हैं TMC और आम आदमी पार्टी (AAP). दोनों का मानना है कि विपक्ष में एक खालीपन है जिसे कांग्रेस पूरी तरह से दूर नहीं कर पा रही है. दोनों पार्टियां इसे बहुत ही अलग-अलग नजरिए से देख रही हैं.
आंशिक तौर पर अंतर दोनों पार्टियों के अलग-अलग डीएनए से उपजा है: TMC कांग्रेस से अलग हो गई है, जबकि AAP एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का परिणाम है जो मुख्य रूप से तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को टारगेट करती है.
हालांकि, असमानता दोनों दलों के विपक्ष के वैक्यूम के अलग-अलग आकलन के कारण है.
AAP को लगता है कि वैक्यूम वैचारिक है. उसका मानना है कि BJP के सांप्रदायिक एजेंडे का विरोध करने पर ध्यान केंद्रित करने से वे उन वोटर्स से दूर हो जाएंगे जो अन्य विपक्षी दल को वोट दे सकते हैं. नतीजतन, आप के अनुसार, देश को एक ऐसी पार्टी की आवश्यकता है जो पूरी तरह से सांप्रदायिक-धर्मनिरपेक्ष बहस में बिल्कुल भी न पड़े और बजाय इसके केवल सेवा करे और लोकलुभावनवाद पर ध्यान केंद्रित करे.
AAP इसे "post-ideological populism" या "pragmatic populism." के रूप में संदर्भित करना पसंद करती है. इसकी यही रणनीति विचारधारा के मामले में इसे BJP और कांग्रेस के बीच मजबूती से स्थापित करेगी.
दूसरी ओर, TMC की जड़ें कांग्रेस पार्टी में गहराई से जुड़ी हैं. यह कांग्रेस की तरह "मुस्लिम समर्थक" पार्टी के रूप में टैग किए जाने के खतरों को समझती है, चाहे वह टैग कितना भी अनुचित क्यों न हो. लेकिन धर्मनिरपेक्षता पर वह अपने रुख को एक निश्चित बिंदु से आगे नरम करने की जरूरत महसूस नहीं करती है.
TMC के मुताबिक कांग्रेस की समस्या उसकी धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि उसका नेतृत्व है. ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व (विशेषकर राहुल गांधी) तीन प्रमुख मुद्दों- बीजेपी का डटकर मुकाबला करने के लिए राजनीतिक संकल्प की कमी, आम जनता से अलगाव और बड़े कॉरपोरेट्स के बीच एक नकारात्मक छवि से घिरा हुआ है.
ऐसा लगता है कि TMC और AAP भी अलग-अलग टाइमलाइन के साथ काम कर रही हैं.
ऐसा प्रतीत होता है कि TMC 2024 में लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है और जब तक कांग्रेस विपक्षी क्षेत्र पर हावी नहीं होना चाहती, तब तक सह-अस्तित्व यानी co-existing विचार के साथ कांग्रेस के साथ शांति महसूस कर रही है.
दूसरी ओर AAP की नजरें इस उम्मीद के साथ 2029 में टिकी हैं कि तब तक कांग्रेस का पतन हो जाएगा. इससे जिन क्षेत्रों में अभी लड़ाई कांग्रेस और BJP की है वहां कांग्रेस के पतन के बाद शून्य पैदा हो जाएगा.
मिशन 2024 की टाइमलाइन और संभावित सहयोगियों की अधिक संख्या के साथ AAP की तुलना में TMC महत्वपूर्ण रूप से आगे है.
प्रशांत किशोर ने TMC के अलावा आंध्र प्रदेश में युवजन श्रमिका रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) और तमिलनाडु में DMK के साथ सहयोग किया है. इसके बाद ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के भी निकट संपर्क में रहे हैं. पश्चिम बंगाल के चुनावों में, बनर्जी को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और RJD से समर्थन मिला, जिससे दोनों दलों के बीच कुछ गुडविल दिखाई दी है.
अगर किसी को अनुमान लगाना होता तो अगले कुछ वर्षों के लिए TMC की राणनीति इस प्रकार होगी :-
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि विलय और अन्य पार्टी के लोगों को जोड़ने के माध्यम से देश भर में जितना संभव हो उतना विस्तार करना.
अगले साल होने वाले कांग्रेस में आंतरिक चुनावों पर बारीकी से नजर रखना. इन चुनावों के परिणामस्वरूप राहुल गांधी और उनके समर्थकों के हाथों में सत्ता का एक बड़ा केंद्रीकरण होना लगभग तय है, जिससे पार्टी के भीतर फूट पड़ सकती है. सत्ता के नए समीकरणों में जो छूट गए हैं, उनके लिए TMC को चुनना आसान होगा.
यदि 2024 के चुनावों से ठीक पहले कुछ पार्टियों के साथ जनता पार्टी-शैली के विलय का एक सीमित संस्करण नहीं है तो संभव "सहयोगियों" को खुश रखने और चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने की रणनीति.
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