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चुनाव से पहले ही सपा में तेज हुआ रण, अब याचना कौन करेगा?

अब फैसला इस बात का होना है कि किस पाले में कितने दमदार खिलाड़ी खड़े हैं. 

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समाजवादी पार्टी में आपसी अहंकार का टकराव अब चरम पर पहुंच चुका है. मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और सीएम अखिलेश यादव को पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया है. अखिलेश का साथ देने वाले रामगोपाल को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का हवाला देकर निष्‍कासित कर दिया गया.

दरअसल, पिता-पुत्र यानी समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, दोनों ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की अलग-अलग सूचियां जारी कर प्रदेश की राजनीति में एक नया भूचाल पैदा कर दिया. दोनों नेता अपने रुख पर अडिग दिख रहे थे. आखिरकार शुक्रवार को समाजवादी पार्टी साफ तौर पर दो फाड़ के रास्ते पर और आगे बढ़ गई.

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दोनों गुटों की अपनी-अपनी लिस्‍ट से बढ़ा घमासान

अखिलेश यादव ने सपा सुप्रीमो और अपने पिता मुलायम सिंह यादव द्वारा विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने और टिकट वितरण में उनकी न सुनने के एक दिन बाद गुरुवार को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनिंदा 235 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी. अखिलेश को दरकिनार करते हुए मुलायम और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष शिवपाल यादव ने बुधवार को 325 उम्मीदवारों की एक लिस्ट निकाली थी. देर रात एक और सूची जारी कर दी गई थी, जिसमें 68 नाम थे. 403 विधायकों की सूची में अब बचे हैं सिर्फ 10 नाम, जिनकी घोषणा होनी बाकी है.

सपा सुप्रीमो की लिस्ट में अखिलेश समर्थकों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया. उनके करीबी मंत्री अरविन्द सिंह गोप, पवन पाण्डेय और रामगोविन्द चौधरी के अलावा पूरी यूथ ब्रगेड का इन दोनों सूचियों से पूरी तरह सफाया हो गया था.

सपा की सूचियों से नाराज अखिलेश ने तेवर दिखाए. उन्‍होंने कहा कि वे नेताजी से बात करेंगे और उनका संघर्ष जारी रहेगा. जिन विधायकों और समर्थकों के नाम पिता और चाचा की लिस्ट में नहीं थे, अखिलेश ने उनसे कमर कसकर चुनावी की तैयारी करने को कहा. स्थिति स्पष्ट है कि, याचना नहीं, अब रण होगा.

दोनों पक्षों की ओर से जारी सूचियों में 180 नाम कॉमन थे. अब फैसला इस बात का होना है कि किस पाले में कितने दमदार खिलाड़ी खड़े हैं.

उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की राजनीति अब एक बहुत अहम और रोचक मोड़ पर आ खड़ी हुई है. मुलायम सिंह यादव ने शनिवार को लखनऊ में बुलाई है. अखिलेश भी जरा सा भी झुकने को तैयार नहीं हैं. वे राजनीति के मैदान में एक परिपक्व खिलाड़ी की तरह जमे हैं. उनको भी मालूम है कि पेच पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल पर जाकर ही फंसेगा. यानी असली समाजवादी कौन और नकली कौन?

ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग के पास सिर्फ एक विकल्प बचता है. वो ये है कि वो पार्टी का सिंबल साइकिल जब्त करे और दोनों को नया चुनाव चिह्न आवंटित करे.

पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव, जो अखिलेश यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं, उनके सबसे बड़े रणनीतिकार बताये जा रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, वो चुनाव आयोग जाकर अपना होमवर्क पहले ही पूरा कर चुके हैं.

अखिलेश यादव भी पार्टी से निकाले जाने को पूरी तरह तैयार दिखाई दे रहे थे. ये बात भी तय हो गई थी कि वो किसी भी कीमत पर खुद पार्टी छोड़ने को तैयार नहीं थे. जाहिर-सी बात है कि इस तरह निकाले जाने की स्थिति में जनता की सहानुभूति उनके साथ होगी. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अंदर ही अंदर उन्होंने पहले ही अपनी चुनावी रणनीति की बिसात तैयार कर ली है.

अब देखना ये है कि‍ प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक दबदबा बनाए रखने वाली समाजवादी पार्टी में एक नए सूरज का उदय होगा या 2017 चुनावों के साथ ही एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का सूर्यास्त हो जायेगा.

(इस आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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