"मुजफ्फरनगर के जो माननीय (संजीव) बालियान जी की घर की विधानसभा है - चरथावल और बुढना, ये उन्हीं दो विधानसभाओं पर हार गए. तो उन्हें चिंतन मनन यह करना चाहिए कि घर की विधानसभाओं पर क्यों हारे."
बीजेपी (BJP) नेता और सरधना विधानसभा के पूर्व विधायक संगीत सोम का यह बयान 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद आया.
2013 में मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद से ही यह सीट बीजेपी के गढ़ की तरह गिनी जाने लगी. ऐसे में 2024 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के परिणाम बीजेपी के लिए अप्रत्याशित हैं. केंद्र सरकार में मंत्री रहे और मुजफ्फरनगर से पूर्व सांसद संजीव कुमार बालियान 24,672 वोटों से समाजवादी पार्टी (एसपी) के हरेंद्र सिंह मलिक से हार गए.
इस हार के बाद बालियान और बीजेपी के पूर्व विधायक संगीत सोम के बीच रार अब खुल कर सामने आ गई है. दोनों एक दूसरे के ऊपर हार का ठीकरा फोड़ते मीडिया के सामने हैं.
जाट लैंड में बीजेपी में बिखराव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संगीत सोम और संजीव बालियान के बीच राजनीतिक अदावत 2022 में शुरू हुई. मेरठ जिले में पड़ने वाली सरधना विधानसभा सीट मुजफ्फरनगर लोकसभा का हिस्सा है. 2012 और 2017 विधानसभा चुनाव में यहां से पार्टी के ठाकुर नेता संगीत सोम ने मजबूत जीत दर्ज की थी. उनका विजय रथ 2022 के विधानसभा चुनाव में रुका. एसपी प्रत्याशी अतुल प्रधान ने संगीत सोम को उनके गढ़ में पटखनी दी.
जाटों के बड़े नेता के रूप में गिने जाने वाले संजीव बालियान उस समय मुजफ्फरनगर के सांसद थे. आरोप यह लगा कि संजीव बालियान ने संगीत सोम को जाटों के वोट नहीं दिलाये और नतीजा यह हुआ कि सोम यह चुनाव हार गए.
2024 लोकसभा चुनाव से पहले सोम और बालियान के बीच जुबानी जंग तेज हो गई. चुनाव प्रचार के दौरान कई मौके पर दोनों नेताओं ने एक दूसरे के ऊपर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से बयानबाजी की. नतीजे आने के बाद भी यह बयानबाजी बरकरार है. मेरठ में मीडिया से मुखातिब पूर्व सांसद बालियान ने आरोप लगाया कि संगीत सोम ने समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को जिताने का काम किया है और पार्टी से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की है.
तंज कसते हुए सोम ने पलटवार किया. मीडिया में अपने बयान में कहा कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पार्टी सरधना विधानसभा में चुनाव जीत गई लेकिन बालियान अपने ही गढ़ चरथावल और बुढाना में हार गए.
मुजफ्फरनगर की हर विधानसभा में गिरा बीजेपी का ग्राफ
मुजफ्फरनगर लोकसभा की बात की जाए तो यहां पांच विधानसभा है - खतौली, बुढ़ाना, चरथावल, सरधना और मुजफ्फरनगर. 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले अगर विधानसभा वार समीक्षा की जाए तो 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का ग्राफ हर विधानसभा में गिरा है.
लेकिन बीजेपी को जो सबसे ज्यादा चोट मिली है वह सरधना विधानसभा है जहां से सोम पूर्व में विधायक रह चुके हैं. इस विधानसभा सीट पर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी संजीव बालियान को 1,17,530 वोट मिले थे जो 2024 में घटकर 80,781 रह गए. सोम अपने ऊपर चुनाव हरवाने के आरोपों पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि हिंदू वोटर्स का ना निकलना और हिंदू जातियों में बंटवारा इसका बड़ा कारण था.
बीजेपी का प्रदर्शन खतौली विधानसभा में पार्टी के आशा के अनुरूप नहीं रहा. दिसंबर 2022 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर आरएलडी के मदन भैया ने बीजेपी की राजरानी सैनी को हराया था. तब राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और एसपी ने साथ चुनाव लड़ा था. 2024 लोकसभा चुनाव में आरएलडी बीजेपी के साथ थी. इस चुनाव में खतौली विधानसभासीट 83,437 वोट मिले जो 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले 33,147 वोट कम हैं.
पार्टी की एक और पारंपरिक विधानसभा सीट बुढाना की बात की जाए तो यहां भी प्रदर्शन में गिरावट देखी गई. 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को यहां 1,16,295 वोट मिले थे जो कि इस बार घटकर 10,075 रह गए.
मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा. 2019 लोकसभा चुनाव के 1,18,101 के मुकाबले 2024 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर विधानसभा में 97,401 वोट मिले. हार की समीक्षा कर रहे बीजेपी नेता संगीत सोम ने आरएलडी पर भी निशाना साधा. अपने बयान में उन्होंने कहा की आरएलडी के बीजेपी के साथ आने के बाद भी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ और जो सीटें जीत सकते थे वहां हार गए.
बीजेपी को आरएलडी से कितना मिला फायदा?
कभी किसानों और खासकर जाटों की मांग और हितों की अगुवाई करने वाली राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अब नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) का हिस्सा है. नई सरकार में आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी अब मंत्री भी हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था और दोनों जगह जीत दर्ज की.
हालांकि जाटलैंड में, खासकर मुजफ्फरनगर में हार का ठीकरा आरएलडी के सर भी फूटता नजर आ रहा है. संगीत सोम के बयान के बाद आरएलडी कैंप में भी राजनीति पारा बढ़ा हुआ है. हालांकि किसी बड़े नेता ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
विशेषज्ञों की माने, तो आरएलडी का एनडीए गठबंधनमें शामिल हो जाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट पशोपेश में थे. किसान आंदोलन के समय आरएलडी ने मुखर होकर किसानों का पक्ष लिया और आंदोलन का हिस्सा बन रहा. इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों का भी योगदान रहा. इस आरएलडी ने बीजेपी का हाथ थाम लिया.
मेरठ के वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र प्रताप ने क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान बताया, "जाट मानते हैं कि जयंत चौधरी अपने दादा चौधरी चरण सिंह के बायोलॉजिकल वारिस हैं लेकिन उनके सिद्धांतों की विरासत हर जाट को संभालनी है. इसका असर केवल मुजफ्फरनगर ही नहीं कैराना, सहारनपुर में भी रहा. जयंत भूल गए कि शामली, मुजफ्फरनगर में 2022 विधानसभा की एकछत्र जीतों में मुसलमानों का भी हिस्सा था. यह वोट बैंक भी खिसक कर इंडिया गठबंधन की तरफ चला गया."
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में मिले झटके से जहां केंद्र और राज्य दोनों जगह नेताओं के माथे पर बल पड़ गया है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी में फूट खुलकर सामने आ गया है. कयास लगाए जा रहे हैं कि अब केंद्र में सरकार बनने के बाद संगठन और सरकार में लोकसभा चुनाव के नतीजे से प्रेरित कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
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