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यूपी चुनाव: बिहार की तर्ज पर BJP का प्रचार, नतीजों का क्या होगा?

क्या यूपी में वही हो रहा है जो बिहार चुनाव में हुआ था? लेकिन नतीजे क्या आएंगे?

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क्या आप उत्तर प्रदेश चुनाव के रंग बदलते प्रचार को ध्यान से देख रहे हैं? क्या आपने साल 2015 के बिहार चुनाव में भी दिलचस्पी दिखाई थी? अगर इन दोनों सवालों का जवाब‘हां’ है तो आपको लग रहा होगा कि भारतीय जनता पार्टी यूपी में बिहार चुनाव का रीप्ले चला रही है.

वैसे बिहार चुनाव पांच फेज में हुआ था और यूपी सात फेज में होना है लेकिन हर निपटते फेज के साथ बीजेपी की बदलती रणनीति और माहौल बिहार और यूपी चुनाव में अद्भुत समानताएं दिखा रहा है. कैसे..? जानने के लिए चलिए जरा फ्लैशबैक में.

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26 अक्टूबर 2015. बिहार में दो फेज की वोटिंग निपट चुकी थी. जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल का महागठबंधन सुर्खियां बटोर रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने बक्सर पहुंचे और आरक्षण के नाम पर हिंदू-मुस्लिम कार्ड उछाल दिया.

बात यहीं खत्म नहीं हुई. महज तीन दिन बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पूर्वी चंपारन के रक्सौल इलाके में थे.

क्या यूपी में वही हो रहा है जो बिहार चुनाव में हुआ था? लेकिन नतीजे क्या आएंगे?

चौथे फेज से पहले की अपनी उस रैली में शाह ने पीएम मोदी की लकीर को और आगे बढ़ाया और बिहार चुनाव को खींचकर पाकिस्तान ले गए.

इन दोनों बयानों ने बिहार में चुनाव का माहौल बदल दिया. महागठबंधन बनाम एनडीए, जाति बनाम विकास और बाहरी बनाम बिहारी के मुद्दों पर लड़ा जा रहा चुनाव हिंदू-मुस्लिम में तब्दील हो गया.

अब ये महज इत्तेफाक है, रणनीति,मजबूरी या फिर बीजेपी का डीएनए कि यूपी चुनाव में भी तीसरा फेज खत्म होते-होते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी‘बैक टू बेसिक्स’पहुंच गए और हिंदू-मुस्लिम कार्ड हवा में उछाल दिया.

क्या यूपी में वही हो रहा है जो बिहार चुनाव में हुआ था? लेकिन नतीजे क्या आएंगे?

खास बात ये कि पीएम की रैली के महज तीन दिन बाद, चौथे फेज के चुनाव से पहले, अमित शाह ने भी वही किया जो उन्होंने बिहार में किया था.

22 फरवरी की सुलतानपुर रैली में संसद पर हमले के गुनहगार आतंकी कसाब का नाम बीच में लाकर शाह ने यूपी चुनाव को पाकिस्तान से जोड़ दिया.

बात बयानों तक ही नहीं सिमटी. कई और वजहें भी हैं जो यूपी चुनाव में बिहार का अक्स दिखा रही हैं. याद कीजिए बिहार चुनाव से पहले देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अवॉर्ड वापसी का मुद्दा सुर्खियों में था. सोशल मीडिया में उस वक्त इसे खूब उछाला गया और बीजेपी के खिलाफ सोची-समझी साजिश बताकर राष्ट्रवाद से जोड़ा गया.

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इसी तरह दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी ABVP का हालिया बवाल खूब उछाला जा रहा है. किरण रिजिजू सरीखे केंद्रीय मंत्री इसमें कूदकर इसे हवा दे रहे हैंऔर नेरेटिव‘राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रवादी’ के खांचे में फिट करने की कोशिश की जा रही है.

क्या यूपी में वही हो रहा है जो बिहार चुनाव में हुआ था? लेकिन नतीजे क्या आएंगे?

अब आते हैं उस कार्ड पर जिसे बीजेपी अपना तुरुप का पत्ता बताती है- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां. बिहार चुनाव से पहले तय कार्यक्रम में पीएम मोदी बिहार में 20 चुनावी रैलियां करने वाले थे. लेकिन दो फेज के बाद वोटरों का रुख भांपकर पीएम की रैलियां बढ़ानी पड़ीं. कुल मिलाकर पीएम मोदी ने 31 चुनावी रैलियां कीं जिसमें से करीब आधी आखिरी तीन फेज में थीं.

इसी तरह यूपी चुनाव के लिए बीजेपी ने पीएम मोदी की 12 रैलियां मुकर्रर की गईं थीं. लेकिन चार फेज निपटने के बाद भी तस्वीर साफ नहीं है. लिहाजा पीएम मोदी यूपी चुनाव में अब करीब 21 रैलियां करेंगे. इत्तेफाक देखिये कि इनमें से भी करीब आधी आखिरी तीन फेज में होंगीं. यानी बिहार की ही तरह बीजेपी को चुनाव के आखिरी दौर में अपने स्टार प्रचारक मोदी का ही सहारा है.

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क्या यूपी में वही हो रहा है जो बिहार चुनाव में हुआ था? लेकिन नतीजे क्या आएंगे?
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लेकिन सवाल ये है कि बिहार में तो बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. फिर यूपी में उसी फॉर्मूले को भला पार्टी क्यों आजमाएगी. इसके बावजूद उसी रणनीति को क्यों अपना रही है.

दरअसल बिहार और यूपी के आखिरी फेज की सीटों के धार्मिक प्रोफाइल अलग हैं. बिहार के आखिरी दो फेज के कई जिलों में मुस्लिम और यादव आबादी ज्यादा थी. ये गठजोड़ सीधे तौर पर नितिश-लालू के महागठबंधन के पक्ष में था. लिहाजा बीजेपी का पासा उलटा पड़ गया.

लेकिन उत्तर प्रदेश में मामला उलट है. यूपी के आखिरी दो फेज की 89 सीटों पर कुल मुस्लिम आबादी 12 फीसदी से भी कम है. हिंदू-मुस्लिम दांव अगर चला तो बीजेपी के पक्ष में ही चल सकता है खिलाफ नहीं. लिहाजा चुनाव के आखिरी दौर में बिहार का नाकाम फॉर्मूला उत्तर प्रदेश में में कामयाबी का सबब भी बन सकता है. तो इंतजार कीजिए 11 मार्च को आने वाले नतीजों का.

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