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सिद्धू-धामी-चन्नी, हार गए धुरंधर, अब क्या होगा फ्यूचर?

पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह से यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं.

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पांच राज्यों के चुनावों में 4 राज्यों में बीजेपी ने फतह हासिल कर ली है, तो वहीं पंजाब में AAP की सरकार बनी है. बीजेपी लहर में कई धुरंधर ढेर हो गए, तो वहीं पंजाब में AAP की ऐसी 'झाड़ू' चली कि कई दिग्गजों का सफाया हो गया. इन नतीजों के बाद पंजाब के सीएम चन्नी से लेकर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. आखिर इन नतीजों के बाद इन नेताओं का क्या होगा?

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पंजाब विधानसभा के नतीजों ने कई दिग्गजों को ढेर कर दिया. कांग्रेस को इतनी बुरी हार मिलेगी पार्टी ने सोचा भी नहीं होगा, नवजोत सिंह, सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को ऐसी हार मिली कि उनको इससे उबरने में सालों लग जाएंगे, तो वहीं उत्तराखंड में पार्टी को जिताकर भी सीएम पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट गंवा बैठे.

नवजोत सिंह सिद्धू के साथ हो गया 'खेल'

नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Siddhu) का ज्यादातर वक्त अपनी पार्टी की आलोचना करने में ही बीता. दो बार बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचने वाले नवजोत सिंह खुद विधायकी का चुनाव ही हार गए. खुद तो हारे ही अपनी पार्टी का लुटिया भी डुबो दी. 'हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था' ये लाइन कांग्रेस के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है.

नवजोत सिंह सिद्धू पहले तो कैप्टन अमरिंदर सिंह पर अधूरे वादों और भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोलते रहे. आखिर दोनों की लड़ाई खुलकर दुनिया के सामने आ गई और बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कुर्सी गई. सिद्धू को उम्मीद थी कि सीएम का ताज उनके सिर पर सजेगा, लेकिन उनके साथ फिर खेल हो गया और चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी की गई.

इसके बाद तो चन्नी सिद्धू के निशाने पर आ गए. सीएम चन्नी की आलोचना उतनी विपक्ष ने भी नहीं की होगी, जितनी सिद्धू करते रहे. हार के बाद सिद्धू ने एक बात कही-

जिसने सिद्धू के लिए गड्ढे खोदे वे उनसे 10 गुना ज्यादा गहरे गड्ढों में दफन हो गए. कहीं से फिर शुरुआत करनी पड़ेगी, चिंता नहीं चिंतन करना पड़ेगा, फैसला जनता की अदालत में हो गया है..

सिद्धू के इस बयान से तो यही लगता है कि उन्हें अपनी हार के गम से ज्यादा खुशी साथियों की हार से मिली है, वो कहते हैं ना- 'हम तो डूबेंगे सनम, तुुमको भी ले डूबेंगे. अब देखना ये होगा कि सिद्धू का भविष्य आगे क्या होगा''.

चरणजीत सिंह चन्नी नहीं चला चमत्कार

पंजाब में चुनाव के कुछ महीने पहले ऐसा सियासी ड्रामा चला कि कांग्रेस का यहां से सफाया ही हो गया. कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदेश चुनाव के ठीक 6 महीने पहले कुर्सी से हटे और पार्टी ने चरणजीत चन्नी (Charanjeet Singh) को सीएम का ताज पहनाया. पंजाब में पहली बार किसी दलित को सीएम बनाकर कांग्रेस ने दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश भी की. सीएम चन्नी ने पद संभालते ही कई अहम फैसले भी किए, लेकिन सीएम दो जगह से चुनाव लड़े और दोनों ही सीटों से उनको करारी हार मिली.

भदौर सीट से चन्नी को लाभ सिंह ने हराया जो एक मोबाइल रिपेयरिंग की शॉप चलाते थे, उनके पिता एक ड्राइवर थे और उनकी मां सरकारी स्कूल में एक सफाई कर्मचारी थीं, वो पारंपरिक नेता भी नहीं है, फिर भी मौजूदा सीएम की इतनी बुरी हार यही बताती है कि जनता में सरकार को लेकर कितनी नाराजगी थी.

चन्नी तो अब सीएम क्या विधायक भी नहीं रहे, ऐसे में इस पूर्व सीएम के लिए आगे की रणनीति क्या होगी, ये भी एक बड़ा सवाल है.

अपना गढ़ भी नहीं बचा पाए अमरिंदर सिंह

पंजाब (Punjab) के दो बार के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बागी कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder singh) अपना किला भी नहीं बचा पाए. पटियाला सीट से पूर्व सीएम बुरी तरह हारे. अमरिंदर के लिए ये नतीजे किसी डरावने सपने से कम नहीं हैं. पहले तो कांग्रेस से विदाई और फिर अलग पार्टी पार्टी बनाई.

इस सीट पर उन्होंने 2002 से लगातार चार बार जीत हासिल की है. कैप्टन अमरिंदर को आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अजीतपाल सिंह कोहली ने हराया है. हार के बाद 79 साल के कैप्टन का करियर क्या होगा? क्योंकि 2027 के चुनाव तक उनकी उम्र 84 हो चुकी होगी.

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बीजेपी को जिताकर खुद ही हारे पुष्कर सिंह धामी

चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी ने पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) को सीएम बनाकर नया दांव खेला, बीजेपी का ये दांव काम भी आया और उसने उत्तराखंड में इतिहास रच दिया, लेकिन जिस धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया, वो खुद अपनी सीट हार बैठे. धामी ने खटीमा सीट से चुनाव लड़ा उनका मुकाबला कांग्रेस के भुवन कापड़ी से था, लेकिन यह धामी की बदकिस्मती ही कही जाएगी कि बीजेपी की लहर में भी वो अपनी सीट गंवा बैठे. अब सवाल ये है कि क्या बीजेपी धामी को सीएम बनाएगी?

पुष्कर सिंह धामी इसी सीट से 2012 और 2017 में भी चुनाव जीत चुके हैं. 45 साल के धामी के नाम उत्तराखंड के सबसे कम उम्र के सीएम का भी रिकॉर्ड है, लेकिन अब मुश्किल है कि क्या बीजेपी हारे हुए खिलाड़ी पर दांव लगाएगी.

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अखिलेश की साइकल हुई पंचर, अब किस पर होगी सवारी

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) करहल से खुद तो चुनाव जीत गए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे अखिलेश यादव को यही संदेश दे रहे हैं कि उनको अभी संघर्ष करना पड़ेगा. उनकी पार्टी बीजेपी की सुनामी के सामने ठहर नहीं पाई. अखिलेश यादव ने चुनाव में मेहनत तो बहुत की. चुनाव से ठीक पहले, बीजेपी के दिग्गज नेताओं को अपनी साइकल पर सवार भी कराया.

लेकिन उनका ये दांव ना चला, कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य की करारी हार हुई तो वहीं सहारनपुर की नकुल विधानसभा सीट पर बीजेपी छोड़कर SP में शामिल हुए सैनी को इस सीट से बीजेपी के मुकेश चौधरी ने हराया.

अखिलेश ने राजभर, पल्लवी पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य को साथ लेकर नॉन यादव ओबीसी को अपने साथ साधने की कोशिश की थी.लेकिन उनकी ये कोशिश नाकाम हुई. इस हार ने अखिलेश को सत्ता से फिर से पांच साल के लिए दूर कर दिया है. यानी अब 2027 तक अखिलेश को इंतजार करना होगा.

2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने 403 सीटों में से 224 सीटें जीतकर आराम से बहुमत हासिल किया था और अखिलेश उत्तर प्रदेश के सबसे युवा सीएम बने थे. 2017 में मोदी लहर समाजवादी पार्टी पर कहर बनकर टूटी और उनके हाथ से सत्ता चली गई.अब 2022 का मौका भी अखिलेश के हाथों से फिसल गया.

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