नीतीश कुमार मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के किसी विधायक को जगह नहीं मिली. नीतीश ने आठ नए मंत्री बनाए लेकिन सारे JDU के हैं. क्या इसका संबंध मोदी कैबिनेट में किसी JDU सांसद को जगह नहीं मिलने से है? क्या लोकसभा चुनाव खत्म होते ही JDU-BJP के रिश्तों में खटास आ गई है. और ऐसा है तो बिहार में अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले क्या बिहार में फिर कोई सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है?
कैबिनेट विस्तार में BJP नहीं
नीतीश कुमार ने बिहार सरकार की कैबिनेट में जिन नए नेताओं को शामिल किया उनमें अशोक चौधरी, श्याम रजक, एल प्रसाद, बीमा भारती, रामसेवक सिंह, संजय झा, नीरज कुमार और नरेंद्र नारायण यादव शामिल हैं. ये सारे नेता JDU के हैं. बता दें कि जेडीयू के कई विधायकों के सांसद बन जाने के बाद खाली हुए मंत्री पद भरने के लिए बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार तय माना जा रहा था.
मोदी मंत्रिमंडल में JDU नहीं
30 मई को मोदी कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह से पहले नीतीश ने बड़ा धमाका करते हुए ऐलान किया कि उनका कोई नेता केंद्रीय कैबिनेट में शामिल नहीं होगा. बाद में पता चला कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नीतीश अपने दो नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कराना चाहते थे. लेकिन बीजेपी ने एक सहयोगी-एक मंत्री की पॉलिसी को फॉलो किया. इस मुद्दे पर बीजेपी-जेडीयू के बीच तकरार तब खुलकर सामने गई जब नीतीश ने यहां तक कह दिया कि हम सरकार में सांकेतिक भागीदारी नहीं चाहते.
गठबंधन में पड़ी गांठ ?
अब जब नीतीश मंत्रिमंडल में किसी बीजेपी नेता को शामिल नहीं किया गया तो अटकलें लगने लगीं कि कहीं नीतीश केंद्र का बदला राज्य में तो नहीं ले रहे? ये कयास लग ही रहे थे कि बिहार बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट किया कि ''नीतीश कुमार ने खाली पड़े मंत्री पदों को भरने के लिए बीजेपी को प्रस्ताव दिया है. इन पदों को भरने को लेकर बीजेपी भविष्य में फैसला करेगी.''
सवाल ये है कि इसी विस्तार में बीजेपी नेताओं को कैबिनेट में शामिल करने में क्या दिक्कत थी? बीजेपी से नीतिश कैबिनेट में कौन जाएगा, इसपर क्या बिहार बीजेपी में भी कोई बवाल है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्या बात ये है कि बीजेपी बिहार मंत्रिमंडल में अपने ज्यादा नेता चाहती है और नीतीश मान नहीं रहे. ठीक उसी तरह जैसे JDU केंद्र में ज्यादा मंत्री पद चाहती थी और बीजेपी मान नहीं रही थी.?
दोनों पार्टियों के बीच खटास की एक और झलक देखिए. रविवार को JDU नेता केसी त्यागी ने कहा है कि उनकी पार्टी भविष्य में भी मोदी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनेगी? केसी ने कहा जो प्रस्ताव दिया गया था वो JDU को मंजूर नहीं था. उनका साफ इशारा पर्याप्त संख्या में मंत्री पद नहीं दिए जाने की ओर था.
फिर बदलने वाले हैं बिहार में सियासी समीकरण?
तो क्या बीजेपी और जेडीयू के जोड़ से फेविकॉल गायब हो गया है? अगले साल बिहार विधानसभा चुनावों में क्या ये दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगी? वैसे भी दोनों पार्टियों के रिश्तों में उतार चढ़ाव आते रहे हैं.
2014 लोकसभा चुनाव से पहले JDU ने NDA का साथ छोड़ा था. नीतीश को ये मंजूर नहीं था कि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए. ये वो जमाना था जब नीतीश खुलेआम मोदी की मुखालफत करते थे. 2014 लोकसभा चुनाव मेें अकेले उतरी JDU को सिर्फ दो सीटें मिलीं. 2015 के विधानसभा चुनाव में JDU, लालू की RJD के साथ मिलकर लड़ी. दोनों की बहुमत से सरकार भी बनी. लेकिन फिर नीतीश ने 2017 में पाला बदला और NDA का हिस्सा बन गए.
2014 के लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2015 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोट शेयर मिलने के बाद भी सरकार नहीं बना पाई. कोई ताज्जुब नहीं कि बीजेपी ने बैकफुट पर आकर 2019 में जेडीयू से गठबंधन किया. गठबंधन को मुमकिन बनाने के लिए BJP ने सिर्फ 17 पर चुनाव लड़ना स्वीकार किया. JDU को भी इतनी ही सीटें दीं. 2019 लोकसभा चुनाव मेें इस गठबंधन ने चमत्कार भी दिखाया.
लोकसभा चुनाव 2019 में JDU-BJP-LJP ने मिलकर 40 में से 39 सीटें जीतीं. JDU को 16 सीटें मिलीं. यानी दोनों जानते हैं कि दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत है लेकिन सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर खींचतान फिर सामने आ गई है.
फिलहाल BJP-JDU कह रही है कि गठबंधन में कोई गांठ नहीं है लेकिन पहले मोदी कैबिनेट में JDU के न होने से और अब नीतीश कैबिनेट विस्तार में BJP के नहीं होने से मामला सस्पेंस से भर गया है. अगर दोनों के बीच ये दरार बढ़ी तो 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार की राजनीति नया टर्न ले सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)