बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) प्रमुख नीतीश कुमार का 'INDIA' गुट छोड़कर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल होने का फैसला विपक्षी गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका है. 'INDIA' गुट के चेयरपर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उन्हें "उम्मीद थी कि नीतीश पाला बदल लेंगे और उनके फैसले से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ है."
हालांकि, इस पाला-बदल का विपक्षी दलों के गठबंधन 'INDIA' गुट पर हुए प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
इसके चार बुनियादी कारण हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ चले जाना, 'INDIA' गुट के लिए एक बड़ा झटका है.
1. INDIA गठबंधन के गणित का केंद्र था बिहार
बिहार में INDIA ब्लॉक को JDU, RJD, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल, सीपीआई और CPI-M के जोड़ ने पॉवरफुल फोर्स बना दिया था. ये सिर्फ पार्टियों की संख्या के कारण नहीं है बल्कि RJD के मुस्लिम और यादव आधार और नीतीश कुमार के कुर्मी, ईबीसी, एमबीसी और महादलित समर्थन का गणित है, जो 'इंडिया' गठबंधन के पक्ष में काम कर रहा था.
अब नीतीश के चले जाने के बाद, महागठबंधन एक बार फिर कांग्रेस और वामपंथी दलों के समर्थन के साथ RJD के 'एमवाई' संयोजन पर भरोसा करने लगा है.
सर्वे बिहार में 'इंडिया' गुट के लिए बड़े लाभ की भविष्यवाणी कर रहे थे. उदाहरण के लिए, एक महीने पहले के एबीपी-सीवोटर के सर्वे में इंडिया ब्लॉक के लिए 21-23 सीटें और NDA के लिए 16-18 सीटों की भविष्यवाणी की गई थी.
इससे एनडीए को 20 से अधिक सीटों का नुकसान होता, जिसके पास 2019 के लोकसभा चुनाव में (जेडी-यू सहित) 39 सीटें थीं. दूसरी ओर, यह विपक्ष के लिए भी समान लाभ था, जिसके पास 2019 में केवल 1 सीट थी.
लेकिन अब इस तरह की 20 सीटों की बढ़त का सवाल नहीं उठता. 'इंडिया' गुट के लिए समस्या यह है कि उन्हें किसी अन्य राज्य में भी इस तरह की बढ़त मिलने की संभावना नहीं है.
2. नीतीश कुमार 'इंडिया' गुट की जाति जनगणना रणनीति के चेहरा थे
सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना और 'जितनी आबादी उतना हक' का नारा 'इंडिया' गुट के प्रमुख मुद्दों में से एक है और नीतीश कुमार, कुछ मायनों में, इस मुद्दे का चेहरा थे. उन्होंने बिहार में जाति जनगणना कराई और डेटा जारी किया.
नीतीश कुमार ने एक सीएम के रूप में SC और OBC के भीतर भी अधिक पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत उप-वर्गीकरण के साथ आरक्षण लागू किया.
नीतीश कुमार के एनडीए में चले जाने से बिहार सरकार भी अब 'इंडिया' गुट के साथ नहीं है. ऐसे में इंडिया गठबंधन के लिए जाति जनगणना का श्रेय लेना मुश्किल होगा.
3. नीतीश ने 'इंडिया' गठबंधन की रखी नींव
यह याद रखना चाहिए कि विपक्षी दलों की पहली बैठक, जो आखिरकार 'इंडिया' गुट के गठन का कारण बनी, पटना में हुई थी. यह नीतीश कुमार की पहल पर हुआ.
अब नीतीश कुमार ने साथ छोड़ दिया है, ऐसे में 'इंडिया' गुट के आधार और उसके अस्तित्व पर भी सवाल उठेंगे. नीतीश की एग्जिट, ऐसे समय में हुई है जब तृणमूल कांग्रेस और AAP ने घोषणा की है कि वे क्रमशः पश्चिम बंगाल और पंजाब में अकेले चुनाव लड़ेंगे.
अब चुनाव से पहले 'इंडिया' गठबंधन का स्कोप क्या है?
महाराष्ट्र: कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (उद्धव) और प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के बीच
उत्तर प्रदेश: SP, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल
दिल्ली: AAP और कांग्रेस
तमिलनाडु, झारखंड और बिहार में मौजूदा गठबंधन
जम्मू और कश्मीर: कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और जेकेपीडीपी
4. पीएम मोदी की 'अजेयता' की धारणा को बढ़ाएगा
नीतीश कुमार का 'इंडिया' गठबंधन से बाहर जाना उन घटनाओं की श्रृंखला में तीसरी घटना है, जो 'आएगा तो मोदी ही' के नैरेटिव को बढ़ा रहा है.
सबसे पहले पिछले महीने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत हुई थी. इन सभी राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई थी और बीजेपी की जीत को एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि वह एक बार फिर इन राज्यों में लोकसभा चुनावों में 2019 की तरह जीत हासिल कर सकती है.
2018 में, वह वास्तव में तीनों राज्यों में चुनाव हार गई थी. फिर भी कुछ महीने बाद लोकसभा चुनावों में पार्टी जीत हासिल करने में कामयाब रही.
दूसरी बात, अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा. इसे देश भर के कई हिंदुओं ने बड़े उत्साह के साथ स्वीकार किया और अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. नीतीश कुमार की पारी अब एनडीए की गति को बढ़ाएगी और 'इंडिया' गुट को NDA से मुकाबला करने के लिए कुछ बड़े गेमचेंजर के साथ आना होगा.
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