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मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव: 'INDIA' ने क्यों उठाया बड़ा जोखिम?

अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा पहले से तय है, लेकिन क्या विपक्ष को इससे कुछ हासिल हो सकता है?

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विपक्षी दलों के गठबंधन 'INDIA' ने गठन के दस दिन से भी कम वक्त में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव ला दिया है. लोकसभा में पेश किए जाने के बाद सदन के अध्यक्ष ओम बिड़ला ने इसे स्वीकार कर लिया. लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि वह इस मामले पर सदन के नेताओं के साथ चर्चा करेंगे और प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तारीख और समय तय करेंगे.

अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला 26 पार्टियों वाले 'INDIA' (Indian National Developmental Inclusive Alliance) के दलों की बैठक के बाद लिया गया. इस प्रस्ताव पर शुरुआती बातचीत सोमवार को ही शुरू हो गई थी, जिसमें कांग्रेस प्रेसीडेंट मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुछ विपक्षी दलों के नेताओं को आवाज दी थी.

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इसके पीछे 'INDIA' की क्या रणनीति है?

यह एक दिलचस्प संयोग है कि आखिरी अविश्वास प्रस्ताव ठीक पांच साल पहले 2018 के मानसून सत्र में लाया गया था. उस वक्त इसकी शुरुआत तेलुगु देशम पार्टी ने की थी, जो कुछ महीने पहले ही NDA से बाहर हो गई थी.

'INDIA' गठबंधन का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन मुद्दों पर उनके आरोपों का जवाब मांगना है, जिनसे वह बचते दिख रहे हैं, खासकर मणिपुर में चल रही हिंसा के मामले पर.

यह एक जोखिम क्यों है?

इसके पीछे दो वजहें हैं. पहली- क्योंकि लोकसभा में संख्या बल विपक्ष के पक्ष में नहीं है. 'INDIA' के घटक दलों के पास लोकसभा में लगभग 141 सीटें हैं, जिनकी मौजूदा ताकत 537 है. एनडीए 320 से ऊपर है. अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा पहले से समझ आ रहा है, भले ही 'INDIA' कुछ अन्य विपक्षी दलों से समर्थन प्राप्त करने में कामयाब हो जाए.

दूसरा जोखिम जो गठबंधन उठा रहा है वह इस प्रस्ताव का गिरना है, जिसका इस्तेमाल सरकार आगे की आलोचना के लिए कर सकती है. विपक्ष के लिए तीसरी समस्या मारक क्षमता की कमी है.

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अच्छे वक्ताओं की कमी

लोकसभा के अंदर विपक्षी दलों में मारक क्षमता की भी गंभीर कमी है. मल्लिकार्जुन खड़गे और पी.चिदंबरम जैसे टॉप कांग्रेस लीडर राज्यसभा में हैं. राहुल गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया गया है और निचले सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के द्वारा गलतियां किए जाने का खतरा है.

खासकर विपक्ष के लिए हिंदी में मजबूत वक्ता खड़ा करना मुश्किल होगा. आरजेडी की सदन में कोई उपस्थिति नहीं है. एसपी के अखिलेश यादव और AAP के भगवंत मान, दोनों हिंदी में बहुत अच्छे वक्ता हैं, उन्होंने 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीटें खाली कर दीं. एक और अच्छे वक्ता, एसपी के आजम खान को भी अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

सीनियर नेताओं में जेडीयू के लल्लन सिंह, एनसीपी की सुप्रिया सुले और कांग्रेस के मनीष तिवारी हिंदी में अच्छे वक्ता हैं.

बड़े विपक्षी नेताओं के बीच अच्छे वक्ताओं की कमी मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान लोकसभा में एक समस्या रही है. सबसे बड़ा झटका असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं की ओर से लगा है, जिनकी पार्टी में केवल दो सदस्य हैं और महुआ मोइत्रा जो अपेक्षाकृत जूनियर हैं.

यदि प्रस्ताव होता है तो विपक्ष को मजबूत एनडीए लाइन-अप के खिलाफ खड़ा होना होगा, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, जिन्हें प्रस्ताव का आखिरी उत्तर देना है.

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क्या 'INDIA' को कामयाबी मिल सकती है?

  • 'INDIA' गठबंधन नंबर गेम नहीं जीत सकता लेकिन विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव से कुछ सकारात्मक नतीजों की कोशिश कर सकता है.

  • मणिपुर संकट और अन्य मुद्दों पर सरकार को घेरना.

  • कैसरगंज से बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह के सत्ता पक्ष में होने की संभावना है, इसलिए विपक्ष इस मौके का उपयोग महिला पहलवानों द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को उठाने के लिए कर सकता है.

एक असमान मीडिया परिदृश्य में जहां न्यूज चैनल सरकार के नजरिए को बेमेल कवरेज देते हैं, अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के तर्कों पर भी ध्यान केंद्रित करने के लिए एक उपयोगी मंच हो सकता है.
  • यह नवगठित 'INDIA' की एकता को मजबूत करने और इसे एक सटीक उद्देश्य के साथ एकजुट गठबंधन के रूप में प्रस्तुत करने के लिए भी एक अहम है.

  • विपक्ष मणिपुर हिंसा से ठीक से नहीं निपटने को लेकर पूर्वोत्तर में बीजेपी के सहयोगियों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर सकता है. सबसे ज्यादा फोकस मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) पर होगा, जिसका लोकसभा में एक सांसद है. मणिपुर में हमलों का सामना कर रहे कुकी-ज़ो समुदाय के प्रति मिजोरम में काफी सहानुभूति है. प्रस्ताव में सरकार के पक्ष में मतदान करने से MNF को घरेलू नुकसान हो सकता है.

  • यह प्रस्ताव भारत को TRS और BSP से सवाल पूछने में भी मदद करेगा, जो BJP विरोधी वोटों पर दावा करते हैं लेकिन अहम क्षणों में अनुपस्थित भी रहते हैं.

  • बीजेपी अपनी तरफ से इस प्रस्ताव को नवगठित विपक्षी गठबंधन में दरार पैदा करने के मौके के रूप में उपयोग करने की कोशिश कर सकती है. विशेष रूप से इसकी टारगेट लिस्ट में एनसीपी और शिवसेना-UTB के साथ-साथ जनता दल-यूनाइटेड के बचे सांसद भी होंगे.

  • वह अकाली दल, तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल-सेक्युलर जैसे पूर्व सहयोगियों को भी लुभाने की कोशिश कर सकती है.

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