हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला (OP Chautala) को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी पाये जाने के बाद 4 साल की सजा सुनाई गई है और 50 लाख का जुर्माना लगाया गया है. ओमप्रकाश चौटाला हाल ही में शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा पूरी करने के बाद जेल से बाहर आये थे. ओपी चौटाला हरियाणा की राजनीति में ऐसे नेता रहे हैं जिनका नाता शुरू से ही विवादों से रहा और अदालतों के चक्कर लगाते रहे. अब फिर उन्हें उम्र के अंतिम पड़ाव पर आकर सजा का सामना करना पड़ा है. इसकी वजह है अतीत में किये गये उनके कार्य, उनके विवाद और राजनीतिक हनक.
तो चलिए एक नजर ओमप्रकाश चौटाला के जीवन पर डालते हैं और देखते हैं कि कैसे एक उप प्रधानमंत्री का बेटा यहां तक पहुंच गया कि बुढ़ापे में सजा काटनी पड़ी और बुढ़ापे में ही पढ़ाई भी करनी पड़ी.
ओपी चौटाला पर ताजा मामला क्या है?
INLD चीफ ओमप्रकाश चौटाला को अब आय से अधिक संपत्त मामले में सजा मिली है. सीबीआई ने 2005 में उन पर ये केस दर्ज किया था. इसके पांच साल बाद 2010 में सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की. फिर जनवरी 2018 में ओपी चौटाला के बयान दर्ज किए गए. उस वक्त सीबीआई ने उनके दोनों बेटों अभय चौटाला और अजय चौटाला के खिलाफ भी आय से अधिक संपत्ति के मामले दर्ज किये थे. सीबीआई के मुताबिक, उनके बेटे अजय चौटाला के पास आय से 339 प्रतिशत अधिक संपत्ति और अभय चौटाला के पास आय से पांच गुना ज्यादा प्रॉपर्टी थी. सीबीआई ने इस पूरे केस में 106 गवाह पेश किए.
करोड़ों की संपत्ति कुर्क
आय से अधिक संपत्ति मामले में ही ईडी ने ओपी चौटाला की करीब 6 करोड़ की संपत्ति कुर्क की थी. ईडी ने दिल्ली, पंचकूला और सिरसा में ये संपत्ति सील की थी. इसके अलावा उनके फेमस तेजाखेड़ा फार्म हाउस के कुछ हिस्से को भी सील कर दिया था.
ओपी चौटाला का विवादों से पुराना नाता
घड़ियों की स्मगलिंग का आरोप
ओम प्रकाश चौटाला का राजनीतिक जीवन जितना बड़ा रहा है उतना ही विवादित भी. उनके विवादों के किस्से राजनीति में आने पहले ही शुरू हो गए थे क्योंकि ओमप्रकाश चौटाला के पिता चौधरी देवीलाल हरियाणा के बड़े नेता माने जाते थे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी उनकी पकड़ थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजनीति में आने से पहले ओपी चौटाला एक बार दिल्ली एयरपोर्ट पर गिरफ्तार हुए थे. उन्हें महंगी घड़ियों की स्मगलिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद चौधरी देवीलाल ने उन्हें घर से बेदखल भी कर दिया गया था.
महम कांड
महम हरियाणा के रोहतक जिले में पड़ने वाला एक छोटा सा कस्बा है. जो एक उपचुनाव की वजह से पूरे देश में पहचाना जाने लगा. इसी उपचुनाव से जुड़ी है ओमप्रकाश चौटाला के एक और विवाद की कहानी. दरअसल महम हरियाणा की राजनीति में बड़ा अहम है. यहां चौबीसी का चबूतरा है जहां 1857 की क्रांति के कुछ शहीद दफ्न हैं. तो हरियाणा में नेता किसी भी दल का हो यहां मत्था टेकने जरूर जाता है.
इसी महम विधानसभा सीट से 1989 में चौधरी देवीलाल विधायक थे और हरियाणा के सीएम भी. इसी साल केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और राजीव गांधी विपक्ष में बैठे. जबकि प्रधानमंत्री बने वीपी सिंह और देवीलाल के हिस्से आई उप प्रधानमंत्री की सीट. लिहाजा देवीलाल ने जिस बेटे को घर से बेदखल किया था उसी को हरियाणा के सीएम की कुर्सी सौंप दी और महम विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया.
अब बारी उपचुनाव की थी और ये महम को सेफ सीट मानकर ओपी चौटाला यहीं से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन इसमें रोड़ा बन रहे थे देवीलाल के करीबी आनंद सिंह दांगी. उनका कहना था कि महम में चौधरी देवीलाल के बाद मेरा हक बनता है. लेकिन ओपी चौटाला ने जिद पकड़ी और उसी सीट पर अड़े रहे. यहां से इस विवाद की शुरुआत हुई.
आनंद सिंह दांगी ने निर्दलीय पर्चा भरा और ओमप्रकाश चौटाला भारी भरकम सियासी रसूख लेकर मैदान में उतरे. उस चुनाव में जमकर हिंसा हुई, ओपी चौटाला के बेटे अभय चौटाला पर बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगे. लिहाजा चुनाव आयोग ने 8 बूथों पर दोबारा वोट डालने का आदेश दिया. लेकिन अगले दिन जब वोट प़ड़े तो और भी ज्यादा हिंसा हुई और पुलिस ने गोली चला दी, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई.
इसके बाद बैंसी गांव में दांगी समर्थक भीड़ भड़क उठी जिसके डर से अभय चौटाला और पुलिस एक स्कूल में जाकर छिप गए. उस स्कूल में एक कांस्टेबल हरबंस सिंह को अभय चौटाला के कपड़े पहना दिये और भीड़ ने उन्हें अभय चौटाला समझकर मार दिया. इस सब हिंसा के बाद उपचुनाव रद्द हो गए. हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट के जज ने मामले की जांच की. जिसके बाद 21 मई 1990 को दोबारा उपचुनाव कराना तय हुआ.
इस बार एक और लोकदल का नेता बागी हो गया और उपचुनाव में पर्चा भर दिया. जिसके बाद 16 मई 1990 के अमीर सिंह नाम के इस नेता की भिवानी में लाश मिली. इस हत्या का इल्जाम आनंद सिंह दांगी पर लगा, पुलिस ने दांगी को गिरफ्तार किया और मदीना ले गए. जहां दांगी समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस ने गोली चलाई और तीन लोगों की फिर मौत हो गई.
माहौल इतना खराब हो गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को दखल देना पड़ा और ओपी चौटाला से इस्तीफा ले लिया गया. फिर महम में 1991 में तीसरी बार चुनाव कराए गए और आनंद सिंह दांगी ने जीत दर्ज की. ये इतना बड़ा राजनीतिक कांड था कि हरियाणा के लोग महम कांड के नाम से आज भी सिहर उठते हैं.
जोबीटी भर्ती घोटाले में सजा
ओपी चौटाला को जूनियर शिक्षक भर्ती घोटाले (JBT Recruitment Scam) में 10 साल की सजा हुई थी. चार्जशीट के मुताबिक 3206 जूनियर बेसिक ट्रेंड टीचर्स की नियुक्ति (JBT Recruitment) में ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला (Om prakash and ajay chautala) ने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था. नियुक्तियों की दूसरी लिस्ट 18 जिलों की चयन समिति के सदस्यों और अध्यक्षों को हरियाणा भवन और चंडीगढ़ के गेस्ट हाउस में बुलाकर तैयार कराई गई. इसमें जिन अयोग्य उम्मीदवारों से पैसा मिला था. उनके नाम योग्य उम्मीदवारों की सूची में डाल दिए गए.
जोबीटी भर्ती घोटाले में कोर्ट ने कुल 55 लोगों को दोषी ठहराया था जिसमें ओपी चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल की सजा सुनाई गई थी.
ओपी चौटाला ने जेल में रहकर की पढ़ाई
ओपी चौटाला ने 2017 में तिहाड़ जेल में रहते हुए 10वीं के पेपर दिये थे. इसके बाद 87 साल की उम्र में उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास की. ओपी चौटाला के पिता हरियाणा के बड़े नेता थे फिर भी वो पढ़ाई नहीं कर पाए और अपने युवा दिनों में भी विवादों में ही घिरे रहे.
बार-बार बिखरा परिवार
चौधरी देवीलाल किसी जमाने में हरियाणा की राजनीति के धुरी हुआ करते थे. लेकिन जब राजनीतिक विरासत सौंपने की बारी आई तो 1989 में पारिवारिक जंग छिड़ गई. देवीलाल के चार बेटों में से दो ही राजनीति में सक्रिय थे. एक रणजीत चौटाला और दूसरे ओपी चौटाला. जब सत्ता ओपी चौटाला को सौंप दी गई तो रणजीत चौटाला कांग्रेस में चले गए.
सालों बाद जब ओपी चौटाला की राजनीतिक विरासत सौंपने की बारी आई तो फिर से 2019 में पारिवारिक जंग छिड़ी और ओपी चौटाला के दोनों बेटे अभय चौटाला और अजय चौटाला आमने-सामने आ गए. अभय चौटाला ने अपने बेटों के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी के नाम से अलग पार्टी बना ली और ओपी चौटाला अभय चौटाला के साथ रहे और अभी भी इनेलो के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वो लगातार कहते रहे हैं कि अजय चौटाला के परिवार को कभी माफ नहीं करेंगे. क्योंकि उन्होंने परिवार तोड़ा है लेकिन एक जमाने में उन्होंने भी वही किया था.
राजनीतिक सफर भी रहा रोचक
ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने लेकिन एक बार ही कार्यकाल पूरा कर पाए. वरना कभी कुछ दिन तो कभी कुछ हफ्ते ही कुर्सी पर टिक पाए. वो 7 बार विधायक भी रहे. उनके मुख्यमंत्री रहते राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लगा. कई पार्टियों से गठबंधन किया और कई पार्टियों में रहे भी. अंत में इंडियन नेशनल लोकदल बनाई और 2000 से 2005 के बीच पूरे पांच साल सरकार चलाई. लेकिन उनकी पार्टी और परिवार पर हमेशा गुंडई के आरोप लगते रहे.
क्या होगा INLD का भविष्य?
जब से इंडियन नेशनल लोकदल टूटा है और अजय चौटाला के बेटों ने अपनी पार्टी बनाई है तब से इनलो ने अपनी सियासी जमीन खो सी दी है. उन्हें पिछले चुनाव में मात्र एक सीट पर जीत मिली थी. वो भी ओपी चौटाला के बेटे अभय चौटाला ऐलनाबाद से जीतकर आये थे. जबकि इनेलो से टूटकर बनी जेजेपी ने दुष्यंत चौटाला की अगुवाई में 10 सीटें जीती थी और अभी दुष्यंत हरियाणा सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं. इनेलो के भविष्य पर अभी भी सवालिया निशान हैं क्योंकि ओपी चौटाला अब बूढे हो चले हैं और ऊपर से ये कोर्ट कचहरी का चक्कर. और पार्टी में नेताओं का अकाल सा पड़ गया है. अभय चौटाला के दोनों बेटे भी युवाओं के बीच कुछ खास पॉपुलर नहीं हैं. इसलिए एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर ओपी चौटाला के बाद इनेलो के लिए रास्ता बड़ा कठिन दिखता है.
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