उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के दौरान जिन सीटों पर सबसे ज्यादा रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है उनमें से एक है पीलीभीत. बीजेपी ने यहां पर सिटिंग सांसद वरुण गांधी (Varun Gandhi) का टिकट काटकर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) को मैदान में उतारा. वहीं समाजवादी पार्टी की तरफ से 5 बार के विधायक और पूर्व मंत्री भगवत शरण गंगवार मोर्चा ले रहे हैं. बीएसपी ने बीसलपुर से 3 बार के विधायक और पूर्व मंत्री अनीस अहमद खान को अपना प्रत्याशी बनाया है.
मुस्लिम और दलित बाहुल्य इस सीट पर मेनका-वरुण का कब्जा रहा है. 1996 से लेकर अब तक यह सीट मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी ही जीतते आए है. हालांकि वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद इस सीट पर जातीय समीकरण हावी है.
इतिहास और जातीय समीकरण
तकरीबन 25 लाख की जनसंख्या वाली पीलीभीत लोकसभा सीट पर:
5 लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं.
पिछड़ों में गिने जाने वाले लोध किसान मतदाताओं की संख्या 3 लाख से ज्यादा है.
इसके अलावा ढाई लाख कुर्मी मतदाता समीकरण बनाने और बिगड़ने का दमखम रखते हैं.
इस सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या 2 लाख से ज्यादा है.
1989 में जनता दल के टिकट पर इस सीट पर मेनका गांधी ने जीत दर्ज की थी. मंदिर आंदोलन के दौरान परशुराम गंगवार ने इस सीट पर मेनका गांधी को शिकस्त दी थी. हालांकि इसके बाद पीलीभीत सीट पर मेनका- वरुण का एकक्षत्र राज रहा.
इस सीट से मेनका गांधी छः बार तो वही उनके बेटे वरुण गांधी दो बार सांसद रहे.
मेनका- वरुण के दबदबे के सामने जाति समीकरण इस सीट पर हावी नहीं हो पाया. हालांकि वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद यहां जाति की राजनीति फिर सक्रिय हो गई है.
पूरे प्रदेश की बात करें तो पीलीभीत में सबसे ज्यादा ढाई लाख कुर्मी मतदाता इस लोकसभा क्षेत्र में हैं. एसपी ने कुर्मी प्रत्याशी भगवत सरण गंगवार को मैदान में उतार कर बीजेपी की राह में कांटे बिछा दिए है. बीएसपी की तरफ से अनीस अहमद खान प्रत्याशी है और अगर समीकरण की बात करें तो इससे बीजपी को फायदा होता नजर आ रहा है.
2014 लोकसभा चुनाव में एसपी के उम्मीदवार बुद्धसेन वर्मा को 2,39,882 मत प्राप्त हुए थे वहीं बीएसपी उम्मीदवार अनीस अहमद खान को 1,96,294 वोट मिले थे.
5 साल बाद 2019 लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी के गठबंधन प्रत्याशी हेमराज वर्मा को 4,48,922 वोट मिले थे. इन नतीजे से एक बात तो साफ है कि एसपी और बीएसपी के गठबंधन से मुस्लिम वोटों को बंटने से रोक लिया गया था. इस बार एसपी और बीएसपी फिर अलग चुनाव लड़ रहे हैं और इसमें मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा है.
मंत्री vs पूर्व मंत्री
शाहजहांपुर और धारौरा से सांसद रहे जितिन प्रसाद कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी के ऊपर कई मौकों पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगता आया है और ऐसे में जितिन प्रसाद के आने के बाद पार्टी को एक मजबूत ब्राह्मण चेहरा मिल गया.
जितिन प्रसाद की अहमियत को समझते हुए उनका कद बढ़ाया गया और यूपी कैबिनेट में बतौर मंत्री शामिल किया गया. पार्टी ने अब इनको पारंपरिक शाहजहांपुर सीट के बजाय पीलीभीत से अपना उम्मीदवार बनाया है.
पीलीभीत लोकसभा सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 50 से 60 हजार के बीच है जिनमें जितिन प्रसाद के पक्ष में समीकरण मोड़ने का संख्या बल नहीं है. ऐसे में जितिन प्रसाद की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनके पक्ष में नजर आ रही है. जितिन प्रसाद के पिता कुंवर जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के बड़े नेता थे. वह चार बार शाहजहांपुर लोकसभा सीट से सांसद रहे. कांग्रेस की पूर्व की सरकारों में मंत्री पद के अलावा संगठन में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं. जीतेंद्र प्रसाद का शाहजहांपुर और पीलीभीत समेत आसपास के तराई इलाकों में अच्छा राजनीतिक प्रभाव रहा है जिसको अब उनके बेटे जितिन प्रसाद भुनाने की कोशिश करेंगे.
अगर एसपी की बात करें तो पार्टी ने:
बरेली की नवाबगंज सीट से पांच बार की विधायक और पूर्व मंत्री भगवत शरण गंगवार को उनके पारंपरिक बरेली सीट के बजाय पीलीभीत से प्रत्याशी बनाया है.
2019 लोकसभा चुनाव में एसपी ने भगवत शरण गंगवार को बरेली लोकसभा सीट से उतरा था. यहां उन्हें बीजेपी प्रत्याशी संतोष गंगवार के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
एसपी-कांग्रेस गठबंधन ने बरेली लोकसभा सीट से प्रवीण सिंह ऐरन को मौका दिया है और भगवत शरण गंगवार को पड़ोस की पीलीभीत लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया.
बीएसपी की तरफ से बीसलपुर से तीन बार के विधायक और पूर्व मंत्री अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू एक बार फिर पीलीभीत लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. 1998 से लेकर 2014 तक अनीस अहमद बीएसपी के टिकट पर चार बार सांसदी का चुनाव लड़े लेकिन जीत का स्वाद नही चख पाये.
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