भारतीय राजनीति में आरक्षण आंदोलन हमेशा से सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक रहा है. अनिवार्य रूप से, आरक्षण के दावों को लेकर होने वाले आंदोलन अक्सर चुनावी नतीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भरतपुर और धौलपुर जिलों में जाट समुदाय द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण की मांग पूर्वी राजस्थान के चुनावी समीकरण में एक शक्तिशाली फैक्टर के रूप में उभरी है.
भरतपुर और धौलपुर के जाट केंद्रीय ओबीसी सूची में खुद को शामिल करने को लेकर दबाव बनाने के लिए जनवरी से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की "डबल इंजन सरकार" वादे के बावजूद कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है. जिससे जाट अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
राजस्थान में चुनाव बमुश्किल एक पखवाड़े दूर है. सभी पार्टियां अपने जातिगत गणित को दुरुस्त कर रही हैं - और इन गणनाओं में जाट प्रमुखता से शामिल हैं. लेकिन समुदाय के एक बड़े हिस्से द्वारा गंगा जल की शपथ लेकर बीजेपी का विरोध करने से पूर्वी राजस्थान में भगवा ब्रिगेड का काम कठिन हो गया है.
आरक्षण के आधार पर जाटों के साथ भेदभाव
हाल के समय में, जाटों ने पूर्वी राजस्थान के गांवों में बीजेपी के खिलाफ "ऑपरेशन गंगाजल" शुरू किया है, जिसमें तीन महत्वपूर्ण लोकसभा सीटें - भरतपुर, करौली-धौलपुर और अलवर शामिल हैं. इस अभियान के तहत, जाट नेता गांवों में विशेष बैठकें कर रहे हैं, जहां वो लोगों से गंगा जल की शपथ लेकर बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील कर रहे हैं.
भरतपुर और धौलपुर के जाटों के लिए ओबीसी आरक्षण की मांग लंबे समय से लंबित है. भले ही जाटों को 1999 में ओबीसी का दर्जा मिल गया था, लेकिन इन दोनों जिलों में समुदाय को यह तर्क देकर कोटा लाभ से वंचित कर दिया गया कि वो इन क्षेत्रों में बहुत पहले शासक थे और इसलिए उन्हें इसका फायदा नहीं मिल सकता.
भरतपुर शहर की स्थापना 17वीं सदी के जाट शासक महाराजा सूरजमल ने की थी और उनके उत्तराधिकारियों ने 1947 तक इस क्षेत्र पर शासन किया. इसी तरह, धौलपुर साम्राज्य की स्थापना 18वीं शताब्दी में जाट शासकों द्वारा की गई थी और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, धौलपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य हैं.
OBC आरक्षण के इस इनकार को देखते हुए, भरतपुर और धौलपुर के बड़े पैमाने पर कृषि प्रधान जाट समुदाय ने अक्सर ओबीसी श्रेणी में शामिल किए जाने के लिए आंदोलन किया है. उनका तर्क है कि उनके सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को देखते हुए, उन्हें ओबीसी कोटा से वंचित करना बहुत बड़ा अन्याय है. हालांकि राज्य स्तर पर OBC आरक्षण जल्द ही मिल गया, लेकिन दोनों जिलों के जाटों को केंद्रीय स्तर पर इससे बाहर रखा गया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जाटों से OBC का लाभ छिन गया
2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने भरतपुर और धौलपुर में जाटों को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी आरक्षण दिया था.
हालांकि, उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई और साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची से हटाने का फैसला किया. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2021 में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर दोनों जिलों में जाटों के लिए ओबीसी कोटा की मांग की थी, लेकिन केंद्र की बीजेपी सरकार यह महत्वपूर्ण आरक्षण प्रदान करने में विफल रही है.
परिणामस्वरूप, इन दोनों जिलों के जाटों को केंद्र सरकार के तहत ओबीसी कोटा का लाभ नहीं मिलता है जो उनके समुदाय को राजस्थान के अन्य हिस्सों में मिलता है.
पिछले दिसंबर में राजस्थान में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद, जाट अपनी मांगों को लेकर जनवरी में भरतपुर के एक गांव में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. कुछ हफ्तों के बाद नए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, जो कि भरतपुर से हैं, उनके द्वारा सकारात्मक कार्रवाई के आश्वासन के बाद जाटों ने धरना खत्म किया.
एक विशेष समिति का गठन किया गया था और जाट नेताओं ने केंद्रीय मंत्रियों के साथ भी चर्चा की थी, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. इस क्षेत्र के नाराज जाट अब बीजेपी पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं.
जाटों का बीजेपी विरोधी अभियान जोर पकड़ रहा
चूंकि लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले जाटों को आरक्षण नहीं मिला, इसलिए भरतपुर-धौलपुर जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने मार्च के मध्य में एक विशेष बैठक की, जिसमें पूर्वी राजस्थान के पंच पटेलों की भारी भागीदारी देखने को मिली.
सभा ने आगामी चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए "ऑपरेशन गंगाजल" शुरू करने का निर्णय लिया.
भगवा ब्रिगेड पर जाटों को धोखा देने का आरोप लगाते हुए, भरतपुर की सभी आठ विधानसभा सीटों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ अन्य जातियों के नेताओं ने इस बैठक में न केवल भरतपुर बल्कि करौली-धौलपुर और अलवर लोकसभा सीटों पर बीजेपी को कमजोर करने के लिए अपने अभियान का विस्तार करने का निर्णय लिया.
"ऑपरेशन गंगाजल" को तेज करने के लिए, जाटों ने 300 से अधिक समर्पित सदस्यों की एक शीर्ष समिति बनाई है और सभी पंचायत मुख्यालयों पर 11 सदस्यीय समितियां स्थापित की हैं. ये समितियां बीजेपी के खिलाफ गांवों में प्रचार कर रही हैं.
जाट आरक्षण संघर्ष समिति के सदस्य अनगिनत गांवों/घरों का दौरा करते हैं. वो लोगों से ओबीसी कोटा पर भरतपुर-धौलपुर के जाटों को धोखा देने के लिए बीजेपी को वोट न देने के लिए कह रहे हैं.
जमीनी स्तर के एक उल्लेखनीय प्रयास में जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता बड़े पैमाने पर पंचायत सभाएं आयोजित कर रहे हैं जहां मतदाता बीजेपी का विरोध करने के लिए गंगा जल के साथ शपथ ले रहे हैं. जनता का समर्थन जुटाने के लिए भरतपुर और आसपास के जिलों में स्पष्ट संदेश के साथ हजारों पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं: "आरक्षण के नाम पर बीजेपी ने जाटों को धोखा दिया है. इस बार वोट की ताकत से बीजेपी को हराना है."
प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन बना जाटों और बीजेपी के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई का प्रतीक
चुनावी मौसम में जाट नेता स्पष्ट रूप से धार्मिक महत्व से जुड़े प्रतीकात्मक चीजों का सहारा ले रहे हैं. हिंदू परंपरा में पवित्र माने जाने वाले गंगा जल के साथ शपथ लेना विरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया है.
अपने आरक्षण आंदोलन को धार्मिक प्रतीकों से जोड़कर, जाट नेता अपने समुदाय को एकजुट कर रहे हैं और बड़े समाज से समर्थन जुटा रहे हैं, जो बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है.
जैसे-जैसे "ऑपरेशन गंगाजल" गति पकड़ रहा है, यह राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. चूंकि भरतपुर भजनलाल का गृह क्षेत्र है, ऐसे में इसका बहुत बड़ा राजनीतिक महत्व है. मुख्यमंत्री अपने गृह क्षेत्र में हार का जोखिम नहीं उठा सकते, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था.
हालांकि, 2008 के परिसीमन के बाद से भरतपुर एक एससी सीट है. परंपरागत रूप से जाट बहुल इस क्षेत्र में समुदाय बड़ा वोट बैंक है जो सीधे तौर पर नतीजों को प्रभावित करता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस उम्मीदवार संजना जाटव ने जाटों का समर्थन किया है. पार्टी को उम्मीद है कि प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी भरतपुर सीट पर बीजेपी मात देगी.
भरतपुर के अलावा, "ऑपरेशन गंगाजल" का असर करौली-धौलपुर सीट पर भी पड़ सकता है, जहां जाट मतदाताओं की बड़ी संख्या है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. वर्तमान में यहां कि 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा है. जिसके बाद कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ गई हैं.
यह आंदोलन अलवर की चुनावी लड़ाई पर भी बड़ा असर डाल सकता है, जहां बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव कांग्रेस के ललित यादव के खिलाफ अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. जैसे ही जाटों ने भरतपुर की सीमा से लगे गांवों में इस अभियान को तेज किया, वैसे ही भूपेन्द्र यादव की चुनौतियां बढ़ गई हैं.
अपने मौजूदा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए, बीजेपी ने इन तीन सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन जाटों की नाराजगी अब बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गई है.
अभी इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि इस अभियान का प्रभाव कितना गहरा होगा, लेकिन "ऑपरेशन गंगाजल" स्पष्ट रूप से राजस्थान में लोकसभा लड़ाई के सबसे आकर्षक पहलुओं में से एक बन गया है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडल @rajanmahan हैं. यह एक ओपिनियन लेख है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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