प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) गुजरात में दो दिन के दौरे पर हैं. पहले दिन उन्होंने राजकोट में एक मल्टीस्पेशिएल्टी हॉस्पिटल (Multi Specialty Hospital) का शुभारंभ किया और लोगों को संबोधित किया.
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की यह यात्रा आने वाले गुजरात विधानसभा चुनावों के अभियान को तेज करने के लिए है. प्रधानमंत्री के भाषण से भी गरीबों, महिलाओं और प्रदेश के कुछ प्रभावी समुदायों और वर्गों को साधने की कोशिश दिखाई दी. साथ ही प्रधानमंत्री कोरोना (Covid-19) में अपनी सरकार के प्रशासन को बेहतर बताकर डैमेज कंट्रोल करते हुए भी नजर आए.
प्रधानमंत्री के भाषण की मुख्य बातें
कोरोना में जब खाद्यान्न की कमी आई थी तो सरकार ने खाद्यान्न भंडारों के दरवाजे खोल दिए थे. साथ ही मुफ्त गैस व सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई थीं.
जब इलाज की चुनौती बढ़ गई, तो हमने टेस्टिंग और ट्रीटमेंट सुविधाएं गरीबों के लिए आसान करवा दीं. जब वैक्सीन आईं, तो हमने सभी भारतीयों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाई.
पहले उद्योग धंधे वडोदरा से वापी के बीच केंद्रित थे, लेकिन अब मध्यम और लघु धंधे पूरे गुजरात में फैले हैं.
गुजरात के लोगों को बुलेट ट्रेन से मिलेगा लाभ. बंदरगाहों के विकास के लिए हाइवे अच्छी कनेक्टिविटी उपलब्ध करवाएंगे.
सौराष्ट्र और कच्छ में फॉर्मा उद्योग को बहुत बल मिला है. पहले सौराष्ट्र से पलायन होता था, अब लोग यहां आते हैं. डबल इंजन की सरकार ने गुजरात के विकास को बहुत बल दिया है.
पाटीदारों को साधने की कोशिश
पीएम ने जिस अस्पताल का उद्घाटन किया वो सरदार पटेल सेवा समाज नाम के संगठन ने बनवाया है. पीएम के कार्यक्रम में समाज से जुड़े लोगों को भारी संख्या में बुला गया. इसी क्रम में माना जा रहा है कि बड़े पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को बीजेपी साथ चुकी है. हार्दिक कांग्रेस छोड़ चुके हैं लेकिन अभी उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि उनके बयानों से साफ नजर आ रहा है कि वो AAP के बजाय बीजेपी को चुनेंगे.
गुजरात में बीजेपी की चुनौतियां
पिछली बार गिरा था ग्राफ
पिछली बार बीजेपी को भारी नुकसान हुआ था. 2012 के चुनाव बीजेपी राज्य की 182 में से 115 सीटों पर जीती थी, यह आंकड़ा 2017 में कम होकर 99 सीटों पर गया था. जबकि कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
ऊपर से बीजेपी 2014 के बाद से बीते 8 सालों में 3 मुख्यमंत्री बदल चुकी है. ऐसे में भरोसे की कमी कहीं ना कहीं नजर आई है.
मजबूत होती आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी का भी हाल के समय में जोरदार उभार हुआ है. नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर अलग-अलग नगर निगमों में 13 से 21 फीसदी पहुंच गया था.
कोरोना की नाराजगी
इसके अलावा गुजरात में कोरोना के चलते भी काफी नुकसान हुआ था, लोगों में नाराजगी बढ़ी थी, जिसे दूर करने में बीजेपी कितनी कामयाब रही है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
पाटीदार राजनीति फिर केंद्र में, नरेश पटेल बन सकते हैं चुनौती
बीजेपी के खराब प्रदर्शन के पीछे 2017 में बहुत हद तक पाटीदारों की नाराजगी को जिम्मेदार बताया गया था. आमतौर पर पाटीदार बीजेपी समर्थक वर्ग माना जाता रहा है. लेकिन पाटीदार आंदोलन के चलते बीजेपी की इस वर्ग में पैठ कमजोर हुई थी. उस आंदोलन से उभरे बड़े नेता हार्दिक पटेल भी कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
बता दें पाटीदारों की राज्य में करीब 12 फीसदी आबादी मानी जाती है. पिछली विधानसभा में सभी दलों से मिलाकर 51 पाटीदार विधायक थे. राज्य में आर्थिक-सामाजिक तौर पर उन्हें सबसे ज्यादा मजबूत वर्गों में गिना जाता है.
लेकिन पाटीदारों की नाराजगी को दूर करने के लिए इस बार बीजेपी ने पाटीदार समाज से ही भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था. पर ऐसा लगता है कि बीजेपी की चुनौतियां पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्टों की मानें, तो पाटीदार समाज के बड़े नेता नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं.
हालांकि उन्होंने अभी अंतिम फैसला नहीं लिया है, बतौर नरेश पटेल वे मई तक इस बारे में आखिरी फैसला करेंगे. पटेल श्री खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. बता दें नरेश पटेल को कांग्रेस, AAP और बीजेपी तीनों की तरफ से न्योता था. नरेश पटेल ने लेउवा पाटीदारों का मजबूत संगठन खड़ा किया है.
बीजेपी के पक्ष में भी हैं कुछ बातें
लेकिन इस बार पाटीदार आंदोलन का असर थोड़ा कम समझ में आ रहा है, हार्दिक पटेल भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं.
हार्दिक के साथ ही गुजरात में अल्पेश ठाकोर का भी उभार हुआ था. 2017 में वे कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. फिलहाल वे राधनपुर से बीजेपी का टिकट मांग रहे हैं. ऐसे में बीते कुछ सालों में बीजेपी के खिलाफ खड़े हुए मजबूत प्रतिद्वंदी खत्म भी हो रहे हैं.
इसके अलावा जिग्नेश मेवाणी भी हार्दिक और अल्पेश के साथ तस्वीर में आए थे. वे अब भी कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन उन्हें कई तरह की कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
कुल मिलाकर सीएम भूपेंद्र पटेल को कम वक्त मिला, ऐसे में उनकी राह कठिन तो हो सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री अपनी लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं के दम पर उनकी नैया पार लगवाने की पूरी कोशिश करेंगे, जिसकी शुरुआत आज हो भी चुकी है.
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