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लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां इन्फ्लुएंसर्स को क्यों लुभा रही हैं?

“सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स प्रभावी ढंग से ओपिनियन बना सकते हैं और राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटा सकते हैं"

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में शुक्रवार, 8 मार्च को पहले नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड्स (National Creators Awards) बांटें. 20 कैटेगरी में 1,50,000 से अधिक क्रिएटर्स को नॉमिनेट किया गया था. डिजिटल क्रिएटर्स के लिए वोटिंग स्टेज में लगभग 10 लाख वोट पड़े. आखिर में 23 विजेताओं को चुना गया, जिनमें से तीन विदेशी क्रिएटर थे.

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भारत मंडपम में पीएम मोदी ने कहा, ''अगले कुछ दिनों में लोकसभा चुनाव होंगे. यह मत सोचिए कि यह कार्यक्रम उसके लिए है.'' भीड़ का एक हिस्सा इस समय नारे लगा रही थी कि ''अबकी बार, 400 पार''. पीएम मोदी ने आगे कहा, "और मैं गारंटी देता हूं कि अगर संभव हुआ तो अगली शिवरात्रि पर भी, या किसी दूसरी तारीख पर, इस कार्यक्रम को मेरे द्वारा ही अंजाम दिया जाएगा."

रणवीर अल्लाहबादिया बीयर बाइसेप्स को बेस्ट डिसरप्टर ऑफ द ईयर, मल्हार कलांबे को स्वच्छता एंबेसडर अवार्ड, कबिताज किचन फेम कबिता सिंह को फूड कैटेगरी में बेस्ट क्रिएटर, कर्ली टेल्स के नाम से मशहूर कामिया जानी को बेस्ट ट्रेवल क्रिएटर और अंकित बैयानपुरिया को बेस्ट हेल्थ एंड फिटनेस क्रिएटर पुरस्कार मिले हैं.

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'इन्फ्लुएंसर युग' का उदय

नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड्स की मेजबानी यह संकेत देती है कि कैसे डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स का प्रभाव बढ़ रहा है और साथ ही लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है.

महाराष्ट्र में बीजेपी की चुनाव मैनेजमेंट टीम के सदस्य देवांग दवे कहते हैं, “इस पहल को सार्वजनिक जुड़ाव और प्रचार के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों को अपनाने की एक व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है. यह शासन के लिए एक आधुनिक दृष्टिकोण को दर्शाता है जो नवाचार और प्रत्यक्ष संचार चैनलों को महत्व देता है."

लेकिन सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर से राजनीतिक दलों को क्या फायदा?

डेव का मानना ​​है: “सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की क्षमता होती है लोगों की ओपिनियन को आकार देने की, व्यापक दर्शकों के साथ जुड़ने की और नैरेटिव को आगे बढ़ाने की. यही उन्हें हमारे चुनावी कैंपेन में महत्वपूर्ण बनाती है. वे 2024 के चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं.

"इन्फ्लुएंसर्स राजनीतिक संदेश में प्रामाणिकता और प्रासंगिकता ला सकते हैं, जनता के हर तबके तक पहुंच सकते हैं जो पारंपरिक मीडिया कभी-कभी नहीं कर सकता."
देवांग दवे, महाराष्ट्र में बीजेपी की चुनाव मैनेजमेंट टीम के सदस्य

विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, डेव कहते हैं, "इन्फ्लुएंसर्स मतदाताओं के साथ अधिक प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत संबंध प्रदान कर सकते हैं, वे अक्सर ऐसा पारंपरिक मीडिया के पहारदारों को बाईपास करके ऐसा करते हैं. यह ट्रेंड पत्रकारिता के महत्व को कम नहीं करती है बल्कि इसे पूरक बनाती है".

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2 अक्टूबर, 2023 को पीएम मोदी ने हरियाणा के सोशल मीडिया फिटनेस इन्फ्लुएंसर अंकित बैयानपुरिया से मुलाकात की. बैयानपुरिया प्रधानमंत्री के स्वच्छता ही सेवा अभियान के 'श्रमदान' कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रधानमंत्री ने एक्स (पहले ट्विटर) पर अपना एक वीडियो शेयर किया और लिखा, “आज, जब देश स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, अंकित बैयनपुरिया और मैंने भी वही किया! स्वच्छता से बढ़कर, हमने इसमें फिटनेस और खुशहाली को भी शामिल किया है. यह सब स्वच्छ और स्वस्थ भारत की भावना के बारे में है!”

“सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स प्रभावी ढंग से ओपिनियन बना सकते हैं और राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटा सकते हैं"

अंकित बैयनपुरिया के साथ पीएम मोदी

(फोटो- @नरेंद्रमोदी/एक्स)

लेकिन ऐसा सिर्फ बीजेपी नहीं कर रही है. यहां तक ​​कि कांग्रेस ने भी इन्फ्लुएंसर्स की ताकत का फायदा उठाने की कोशिश की है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान ट्रैवल यूट्यूबर कामिया जानी को एक इंटरव्यू दिया था. इससे पहले उन्होंने यूट्यूब पर विलेज कुकिंग चैनल के साथ एक वीडियो में भी दिखे थे.

“सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स प्रभावी ढंग से ओपिनियन बना सकते हैं और राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटा सकते हैं"

विलेज कुकिंग चैनल के साथ राहुल गांधी।

(विलेज कुकिंग चैनल/यूट्यूब से स्क्रीनशॉट)

कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टी के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का महत्व और भी अधिक है.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव आशीष दुआ के अनुसार, “चुनाव एक युद्ध है जिसे सभी मोर्चों पर लड़ा जाना है; सोशल मीडिया एक बहुत ही दृश्यमान मोर्चा है, और विशेष रूप से ऐसे समय में जब मुख्यधारा के मीडिया ने एक कोणीय रुख अपनाया है, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर इसका मुकाबला किया जाना चाहिए."

आशीष दुआ कहते हैं, ''लक्ष्य हर माध्यम को प्रभावित करना है।''

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'इन्फ्लुएंसर्स' वास्तव में कितने प्रभावशाली हैं?

भारत में दुनिया के सबसे अधिक YouTube सब्सक्राइबर हैं. यहां 462 मिलियन यूजर्स इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बढ़ते उपयोग और डिजिटल संचार चैनलों की शक्ति के कारण इन्फ्लुएंसर्स अब आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंच रहे हैं और उन्हें प्रभावित कर रहे हैं.

जुलाई 2023 में, वैश्विक डेटा और बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म स्टेटिस्टा द्वारा की गयी एक रिसर्च में कहा गया है कि 2022 तक, भारत में इन्फ्लुएंसर मार्केंटिंग इंडस्ट्री का मूल्य 12 अरब भारतीय रुपये से अधिक था. 2026 तक इस मार्केट का बाजार मूल्य 28 अरब भारतीय रुपये होने का अनुमान है.

हालांकि, एक्सपर्ट्स राजनीतिक संदर्भ में इन्फ्लुएंसर्स के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर बताने को लेकर चेतावनी देते हैं. उनका तर्क है कि कंटेंट क्रिएटर्स नैरेटिव को आकर देने और टोन सेट करने में मदद कर सकते हैं लेकिन एक बिंदु से आगे जाकर चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकते. लोग अभी भी समाचार देखेंगे, जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका समाधान चाहेंगे और उसके आधार पर वोट डालेंगे.

'WTF is' पॉडकास्ट के डायरेक्टर बिलाल जलील, जिसके यूट्यूब पर लगभग 7 लाख सब्सक्राइबर हैं, का कहना है कि कंटेंट क्रिएटर्स वास्तव में "हार्ड कोर विषयों" में नहीं पड़ते हैं.

“जब कंटेंट क्रिएटर राजनेताओं के साथ बातचीत करते हैं, तो बातचीत मुख्य रूप से हार्ड कोर सब्जेक्ट को संबोधित करने के बजाय हल्की-फुल्की होती है. इन्फ्लुएंसर्स को ब्रांड बनाने का प्रयास करते हैं, वे राजनीतिक रूप से इतने जागरूक नहीं हैं क्योंकि उनके लिए यह सब सिर्फ व्यूज/नंबर और उनके कंटेंट के प्रचार के बारे में है."
बिलाल जलील, 'WTF is' पॉडकास्ट के डायरेक्टर

जलील कहते हैं, "जिस गंभीरता से लोग ऐसी कंटेंट को देखते हैं उसका स्तर कम हो गया है और इसके बारे में संदेह की भावना है."

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इस संदर्भ में, इन्फ्लुएंसर्स के भीतर की विविधता को समझना महत्वपूर्ण है.

मोटे तौर पर, एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह होता है जो अपने फॉलोवर्स को उनके द्वारा सुझाए गए प्रोडक्ट्स या सर्विस को खरीदने के लिए राजी कर सकता है. उन्हें उनके फॉलोविंग (पहुंच) और एंगेजमेंट के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है.

सोशल बीट में मैनेजर - ग्रोथ एंड कस्टमर सक्सेस, प्रीति कुलकर्णी इस वर्गीकरण के बारे बताती हैं:

“नैनो इन्फ्लुएंसर आमतौर पर वे होते हैं जिनके 20,000 या उससे कम फॉलोवर होते हैं. 1 लाख या उससे कम फॉलोवर वाले माइक्रो इन्फ्लुएंसर होते हैं. मैक्रो इन्फ्लुएंसर आमतौर पर एक लाख से पांच लाख फॉलोवर के बीच होते हैं. अंत में सेलिब्रिटी इन्फ्लुएंसर अपने क्षेत्र पर निर्भर होते हैं लेकिन आमतौर पर जिनके 6 लाख या उससे अधिक फॉलोवर होते हैं."

2023 के मध्य प्रदेश चुनावों में राजनीतिक सलाहकार/ कंसल्टेंट के रूप में काम करने वाले यश मिश्रा कहते हैं कि कई फैक्टर हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि कंटेंट क्रिएटर्स किस हद तक राजनीतिक प्रभाव डाल सकते हैं.

उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स प्रभावी ढंग से ओपिनियन बना सकते हैं और राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटा सकते हैं क्योंकि आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा युवा लोगों से बना है. हालांकि, इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव कई अन्य फैक्टर्स से भी प्रभावित होगा, जिसमें उनकी पहुंच, विश्वसनीयता और राजनीतिक दलों द्वारा उनके साथ बातचीत करने के लिए अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण शामिल हैं."

इन्फ्लुएंसर्स और राजनीति के बीच इंटरफेस के बारे में बात करते समय अक्सर जो बात छूट जाती है, वह है कंटेंट क्रिएटर्स पर बड़े राजनीतिक संदर्भ का प्रभाव. इन्फ्लुएंसर्स अक्सर विशेष विचारधाराओं से जुड़े होते हैं और अपने दर्शकों को कुछ राजनीतिक इकोसिस्टम से प्राप्त करते हैं. इसलिए, राजनीतिक दलों और नेताओं के साथ जुड़कर उन्हें भी अपना ऑडियंस बनाने के मामले में काफी फायदा होता है.

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