वीडियो एडिटर: मो इब्राहिम
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
लोकसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में चुनावी खुन्नस ने अब खूनी रूप अख्तियार कर लिया है. राजनीति की जुबानी लड़ाई चुनाव खत्म होते ही जानलेवा बन चुकी है. विरोधियों को चुन-चुनकर ठिकाने लगाया जा रहा है. चुनावी नतीजों के साथ ही एक हफ्ते के अंदर यूपी में अलग-अलग पार्टियों के आधा दर्जन से अधिक नेताओं की हत्या हो चुकी है.
मारे जाने वालों में सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी के नेता हैं. इन घटनाओं के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल न टूटे लिहाजा स्मृति ईरानी से लेकर अखिलेश यादव तक मृतकों के घर पहुंच रहे हैं.
अमेठी में स्मृति ईरानी के करीबी की हत्या
हत्या का सिलसिला शुरू हुआ अमेठी से, अमेठी जो देश की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है. यहां कई दशक बाद कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है. राहुल गांधी को हरा कर स्मृति ईरानी ने कमल खिलाया है.
जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल था लेकिन जीत की खुशी बहुत समय तक टिक नही पाई. क्योंकि स्मृति ईरानी के बेहद करीबी सुरेंद्र सिंह की उसी रात यानी कि 24 मई को गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्या का कारण क्या था ये जांच के बाद पता चलेगा, लेकिन कांग्रेसी नेता के खिलाफ एफआईआर हुई है. इसलिए इसे राजनीतिक हत्या करार दिया जा रहा है और खुद स्मृति ईरानी भी शव यात्रा में शामिल हुई थीं.
इसके साथ ही 25 मई की रात में हापुड़ में भी बीजेपी नेता चंद्रपाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. चन्द्रपाल बीजेपी के पन्ना प्रमुख बताए जा रहे हैं.
ये घटनाएं सिर्फ एक जिले तक सीमित नहीं रहीं. बात करते हैं गाजीपुर की जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटा हुआ जिला है. मोदी के करीबी और पूर्व रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को इस बार यहां से हार का सामना करना पड़ा.
गाजीपुर में 25 मई की रात एसपी के जिला पंचायत सदस्य विजय यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. घटना के वक्त वह अपने दरवाजे पर दोस्तों के साथ बातचीत कर रहे थे.
गाजीपुर से सटे जौनपुर में भी 31 मई को सराय ख्वाजा इलाके में एसपी नेता लालजी यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. एसपी नेता सुबह स्कूल के बाहर अपनी कार में बैठकर बात कर रहे थे तभी बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. लालजी यादव पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव के करीबी थे.
पूरी यूपी में हो रही हैं राजनीतिक हत्याएं
हत्याओं का ये दौर सिर्फ पूर्वांचल तक ही सीमित नहीं रहा. 29 मई को बिजनौर में बहुजन समाज पार्टी के विधानसभा क्षेत्र प्रभारी एहसान अहमद और उनके भांजे शादाब की गोली मारकर हत्या कर दी गई. दिन दहाड़े हुए इस डबल मर्डर से बिजनौर थर्रा गया. बड़ी बात यह है कि इस घटना को बीएसपी नेता एहसान के ऑफिस में घुस कर अंजाम दिया गया, वो भी बड़े ही फिल्मी अंदाज में. हत्यारे बीएसपी की जीत की बधाई देने मिठाई के डिब्बे में पिस्टल लेकर उनके दफ्तर में पहुंचे थे.
31 मई को ही दूसरी घटना दिल्ली से सटे गौतमबुद्धनगर में हुई. जहां दादरी विधानसभा के एसपी अध्यक्ष रामतेग कटारिया की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
वैसे इसके पहले भी चुनाव के बाद यूपी में अपराध बढ़ने का ट्रेंड देखा गया है लेकिन सिर्फ ग्राम पंचायत के चुनावों में. जहां ‘वन टू वन’ वोटिंग होती है. यानी कि वोटों की संख्या उम्मीदवारों की उंगलियों पर होती है और उन्हें मालूम हो ही जाता है कि कौन वोट दे रहा है और कौन नही. चूंकि ग्राम प्रधान का चुनाव बहुत ही छोटे दायरे में होता है, और ये फायदे से ज्यादा सम्मान से जुड़ा होता है. इसलिए जुबानी लड़ाई गोली तक पहुंच जाती है. लेकिन लोकसभा या विधान सभा के चुनाव अभी तक यूपी में इससे बचे थे.
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