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महाराष्ट्र: प्रकाश अंबेडकर MVA गठबंधन को नकार 'एकला चले', कांग्रेस-NCP को कितना देंगे डेंट?

प्रकाश अंबेडकर ने MVA से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है और 9 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में डॉ भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर (Prakash Ambedkar) ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी वंचित बहुजन आघाडी (VBA), लोक सभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) अकेले लड़ेगी. साथ ही उन्होंने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.

अंबेडकर की यह घोषणा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से नाता तोड़ने के कुछ दिनों बाद आई है. उस समय VBA प्रमुख ने महा विकास अघाड़ी गठबंधन को 26 मार्च तक सीट-बंटवारे की बातचीत पूरी करने का अल्टीमेटम दिया था.

इसके बाद ये साफ हो गया है कि VBA अब महा विकास अघाड़ी (शिवसेना (UBT), कांग्रेस, शरद पवार की NCP का गठबंधन) का हिस्सा नहीं बनेगी.

महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर का अकेले चुनाव लड़ना क्या MVA के लिए दिक्कत बनेगा? क्या VBA कांग्रेस और एनसीपी को टक्कर दे सकती है? और प्रकाश अंबेडकर महाराष्ट्र की राजनीति में कितनी ताकत रखते हैं? चलिए समझते हैं.

महाराष्ट्र: प्रकाश अंबेडकर MVA गठबंधन को नकार 'एकला चले', कांग्रेस-NCP को कितना देंगे डेंट?

  1. 1. प्रकाश अंबेडकर अकेले लड़ेंगे चुनाव: 9 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान  

    महाराष्ट्र में शिवसेना (UBT) के बाद वंचित बहुजन अघाडी (VBA) के प्रमुख प्रकाश अंबेडकर ने भी लोकसभा चुनाव के लिए 9 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. प्रकाश अंबेडकर खुद अकोला सीट से चुनाव लड़ेंगे.

    • वर्धा से राजेंद्र सालुंके

    • भंडारा-गोंदिया से संजय केवट

    • गढ़चिरौली-चिमूर से हितेश मडावी

    • बुलढाणा से वसंत मगर

    • अमरावती से कुमारी पिल्लेवान

    • यवतमाल-वाशिम से खेमसिंग पवार

    • चंद्रपुर से राजेश बेले

    रामटेक सीट से उम्मीदवार की घोषणा भी जल्द की जाएगी. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो प्रकाश अंबेडकर को MVA गठबंधन में केवल एक सीट दी जा रही थी जबकि अंबेडकर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे. इसी के बाद उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है.

    बता दें कि 2019 में हुए महाराष्ट्र के लोकसभा (48 सीटें) और विधानसभा (288 सीटें) चुनावों में अंबेडकर की पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी.
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  2. 2. MVA से क्यों नहीं हो पाया गठबंधन: कांग्रेस और NCP के साथ खराब रिश्ते

    जाहिर तौर पर अंबेडकर ज्यादा सीटों की मांग तो कर ही रहे थे, लेकिन इसके अलावा प्रकाश आंबडेकर के कांग्रेस और एनसीपी के साथ अच्छे संबंध नहीं रहे हैं.

    द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक में कांग्रेस से अलग होने के बाद जब पवार एनसीपी के प्रमुख थे, तो उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) और उसके नेता रामदास अठावले के साथ गठबंधन किया था, जिसे कई लोगों ने उस समय प्रकाश अंबेडकर की लोकप्रियता का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा. प्रकाश आंबेडर ने तब राज्य की राजनीतिक में एक महत्वपूर्ण जगह बना ली थी.

    अंबेडकर 1990-1996 तक राज्यसभा पहुंच चुके हैं. वे दो बार अकोला से लोकसभा सांसद (1998-2004) भी रह चुके हैं. हालांकि इसके बाद वे कोई चुनाव नहीं जीते.

    पिछले दो दशकों से प्रकाश अंबेडकर का एनसीपी और कांग्रेस के साथ समीकरण ठीक नहीं रहा. पिछले एक साल में, उनके कांग्रेस और एनसीपी और इसके वरिष्ठ नेताओं पर ऐसे बयान आए जो MVA को रास नहीं आए. जैसे पिछले साल की शुरुआत में उन्होंने पवार को 'बीजेपी' का आदमी कहा था.

    पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स को लगता है कि चूंकि कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति में OBC और पिछड़े वर्गों की बात कर रही है, ऐसे में प्रकाश अंबेडकर की MVA में एंट्री से INDIA ब्लॉक अपने इस नैरेटिव को मजबूत कर सकता था क्योंकि विपक्षी खेमा यह कह सकता था कि ‘बाबासाहेब के पोते’ उसके साथ हैं.

    2019 में महाराष्ट्र के इतिहास में राज्य में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. वहीं अगर वीबीए को गठबंधन में शामिल किया जाता तो कांग्रेस और एनसीपी के बीच सीट-बंटवारे का फॉर्मूले और कठिनाई से होता, क्योंकि कांग्रेस भी खुद 48 सीटों में से एक और एनसीपी चार सीटों पर जीत पाई थी.

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  3. 3. प्रकाश अंबेडकर की ताकत: कांग्रेस और NCP को दे सकती है कड़ी टक्कर 

    चलिए अब ये समझते हैं कि प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वीबीए चुनावी मैदान पर कितनी दमदार हैं?

    हालांकि वीबीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती थी, लेकिन पार्टी को लोकसभा में 6.92% और विधानसभा चुनाव में 4.58% वोट मिला था.

    चलिए अब ऐसे ही आंकड़ों पर नजर डालते हैं जो बताते हैं कि प्रकाश अंबेडकर और उनकी पार्टी खेल बनाने और बिगाड़ने में बड़ी ताकत है.

    2019 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर विपक्षी वोटों को बांटने के लिए कांग्रेस ने प्रकाश अंबेडकर को दोषी ठहराया था. अशोक चव्हाण ने 2019 में नांदेड़ से अपनी हार के लिए सार्वजनिक रूप से वीबीए को जिम्मेदार ठहराया था. चव्हाण बीजेपी के प्रताप पाटिल चिखलीकर से 42,000 से अधिक वोटों से चुनाव हार गए थे, वीबीए उम्मीदवार यशपाल भिंगे को नांदेड़ में करीब 1.62 लाख वोट मिले थे.

    अगर आप 2019 के परिणामों का बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो ऐसी कई सीटें देखने को मिलेंगी जहां वीबीए को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पर एनडीए की जीत के अंतर से अधिक वोट मिले: बुलढाणा, अकोला, गढ़चिरौली-चिमूर, नांदेड़ और परभणी.

    वहीं कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगर वीबीए नहीं होती तो नंदुरबार, रामटेक, यवतमाल-वाशिम, शिरडी, उस्मानाबाद और माधा जैसी सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती थी या कम अंतर से हार सकती थी.

    अब अगर वीबीए महाराष्ट्र में एमवीए के साथ गठबंधन नहीं कर पाया और वीबीए का प्रदर्शन चुनाव में इसी तरह का रहता है तो एक बार फिर मोदी लहर में कांग्रेस-एनसीपी की झोली में सीटों के आंकड़ों की घटने की संभावना बहुत ज्यादा है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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प्रकाश अंबेडकर अकेले लड़ेंगे चुनाव: 9 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान  

महाराष्ट्र में शिवसेना (UBT) के बाद वंचित बहुजन अघाडी (VBA) के प्रमुख प्रकाश अंबेडकर ने भी लोकसभा चुनाव के लिए 9 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. प्रकाश अंबेडकर खुद अकोला सीट से चुनाव लड़ेंगे.

  • वर्धा से राजेंद्र सालुंके

  • भंडारा-गोंदिया से संजय केवट

  • गढ़चिरौली-चिमूर से हितेश मडावी

  • बुलढाणा से वसंत मगर

  • अमरावती से कुमारी पिल्लेवान

  • यवतमाल-वाशिम से खेमसिंग पवार

  • चंद्रपुर से राजेश बेले

रामटेक सीट से उम्मीदवार की घोषणा भी जल्द की जाएगी. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो प्रकाश अंबेडकर को MVA गठबंधन में केवल एक सीट दी जा रही थी जबकि अंबेडकर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे. इसी के बाद उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है.

बता दें कि 2019 में हुए महाराष्ट्र के लोकसभा (48 सीटें) और विधानसभा (288 सीटें) चुनावों में अंबेडकर की पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी.
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MVA से क्यों नहीं हो पाया गठबंधन: कांग्रेस और NCP के साथ खराब रिश्ते

जाहिर तौर पर अंबेडकर ज्यादा सीटों की मांग तो कर ही रहे थे, लेकिन इसके अलावा प्रकाश आंबडेकर के कांग्रेस और एनसीपी के साथ अच्छे संबंध नहीं रहे हैं.

द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक में कांग्रेस से अलग होने के बाद जब पवार एनसीपी के प्रमुख थे, तो उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) और उसके नेता रामदास अठावले के साथ गठबंधन किया था, जिसे कई लोगों ने उस समय प्रकाश अंबेडकर की लोकप्रियता का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा. प्रकाश आंबेडर ने तब राज्य की राजनीतिक में एक महत्वपूर्ण जगह बना ली थी.

अंबेडकर 1990-1996 तक राज्यसभा पहुंच चुके हैं. वे दो बार अकोला से लोकसभा सांसद (1998-2004) भी रह चुके हैं. हालांकि इसके बाद वे कोई चुनाव नहीं जीते.

पिछले दो दशकों से प्रकाश अंबेडकर का एनसीपी और कांग्रेस के साथ समीकरण ठीक नहीं रहा. पिछले एक साल में, उनके कांग्रेस और एनसीपी और इसके वरिष्ठ नेताओं पर ऐसे बयान आए जो MVA को रास नहीं आए. जैसे पिछले साल की शुरुआत में उन्होंने पवार को 'बीजेपी' का आदमी कहा था.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स को लगता है कि चूंकि कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति में OBC और पिछड़े वर्गों की बात कर रही है, ऐसे में प्रकाश अंबेडकर की MVA में एंट्री से INDIA ब्लॉक अपने इस नैरेटिव को मजबूत कर सकता था क्योंकि विपक्षी खेमा यह कह सकता था कि ‘बाबासाहेब के पोते’ उसके साथ हैं.

2019 में महाराष्ट्र के इतिहास में राज्य में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. वहीं अगर वीबीए को गठबंधन में शामिल किया जाता तो कांग्रेस और एनसीपी के बीच सीट-बंटवारे का फॉर्मूले और कठिनाई से होता, क्योंकि कांग्रेस भी खुद 48 सीटों में से एक और एनसीपी चार सीटों पर जीत पाई थी.

प्रकाश अंबेडकर की ताकत: कांग्रेस और NCP को दे सकती है कड़ी टक्कर 

चलिए अब ये समझते हैं कि प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वीबीए चुनावी मैदान पर कितनी दमदार हैं?

हालांकि वीबीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती थी, लेकिन पार्टी को लोकसभा में 6.92% और विधानसभा चुनाव में 4.58% वोट मिला था.

चलिए अब ऐसे ही आंकड़ों पर नजर डालते हैं जो बताते हैं कि प्रकाश अंबेडकर और उनकी पार्टी खेल बनाने और बिगाड़ने में बड़ी ताकत है.

2019 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर विपक्षी वोटों को बांटने के लिए कांग्रेस ने प्रकाश अंबेडकर को दोषी ठहराया था. अशोक चव्हाण ने 2019 में नांदेड़ से अपनी हार के लिए सार्वजनिक रूप से वीबीए को जिम्मेदार ठहराया था. चव्हाण बीजेपी के प्रताप पाटिल चिखलीकर से 42,000 से अधिक वोटों से चुनाव हार गए थे, वीबीए उम्मीदवार यशपाल भिंगे को नांदेड़ में करीब 1.62 लाख वोट मिले थे.

अगर आप 2019 के परिणामों का बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो ऐसी कई सीटें देखने को मिलेंगी जहां वीबीए को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पर एनडीए की जीत के अंतर से अधिक वोट मिले: बुलढाणा, अकोला, गढ़चिरौली-चिमूर, नांदेड़ और परभणी.

वहीं कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगर वीबीए नहीं होती तो नंदुरबार, रामटेक, यवतमाल-वाशिम, शिरडी, उस्मानाबाद और माधा जैसी सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती थी या कम अंतर से हार सकती थी.

अब अगर वीबीए महाराष्ट्र में एमवीए के साथ गठबंधन नहीं कर पाया और वीबीए का प्रदर्शन चुनाव में इसी तरह का रहता है तो एक बार फिर मोदी लहर में कांग्रेस-एनसीपी की झोली में सीटों के आंकड़ों की घटने की संभावना बहुत ज्यादा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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