ADVERTISEMENTREMOVE AD

किसान आंदोलन: हरियाणा की राजनीति में भूचाल, दबाव में दुष्यंत-खट्टर

किसान आंदोलन के बीच हरियाणा की राजनीति में आखिर चल क्या रहा है?

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

किसान आंदोलन के कारण हरियाणा में दुष्यंत चौटाला पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है और प्रेशर का असर खट्टर सरकार पर भी है...विधायक पद से अभय चौटाला के इस्तीफे ने आग में घी डालने का काम किया है. हरियाणा की राजनीति में क्या चल रहा है उसका सुराग पाने के लिए वहां की कुछ हालिया सुर्खियों पर गौर कीजिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
  • दुष्यंत के भाई दिग्विजय सिंह ने राकेश टिकैत को सच्चा देशभक्त बताया है.
  • जिस जींद में दुष्यंत की पार्टी जेजेपी का गठन हुआ वहां 24 दिसंबर को डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला का कार्यक्रम था, लेकिन उनके आने से पहले ही किसानों ने हैलीपैड को फावड़े से खोद दिया. किसानों ने कहा, जब तक किसानों का समर्थन नहीं करते, तब तक क्षेत्र में घुसने नहीं देंगे.
  • जिस जींद में दुष्यंत की पार्टी जेजेपी का गठन हुआ, वहीं की खाप ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की बात कही थी.
  • नारनौंद से जेजेपी विधायक राम कुमार लगातार दुष्यंत चौटाला के खिलाफ बयान देते रहे हैं. अभय चौटाला के इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि अभय दोबारा चुनाव लड़ेंगे तो कौम मालामाल कर देगी. उन्होंने अपने बयानों में कहा भी है कि कृषि कानूनों को रद्द करना चाहिए.
  • आंदोलन के बीच हरियाणा में निकाय चुनाव हुए, जिसमें सत्ताधारी बीजेपी-जेजेपी को शिकस्त मिली. बीजेपी अपने गढ़ अंबाला में भी मेयर पद का चुनाव हार गई.
  • किसानों के समर्थन में 1 दिसंबर को दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया.
  • गणतंत्र दिवस पर हरियाणा के कई जिलों में किसानों ने ऐलान किया कि किसी भी मंत्री या नेता को ध्वजारोहण नहीं करने देंगे, जिसके बाद सीएम मनोहर लाल खट्टर ने पानीपत में ध्वजारोहरण का कार्यक्रम रद्द कर दिया. वहीं दुष्यंत चौटाला सहित कई मंत्रियों ने अपने कार्यक्रम में बदलाव किए.
  • किसान इस कदर गुस्सा हैं कि विरोध की वजह से सीएम मनोहर लाल खट्टर को पहले से तय किसान पंचायत बैठक रद्द करनी पड़ी. किसानों ने कहा कि नकली किसानों को बुलाकर पंचायत का दिखावा करने से क्या फायदा होगा.

किसानों का दबाव और ताऊ का झटका

अपनी जमीन खोने के डर से जेजेपी विधायकों ने दुष्यंत चौटाला से मुलाकात कर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की थी. इसके बाद दुष्यंत चौटाला अमित शाह से मिलने दिल्ली गए. दरअसल दुष्यंत पर अपने परदादा देवीलाल की किसानों से जुड़ी पहचान और विरासत को संभालने का दबाव है. देवीलाल किसान, मजदूरों और गरीबों की आवाज बुलंद करने वाले नेता के रूप में जाने गए. यही उनकी पहचान बनी और इसी की बदौलत वह हरियाणा के सीएम से लेकर देश के डिप्टी पीएम तक बने.

अभी की परिस्थिति ये है कि दुष्यंत चौटाला बीजेपी के साथ मिलकर हरियाणा में सरकार चला रहे हैं, लेकिन मुश्किल इतनी भर नहीं है. दुष्यंत चौटाला के चाचा और इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) अभय सिंह चौटाला किसानों के समर्थन में विधायक पद से इस्तीफा देकर हीरो बन गए हैं. वे हरियाणा के 90 सदस्यीय सदन के इकलौते और पहले विधायक हैं, जिन्होंने किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दिया. अभय चौटाला का इस्तीफा दुष्यंत के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. साल 2019 में किसानों और जाटों का जो वोट अभय की पार्टी से छिटककर दुष्यंत को मिला, अब डर है कि इस्तीफे के बाद वह जनाधार फिर से अभय के पास जा सकता है. इसे समझने के लिए हरियाणा राजनीति के कुछ पुराने पन्ने पलटने होंगे.

हरियाणा की राजनीति में देवीलाल बड़ा नाम रहे हैं. वह किसान आंदोलन से निकले. पार्टी का नाम भारतीय लोकदल था, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (आईएनएलडी) बनी. वह दो बार हरियाणा के सीएम और एक बार डिप्टी पीएम रहे. राजनीतिक विरासत देवीलाल से बेटे ओमप्रकाश के पास आई. ओमप्रकाश चौटाला के दो बेटे अजय और अभय चौटाला हैं. दुष्यंत, अजय चौटाला के बड़े बेटे हैं. साल 2014 में इस परिवार में फूट पड़ने लगी.

साल 2013 में एक घोटाले में अजय चौटाला को 10 साल की जेल हो गई. 2014 में विधानसभा चुनाव हुआ और आईएनएलडी सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई. अभय चौटाला को विपक्ष का नेता बनाया और यहीं से परिवार में फूट पड़ने लगी. अभय ने अपने बड़े भाई अजय चौटाला की प्राथमिक सदस्यता रद्द कर दी. तब अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत और अभय चौटाला में ठन गई. 2018 में सोनीपत में एक रैली हुई और वहां भीड़ में कुछ लोगों ने अभय चौटाला के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. दुष्यंत को सीएम बनाने के नारे लगाने लगे. कहा जाता है कि दुष्यंत और उनके भाई दिग्विजय की आईएनएलडी से जुड़े युवाओं में अच्छी पकड़ थी और यही वजह थी कि पूरा खेल पलट गया. लेकिन नारेबाजी का रिएक्शन ये हुआ कि पहले दुष्यंत और दिग्विजय और बाद में अजय चौटाला को पार्टी से निकाल दिया गया.

जींद में 9 दिसंबर 2018 को अजय चौटाला ने जननायक पार्टी (जेजेपी) का गठन किया. जेजेपी बनने के साथ ही देवीलाल की पार्टी इनेलो में फूट पड़ गई. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कई विधायक आईएनएलडी छोड़कर जेजेपी और बीजेपी में चले गए. धीरे-धीरे आईएनएलडी की साख गिरती गई. 2019 के चुनाव में आईएनएलडी से सिर्फ एक विधायक अभय चौटाला ही जीत सके, जबकि नई पार्टी जेजेपी ने दुष्यंत के नेतृत्व में 10 सीट जीती और बीजेपी के साथ सरकार बना ली. अब इस्तीफा देकर अभय ने फिर से किसानों को अपनी तरफ खींचने का दांव चला है.

2019 में दुष्यंत की पार्टी जेजेपी को सबसे ज्यादा ग्राणीण और किसानों का समर्थन मिला. अब वह बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं, लेकिन खुलकर किसानों के स्टैंड के साथ खड़े नजर नहीं आ रहे. ऐसे में उनकी भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

वहीं अभय चौटाला इस्तीफा देकर साबित करना चाहते हैं कि दादा चौधरी देवीलाल की विरासत के असली वारिस वे ही हैं. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कहा, मैं अपने दादा चौधरी देवीलाल के पदचिह्नों पर चल रहा हूं, जिन्होंने किसानों के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया, अगर कोई किसानों के हित और कल्याण के खिलाफ काम करता है तो हमारी पार्टी हमेशा इसके खिलाफ खड़ी रहेगी. अभय ने दुष्यंत चौटाला पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग चौधरी देवीलाल की तस्वीरें लगाते हैं, अगर वे इस समय इस्तीफा नहीं देते हैं तो वे चौधरी देवीलाल की छवि पर धब्बा हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब वापस राकेश टिकैत पर लौटते हैं.... जो जाट हैं, हरियाणा में 10 में से 7 सीएम भी जाट

राकेश टिकैत के नाम पर जाट एकजुट होने लगे हैं. हरियाणा की राजनीति में जाटों का सबसे ज्यादा दखल है. राज्य में 27% आबादी वाला जाट समुदाय 90 में से 40 सीटों को प्रभावित करता है. 53 सालों में से 33 सालों तक तो यहां सिर्फ जाट सीएम ही रहे हैं. 20 साल तक गैर-जाट सीएम रहे. प्रदेश के पहले और दूसरे सीएम भगवत दयाल शर्मा (143 दिन) और राव बीरेंद्र सिंह (224 दिन) गैर-जाट थे, लेकिन उनका कार्यकाल बहुत कम था. भजनलाल और मनोहर लाल खट्टर लंबे वक्त तक सीएम रहे. यानी यहां 10 में से 7 सीएम जाट समुदाय से रहे हैं.

हरियाणा की खाप पंचायतों ने खुलकर राकेश टिकैत का समर्थन किया है. खापों ने हर घर को आंदोलन से जोड़ने का फैसला किया है. उन्होंने ऐलान किया कि राकेश टिकैत के समर्थन में 1500 ट्रैक्टर गाजीपुर बॉर्डर के लिए रवाना होंगे.

किसान-जाटों को फिर से आईएनएलडी से जोड़ने की कोशिश में अभय चौटाला

अभय चौटाला विधानसभा से इस्तीफा देकर साबित करना चाहते हैं कि वह ही किसानों के सच्चे हितैशी हैं. वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी के पुराने साथी रहे रामपाल माजरा ने बीजेपी छोड़ दी है. रामपाल माजरा आईएनएलडी के बड़े नेता रहे हैं, लेकिन वह 2019 के चुनाव में बीजेपी में चले गए थे. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि वह फिर से आईएनएलडी में शामिल हो सकते हैं.

वहीं दूसरी तरफ दुष्यंत चौटाला का कृषि कानूनों पर क्लियर स्टैंड न लेने की वजह से उनके प्रति किसानों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में अभय चौटाला इस मौके का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में होंगे. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कहा कि मैं पूरे हरियाणा का दौरा करूंगा और उन सभी निर्वाचन क्षेत्रों पर फोकस करूंगा, जहां 80-85 फीसदी मतदाता किसान हैं, अब समय आ गया है कि किसानों की बात करने वाले विधायक उनके साथ आएं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×