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पुलवामा हमला: दुष्प्रचार का सिद्धू की लोकप्रियता पर नहीं होगा असर

पंजाब में सिद्धू की लोकप्रियता का ग्राफ, पिछले तीन महीनों में, तेजी से ऊपर चढ़ा है

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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को कार बम हमले में CRPF के 40 जवानों के शहीद होने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथियों ने एक अप्रत्याशित व्यक्ति पर निशाना साधना शुरू किया - पंजाब के मंत्री और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू पर.

उन्होंने पर्यटन और स्थानीय निकायों के मंत्री सिद्धू को पंजाब मंत्रिमंडल और साथ ही साथ द कपिल शर्मा शो से भी निकाल बाहर करने की मांग की. सिद्धू भी इस शो का हिस्सा हैं. सिद्धू के आलोचकों ने द कपिल शर्मा शो का प्रसारण करने वाले सोनी चैनल का बहिष्कार करने की भी धमकी दी.

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दक्षिणपंथियों ने सिद्धू पर आरोप लगाया कि वो पाकिस्तान समर्थक हैं. इस आरोप की वजह यह है कि सिद्धू की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से दोस्ती है, जिसकी बुनियाद दोनों के क्रिकेटर रहते पड़ी थी.

दक्षिणपंथियों की मांग को बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) का भी साथ मिला और उन्होंने ने भी सिद्धू को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग की. सोमवार, 19 फरवरी को उन्होंने पंजाब विधानसभा में सिद्धू के खिलाफ नारेबाजी की. यहां तक कि उन्हें गद्दार कहा. इस बात पर सिद्धू और अकाली दल विधायक तथा SAD अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साले बिक्रम सिंह मजीठिया के बीच जुबानी जंग छिड़ गई.

सिद्धू अपने समय में भारतीय क्रिकेट टीम के ओपनिंग बैट्समैन के रूप में फ्रंटफुट पर जाकर बॉल हिट करने के लिए मशहूर रहे हैं. इस मामले में भी उनकी वही आदत दिखी. उन्होंने एक के बाद एक ट्वीट दागे, जिनमें केंद्र बीजेपी सरकार पर आतंकवाद से लड़ने में नाकाम रहने और कश्मीर में सुरक्षा बलों की सुरक्षा में अक्षम होने के आरोप लगाया.

सिद्धू की लोकप्रियता में इजाफा

लेकिन सिद्धू की आक्रामकता और उनका भरोसा देखते हुए लगता नहीं कि SAD-BJP की मुहिम से उनकी लोकप्रियता में कोई फर्क आएगा. उल्टे इस विवाद का उन्हें लाभ पहुंचेगा.

पंजाब में सिद्धू की लोकप्रियता का ग्राफ, पिछले तीन महीनों में, तेजी से ऊपर चढ़ा है. अक्टूबर 2018 में इंडिया टुडे पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज के मुताबिक राज्य के सिर्फ चार प्रतिशत लोग उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे. जनवरी 2019 में ये आंकड़ा छलांग मारकर 16 फीसदी पर पहुंच गया. यानी महज तीन महीनों में चार गुना की बढ़ोतरी. इंडिया टुडे के मुताबिक किसी भी राज्य के किसी भी नेता के लिए उनके सर्वेक्षणों में ये इजाफा सबसे ज्यादा है.

उनकी तुलना में कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल के लोकप्रियता ग्राफ में गिरावट आई है.

देश के अंग्रेजी और हिन्दी न्यूज चैनल बेशक सिद्धू को कांग्रेस के लिए सिरदर्द मान सकते हैं, लेकिन पंजाब की अवधारणा इसके बिलकुल विपरीत है. कैप्टन की व्यक्तिगत लोकप्रियता में कमी आई है, लेकिन पंजाब में उनकी सरकार की लोकप्रियता बढ़ी है, और इसका मुख्य कारण हैं, सिद्धू.

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करतारपुर साहिब फैक्टर और पंजाब का भारत-पाकिस्तान संबंधों पर नजरिया

सिद्धू की लोकप्रियता में तेज वृद्धि मुख्य रूप से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक गलियारे के निर्माण के प्रयासों के कारण हुई. ये वो जगह है, जहां गुरु नानक ने अपने जीवन के आखिरी दिन बिताए थे.

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नरोवाल स्थित करतारपुर साहिब, भारतीय सीमा से महज 3 किलोमीटर दूर है. भारतीय सिखों की लंबे समय से मांग रही है कि वहां तक भारत से बिना वीजा के तीर्थयात्रियों के पहुंच के लिए एक गलियारा बनाया जाए.

इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान सिद्धू ने इमरान खान और पाकिस्तान सेना प्रमुख कमर बाजवा के इस मांग पर चर्चा की. इमरान खान और बाजवा दोनों ही करतारपुर गलियारे के निर्माण के लिए राजी हो गए. ये समझौता भारतीय सिखों के लिए बहुत बड़ी जीत थी और इस जीत के हीरो थे, सिद्धू.

इंडिया टुडे के राजनीतिक स्टॉक एक्सचेंज के मुताबिक पंजाब में 42 प्रतिशत लोग करतारपुर साहिब गलियारे के निर्माण के लिए सिद्धू को श्रेय देते हैं, 15 फीसदी के लिए ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देन है और 14 प्रतिशत लोग इसे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की देन मानते हैं.

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पुलवामा हमले के बाद भी इन आंकड़ों में बदलाव की संभावना नहीं है. दरअसल भारत-पाक रिश्ते खटाई में पड़ने के बाद भी कई सिखों को सिद्धू पर ही भरोसा है कि वो करतारपुर साहिब गलियारे को तनावपूर्ण रिश्तों की आंच से दूर रख सकते हैं.

एक और कारण है: हालांकि भारतीय सेना में पंजाब की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन जब भी पाकिस्तान का सवाल आता है, तो पंजाब के लोगों के दिलों में दुश्मनी के भाव कम हो जाते हैं.

इसका कारण पश्चिम पंजाब के साथ सांस्कृतिक रिश्ता और कई महत्त्वपूर्ण सिख धार्मिक स्थलों के पाकिस्तान में स्थित होना हो सकता है, जैसे गुरु नानक की जन्मभूमि ननकाना साहिब, हसन अब्दाल में गुरुद्वारा पंजा साहिब और करतारपुर साहिब. पंजाब के कई सिखों को ये भी डर है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बिगड़ने से उनके लिए इन धार्मिक स्थलों पर जाना मुश्किल हो जाएगा.

पाकिस्तान को लेकर पंजाब की ये स्थिति दिसंबर 2016 में लोकनीति-CSDS सर्वे के नतीजों में देखी जा सकती है. ये सर्वे उरी में आतंकी हमले और भारत के जवाबी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद तीन महीने के भीतर और पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों से दो महीने पहले किया गया था.

सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तुलना में पंजाब के मतदाताओं को “सर्जिकल स्ट्राइक” और “राष्ट्रवाद” जैसे चुनावी मुद्दों में कम दिलचस्पी है.

जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक त्रिविदेश सिंह मैनी का कहना है कि सिद्धू को पंजाब में लोकप्रियता के पैमानों की काफी गहरी जानकारी है.

“पुलवामा हमले के बाद अपने बयानों के कारण सिद्धू को कुछ कट्टर राष्ट्रवादियों की नाराजगी का सामना जरूर करना पड़ रहा है, लेकिन उन्होंने जो कहा वो गलत नहीं है. सीमावर्ती राज्य के निवासी और माझा विधायक होने के नाते उन्हें बंद कमरों में बैठकर विश्लेषण करने वालों की तुलना में बेहतर जानकारी है कि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण हर तीसरे दिन अपने एक बेटे को हमेशा के लिए खो देने का दर्द किसी परिवार के लिए क्या होता है.” मैनी ने कहा.

दिलचस्प बात है कि पुलवामा हमले में पंजाब के जो जवान शहीद हुए, सिद्धू उनके परिवार के दुख-दर्द में शामिल होने वाले शुरुआती नेताओं में एक थे.

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पंजाब में राजनीतिक शून्य

सिद्धू की लोकप्रियता में वृद्धि, बादल परिवार की गिरती लोकप्रियता के साथ निकटता से जुड़ी है. ये बात पंजाब के पंचायत चुनावों में अकाली दल की हार के साथ-साथ रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और सेवा सिंह सेखवान जैसे वरिष्ठ नेताओं के पार्टी से बाहर होने से स्पष्ट है. अकाली दल की लोकप्रियता में कमी और आम आदमी पार्टी में अंदरूनी कलह से पंजाब के पंथक सिख मतदाताओं में एक शून्य पैदा हुआ है, जो राज्य में एक विश्वसनीय विकल्प की गैरमौजूदगी महसूस करते हैं.

SAD शासन के दौरान बरगारी की घटनाओं और फिर बेहबल कलां और कोटकापुरा में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी के बाद बादल परिवार के खिलाफ लोगों में भारी गुस्सा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह पर उन्हीं की पार्टी के कुछ नेता आरोप लगा रहे हैं कि वो बमबारी और गोलीबारी के मामलों में बादल परिवार पर नरमी बरत रहे हैं.

मजीठिया के साथ विवाद सिद्धू की ही मदद कर सकता है, क्योंकि मजीठिया को कई पंजाबी नापसंद करते हैं और उन पर राज्य के ड्रग रैकेट में शामिल होने का आरोप लगाते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह के मुताबिक पंजाब विधानसभा में सिद्धू-मजीठिया विवाद का असर अपने पार्टी सहयोगियों, खासकर सिद्धू और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के कैप्टन की आलोचनाओं की तुलना में अधिक था.

जगतार सिंह ने लिखा, “सदन में कांग्रेस की गुटबंदी उस वक्त खुलकर सामने आ गई, जब सिद्धू और रंधावा दोनों ने ही आरोप लगाया कि उनकी (कैप्टन की) मुलायमियत ने ही विक्रम (मजीठिया) का मन बढ़ा दिया है. इसके बाद सदन स्थगित हो गया. दोनों के समर्थन में कई विधायक थे.”

सिखों के लिए करतारपुर साहिब जैसे अहम विषय के कारण सिद्धू की लोकप्रियता सिख मतदाताओं में तेजी से बढ़ी है. पुलवामा हमले पर बयान का असर हिन्दीभाषी क्षेत्रों में कांग्रेस प्रचारक के रूप में उनके चुनाव प्रचार पर पड़ सकता है, लेकिन पंजाब में उनकी लोकप्रियता में हाल-फिलहाल में गिरावट होते नहीं दिखती.

ये स्टोरी द क्विंट से ली गई है. इंग्लिश की ओरिजनल स्टोरी पढ़ने के लिए क्लिक करे

Pulwama Attack: Smear Campaign Won’t Stop Sidhu’s Rise in Punjab

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