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रघुबर दास को ओडिशा, इंद्र सेना रेड्डी को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाने के पीछे क्या प्लान?

रघुबर दास 2014 से 2019 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. इंद्र सेना रेड्डी नल्लू तेलंगाना से बीजेपी नेता हैं.

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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है जबकि तेलंगाना बीजेपी के नेता इंद्र सेना रेड्डी नल्लू को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया है. यह जानकारी बुधवार, 18 अक्टूबर को राष्ट्रपति भवन ने एक विज्ञप्ति जारी कर दी.

राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा की गईं ये दोनों नियुक्तियां उनके संबंधित कार्यालयों में कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से प्रभावी होंगी.

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इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि-

  • रघुवर दास और इंद्र सेना रेड्डी नल्लू कौन हैं?

  • दोनों को राज्यपाल क्यों बनाया गया?

रघुवर दास और इंद्र सेना रेड्डी नल्लू कौन हैं?

68 वर्षीय रघुवर दास झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और वर्तमान में जेपी नड्डा की टीम में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्व सीट का प्रतिनिधित्व किया था, इसके बाद से वो 2019 तक यहां से विधायक बनते रहे. रघुबर दास झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

70 वर्षीय इंद्र सेना रेड्डी नल्लू, बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. पार्टी ने 2014 में उन्हें राष्ट्रीय सचिव भी बनाया था. वो आंध्र प्रदेश की मालकपेट सीट से तीन बार विधायक और आंध्र प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

दोनों को क्यों बनाया गया राज्यपाल?

जानकारी के अनुसार, रघुवर दास को लेकर झारखंड में बीजेपी कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी. पार्टी हाईकमान भी दास के नेतृत्व में मिली झारखंड चुनाव में हार के बाद धीरे-धीरे प्रदेश की राजनीति से दूर करना चाह रहा था. लेकिन दास संघ के करीबी हैं. ऐसे में उन्हें एकाएक हटाना संभव नहीं था. इसलिए पार्टी उन्हें दो बार से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रही थी.

बीजेपी के एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "दास को लेकर पार्टी में असंतोष था. कई बीजेपी नेता चुनाव में पार्टी छोड़कर जा चुके थे. AJSU से भी चुनाव में गठबंधन न हो पाने की एक वजह रघुवर दास ही थे. ऐसे में पार्टी ने उन्हें राज्यपाल बनाकर न सिर्फ प्रदेश की सियासत से बल्कि एक्टिव पॉलिटिक्स से भी दूर कर दिया है."

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, बीजेपी झारखंड चुनाव के बाद से ही दास को किनारे करने में लगी थी.

राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने कहा, " झारखंड चुनाव 2019 में मिली हार के बाद बीजेपी हाईकमान ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी में वापसी कराकर ये साफ संकेत दे दिया था कि वो अब नए चेहरे के साथ राज्य की सियासत करेगी. "

बीजेपी में पहले मरांडी की वापसी कराई गई और फिर उनके करीबियों को प्रदेश की सियासत में बड़ा पद दिया गया. इतना ही नहीं, मरांडी को भी विधायक दल का नेता चुना था, लेकिन विधानसभा स्पीकर ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया, जिसके बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने इशारा कर दिया कि अब मरांडी के नेतृत्व में बीजेपी आगे जाएगी.
संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

जानकारों की मानें तो, पार्टी ने पहले अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया और अब दास को राज्यपाल बनाकर मरांडी को फ्री हैंड दे दिया है. सूत्रों की मानें तो, अब जल्द ही कई बड़े नेताओं की बीजेपी में वापसी हो सकती है. और जमशेदपुर पूर्व सीट पर किसी नए चेहरे को भी मौका मिल सकता है.

एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा, "मरांडी के पास प्रशासनिक अनुभव है. वो डिप्टी सीएम औऱ सीएम रह चुके हैं. लोकसभा चुनाव और ओडिश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उनकी नियुक्ति काफी अहम है."

इसके अलावा, ओडिशा राजभवन में एक ऐसे नेता की जरुरत थी, जो नवीन पटनायक के साथ बेहतर समन्वय बना सके. इसमें दास फिट बैठते हैं.

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वहीं, इंद्र सेना रेड्डी को संघठन का मजूबत व्यक्ति माना जाता है. सूत्रों की मानें तो, रेड्डी की नियुक्ति तेलंगाना चुनाव को लेकर हुई है. जानकारी के अनुसार, पार्टी तेलंगाना के जातीय समीकरण को फिट करने में लगी है. इसी क्रम में बीजेपी ने पहले जी किशन रेड्डी को तेलंगाना का अध्यक्ष बनाया और अब इंद्र सेना को राज्यपाल बनाकर रेड्डी समुदाय को साधने की कोशिश की है.

दरअसल, बीजेपी का तेलंगाना में मुख्य वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है. पार्टी रेड्डी और ईटेला राजेंदर (चुनाव प्रबंधन समिति प्रमुख) के जरिए जातीय समीकरण को बैलेंस करना चाहती है.

जानकारी के मुताबिक ईटेला राजेंदर पिछड़ी जाति से आते हैं और उनकी जातीय वोट बैंक का 53 फीसदी हिस्सा है जबकि रेड्डी की जातीय का लगभग 5 फीसदी वोट है. बाकी 10-11 फीसदी कप्पस हैं, जिनका प्रतिनिधित्व संजय बंदी और अरविंद धर्मपुरी जैसे अन्य नेता करते हैं.

इसके अलावा पार्टी रेड्डी को राज्यपाल बनाकर तेलंगाना के लोगों को ये संदेश देना चाहती है कि प्रदेश को लेकर उसकी प्राथमिकता है. इसके अलावा रेड्डी बीजेपी के 75 प्लस के नियम के दायरे में भी आ रहे थे, ऐसे में पार्टी ने उन्हें राजभवन भेजना ज्यादा मुनासिब समझा.

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