लोकसभा चुनाव में बड़ी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे पर अड़े हुए हैं. उन्हें पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी समझा रही हैं. पार्टी के बड़े नेता मना रहे हैं लेकिन वो नहीं मान रहे. लेकिन ऐसा करके राहुल गांधी क्या वही गलती नहीं दोहरा रहे, जो उन्होंने चुनाव के वक्त की थी?
राहुल का इस्तीफा- अब तक क्या हुआ?
25 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की. इसे पार्टी ने ठुकरा दिया और उन्हें पार्टी में ऊपर से नीचे तक रद्दोबदल के लिए अधिकृत कर दिया. लेकिन राहुल गांधी अड़े रहे. राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश के बाद यूपी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, एमपी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण, झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार, पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ और असम के प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा ने भी इस्तीफे की पेशकश कर दी. इन नेताओं का कहना है कि हार की जिम्मेदारी उनकी भी है. मंगलवार को प्रियंका गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट और रणदीप सुरजेवाला भी राहुल गांधी से मिले और मनाया, लेकिन वो नहीं माने. तो अभी सस्पेंस बरकरार है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बने रहेंगे या नहीं?
राहुल ने पूरी जिम्मेदारी ली है लेकिन हम सब हार के लिए जिम्मेदार हैं और ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि पार्टी को खड़ा करें. अगर आज कांग्रेस में नए सिरे से नेता चुना जाए तो भी राहुल ही जीतेंगे. वो पार्टी को आगे ले जाने के लिए सबसे सही व्यक्ति हैं.शशि थरूर, कांग्रेस सांसद
शिला दीक्षित ने भी राहुल गांधी से इस्तीफे के फैसले को वापस लेने की अपील की है. दीक्षित का कहना है कि पार्टी भी बुरे दौर से बाहर आकर जीती है.
राहुल गांधी पार्टी की प्रेरणा हैं. सिर्फ इसलिए कि मोदी जीत गए हैं, अध्यक्ष पद छोड़ना ठीक नहीं है. पार्टी में अच्छा बुरा वक्त तो आता ही है, हमने ऐसा कई बार देखा है. लिगेसी तो है ही, लेकिन उनका अपना व्यक्तित्व भी ऐसा है कि वही पार्टी को चलाने के लिए सबसे सही व्यक्ति हैं.विरप्पा मोइली, कांग्रेस नेता
सहयोगी दल भी राहुल को मना रहे
राहुल के इस्तीफे से विपक्ष में किस तरह का मैसेज जाएगा ये विपक्षी नेताओं की बातों से भी पता चलता है. राहुल के इस्तीफे की बात सुनकर मंगलवार को तमिलनाडु में कांग्रेस की सहयोगी डीएमके के अध्यक्ष एमके स्टालिन ने उन्हें फोन किया. पार्टी के मुताबिक स्टालिन ने राहुल को कहा - ‘’भले ही कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गई लेकिन राहुल गांधी ने लोगों के दिल जीते हैं, इसलिए उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए’’
बिहार में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी RJD के लालू प्रसाद यादव ने कहा है कि राहुल का इस्तीफा न सिर्फ कांग्रेस पार्टी, बल्कि संघ से लड़ने वाली तमाम ताकतों के लिए आत्महत्या जैसा होगा.
जैसे ही कोई और अध्यक्ष बनेगा मोदी-शाह ब्रिगेड उसे राहुल-सोनिया की कठपुतली करार देंगे. राहुल गांधी को विरोधियों को ये कहने का मौका नहीं देना चाहिए.लालू प्रसाद यादव, आरजेडी
साउथ के सुपरस्टार और अब सियासत में कूद चुके रजनीकांत ने भी मंगलवार को कहा - ‘राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए. उन्हें इसको प्रूव करना चाहिए कि वो यह कर सकते हैं. लोकतंत्र में विपक्ष को मजबूत होना चाहिए.’
चुनाव बाद भी वही गलती?
ये बात अच्छी है कि राहुल गांधी नेता होने के नाते हार की जिम्मेदारी ले रहे हैं. ये बात भी अपनी जगह ठीक है कि वो अपने नेताओं से कम सहयोग मिलने पर खफा हैं लेकिन क्या राहुल का इस्तीफा देना चुनाव में हुई गलती को दोहराना नहीं होगा?
चुनाव प्रचार में बीजेपी ने ये नेरेटिव चलाया कि There is no alternative. यानी मोदी नहीं तो कौन? विपक्ष और कांग्रेस ने इसका जवाब देने के बजाय वो रास्ता अपनाया, जिससे बीजेपी के नेरेटिव को ही बल मिलता था. न तो विपक्ष ने प्रधानमंत्री पद के लिए कोई नाम बताया, न ही कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी का नाम आगे किया.
चुनाव में प्रियंका गांधी की भूमिका क्या और बड़ी नहीं होनी चाहिए थी? क्यों उन्हें सिर्फ उस राज्य के एक हिस्से की प्रभारी बना दिया गया जहां कांग्रेस सीधे मुकाबले में नहीं थी. उन्हें मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के चुनावी अखाड़े में क्यों नहीं उतारा? जब वाराणसी में मोदी के मुकाबले प्रियंका को खड़ा करने की बारी आई तो भी पार्टी पीछे हट गई.
कुल मिलाकर मैसेज यही गया कि मोदी के खिलाफ आप खड़ा ही नहीं होना चाहते. क्या वैसी ही गलती एक बार फिर नहीं हो रही? चुनाव परिणामों के बाद पीएम मोदी का कद और बढ़ा है लेकिन कांग्रेस में राहुल गांधी से बड़ा कद किसी और का है क्या? तो क्यों नहीं इस सियासी लड़ाई में विरोधी के सामने सबसे दमदार नेता होना चाहिए?
फ्रंट फुट पर खेलने की जरूरत
हार मिली है लेकिन हार से उबर कर आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस को इस वक्त राहुल गांधी की सबसे ज्यादा जरूरत है. चुनौती पार्टी को फिर से खड़ा करने की तो है ही, इस वक्त फौरी तौर पर कर्नाटक और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकारों पर मंडरा रहे खतरे से निपटने की भी है. तो ये वक्त पीछे हटने का नहीं, जिम्मेदारी लेने का है. ये वक्त है- फ्रंट फुट पर खेलने का.
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