एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray) के बदले तेवर ने महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में हलचल मचा दी है. गुढी पाड़वा के मौके पर मुंबई के शिवाजी पार्क की रैली में राज ठाकरे ने कट्टर हिंदुत्ववादी विचारों की पैरवी करते हुए मुसलमानों पर निशाना साधा है. राज ठाकरे ने अपने भाषण में चेतावनी दी है कि मस्जिदों पर से अजान के लाउड स्पीकर नहीं हटाए गए तो दुगनी ताकत से लाउड स्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ा जायेगा. साथ ही वे शिवसेना और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर भी जमकर बरसे.
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में एंटी मोदी प्रचार करनेवाले राज ठाकरे के भाषण से बीजेपी और केंद्र सरकार पूरी तरह से नदारद रही. हमेशा उत्तर भारतीयों पर टूट पड़ने वाले राज ठाकरे ने इस बार योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी के विकास की चर्चा की. ठाकरे की रणनीति से महाराष्ट्र की राजनीति में एमएनएस के 180 डिग्री यू टर्न की चर्चा शुरू हो गई है.
इसपर शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत ने कहा कि राज ठाकरे केवल बीजेपी का लिखा हुआ पढ़ रहे थे. जबकि शरद पवार ने यह कहते हुए तंज कसा कि चुनाव के आंकड़ों में राज ठाकरे की काबिलियत समझ आती है, वो चुनाव से पहले भाषणबाजी करते हैं और फिर अज्ञातवास में चले जाते हैं.
राज ठाकरे के इस अंदाज के क्या मायने हैं?
सियासी गलियारों में एमएनएस पार्टी ने बदले हुए राजनीतिक गियर से बीजेपी को फायदा और शिवसेना को नुकसान के कयास लगाए जा रहे हैं. राज ठाकरे के इस अवतार के क्या मायने हैं यह विशेषज्ञों से और पहले के चुनावों के डेटा से समझने की कोशिश करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सचिन परब का कहना है कि महाराष्ट्र में आनेवाले चुनावों में हिंदू और मुस्लिम ध्रुवीकरण करने की बीजेपी की रणनीति साफ दिख रही है. जिसमें शिवसेना को घेरने के लिए राज ठाकरे जैसा नेता अहम भूमिका निभा सकते हैं.
शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने और उसके कांग्रेस - एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद हिंदुत्व के मुद्दे को बीजेपी पूरी तरह से हाईजैक करना चाहती है. जिसे इनकैश करने के लिए राज ठाकरे जैसा हिंदूवादी नेता फिलहाल तो बीजेपी में नजर नहीं आ रहा.
साथ ही 2019 की लोकसभा में एनसीपी की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने के लिए राज ठाकरे ने मोदी और बीजेपी को निशाने पर लिया था. लेकिन उसी एनसीपी ने शिवसेना के साथ गठबंधन में सरकार बनाई. ऐसे में अब एमएनएस के पास अस्तित्व बचाने के लिए बीजेपी के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. हालांकि जिस पार्टी ने एमएनएस के सबसे ज्यादा विधायक और पार्षदों को तोड़ा उनके साथ राज ठाकरे को कितना फायदा होगा ये देखना दिलचस्प होगा.
बीजेपी से मिलेगी आर्थिक रसद?
दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञ हेमंत देसाई का मानना है कि किसी भी पार्टी को चलाने के लिए जनता के समर्थन के साथ आर्थिक रसद की जरूरत होती है. एक विधायक और एक पार्षद को लेकर पार्टी को बढ़ाना बहुत मुश्किल है.
ऐसे में पार्टी को विस्तार देने और प्रादेशिक छवि से बाहर निकलने की कोशिश में राज ठाकरे बीजेपी के सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं. राज ठाकरे ने मस्जिदों के सामने मराठी स्तोत्र के अलावा हिंदी भाषिक हनुमान चालीसा गाने का ऐलान किया.
बीजेपी के साथ 42 हजार करोड़ बजट की BMC पर सत्ता हासिल करने में सफलता मिली तो एमएनएस के लिए ये एक संजीवनी साबित होगी. ऐसे में हिंदुत्व का कार्ड राज के भविष्य के लिए आखिरी राजनीतिक दाव के रूप में देखा जा सकता है.
पिछले चुनावों का गणित
पिछले कुछ चुनावी आकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में एमएनएस वोट कटर का काम करते रहा है. 2017 के BMC चुनावों में शिवसेना को 84 सीटों के साथ 28.92 % वोट शेयर मिला तो वहीं बीजेपी ने 82 सीटों में 27.28 % वोट शेयर हासिल किया.
मुंबई बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आज भी BMC में 40 से 42 सीटों पर शिवसेना का वर्चस्व है. लेकिन इनमें 12 से 15 सीटों पर भी एमएनएस का हिंदुत्व कार्ड चला और सेना को नुकसान हुआ तो बीजेपी लगभग 1.50% वोट शेयर का फासला पार कर देगी. जिससे शिवसेना के हाथों से BMC निकालने में एमएनएस की बड़ी मदद हो सकती है.
ये फॉर्मूला BMC में कामयाब हुआ तो राज्य के बाकी निकाय चुनावों में इसे लागू करने पर सोच विचार हो सकता है.
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