राजस्थान में बीजेपी के जो टिकट बंटे हैं उसमें वसुंधरा राजे की मुहर साफ दिख रही है. इसके साथ ये भी साफ हो गया कि तमाम कोशिशों बावजूद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की नहीं चल पाई.
बीजेपी ने 200 में से 131 सीटों के लिए जो लिस्ट जारी की है उसमें 85 मौजूदा विधायकों को टिकट मिल गई. इसके अलावा बाकी सीटों में भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नामों को ही तरजीह मिली है. जाहिर है दबदबा बरकरार है.
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बीजेपी अध्यक्ष चाहते थे कि राजस्थान में एंटी इंकंबेसी होने की वजह से कम से कम 50 परसेंट विधायकों को टिकट नहीं दिया जाए. लेकिन मुख्यमंत्री इसके लिए तैयार नहीं थी और आखिरकार उनके मन की हो गई.
बीजेपी ने 131 की लिस्ट में जिन 23 विधायकों के टिकट काटे हैं उनमें दो मंत्री भी हैं. लेकिन इनमें भी 4 के करीबी रिश्तेदारों को टिकट दे दिए गए हैं.
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बगावती रानी ने ताकत दिखाई
बीजेपी की सेंट्रल लीडरशिप और वसुंधरा राजे की लंबे वक्त से नहीं पट रही है. पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मजबूत लीडरशिप के बावजूद वो अपनी ज्यादातर मांगें मनवाने में सफल रही हैं. यहां तक कि राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष का ऐलान भी तभी हो पाया था जब मुख्यमंत्री की बात मानी गई.
बाड़मेर में जसवंत सिंह और मानवेंद्रसिंह के असर को कम करने के लिए वहां के सांसद सोनाराम को टिकट दिया गया है. उन्हें मुख्यमंत्री का करीबी माना जाता है. 2014 में कर्नल सोनाराम ने ही जसवंत सिंह को चुनाव में हराया था. जातिगत समीकरण साधने के लिए बीजेपी से नाराज चल रहे राजपूत समुदाय के 17 नेताओं को टिकट मिले हैं.
सर्वे नहीं आए मुख्यमंत्री का फीडबैक ही काम आया
बीजेपी ने राजस्थान के लिए खास सर्वे कराया था. ये माना जा रहा था कि अमित शाह इसी सर्वे के आधार पर ही टिकट देने के पक्ष में थे लेकिन आखिर में वसुंधरा राजे का फीडबैक ही टिकट देने के काम आया. जिन विधायकों को टिकट कटे उनके रिश्तेदारों को टिकट मिल गए. जैसे दिगंबर सिंह और सांवरलाल जाट के निधन के बाद उनके बेटों को पहली ही सूची में टिकट मिल गया.
टिकटों की लिस्ट जारी करने में देरी की वजह यही थी कि राज्य इकाई की तरफ से भेजी कई लिस्ट को दिल्ली में मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन आखिर में राज्य की लिस्ट काम आई.
संघ ने भी दबदबा दिखाया
वसुंधरा राजे के अलावा टिकट देने में आरएसएस की सिफारिश चली है. पहली लिस्ट में संघ से जुड़े कई लोगों के नाम हैं. इनमें मदन दिलावर और जोगेश्वर गर्ग शामिल हैं जो 10 साल बाद दोबारा चुनाव लड़ेंगे. इसके अलावा सतीश पूनिया अरुण चतुर्वेदी, वासुदेव देवनानी फूलचंद भिंडा समेत कई नाम ऐसे है जो सीधे तौर पर आरएसएस के करीबी माने जाते हैं.
बीजेपी ने राजे के सामने हथियार डाले
बीजेपी हाईकमान को लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव करीब हैं इसलिए राजस्थान में अब बहुत एक्सपेरिमेंट की गुंजाइश नहीं है.
वैसे भी तमाम सर्वे साफ साफ कह रहे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस की वापसी होने के आसार हैं. इसलिए अब चुनाव की सारी जिम्मेदारी उन पर छोड़ देना ही सही होगा. नतीजों ने सरप्राइज किया तो ठीक वरना हार का जिम्मा राजे का होगा.
जानकारों के मुताबिक बीजेपी को लगता है कि अगर विधानसभा चुनाव में नतीजे अच्छे नहीं रहे तो लोकसभा चुनाव के वक्त वसुंधरा राजे कोई प्रेशर डालने की हालत में नहीं रह पाएंगी.
जोखिम उठा रही है बीजेपी
इस स्ट्रैटेजी का नुकसान भी है. राजे का दबदबा कायम रहने से ऐसे वोटर्स नाराज हो जाएंगे जो राज्य सरकार से खफा हैं. अभी तक यही बताया जा रहा था कि अमित शाह और उसकी टीम ही राजस्थान में टिकटों का फैसला करेगी और मुख्यमंत्री राजे की नहीं चलने दी जाएगी.
वसुंधरा सरकार में सबसे ताकतवार मंत्री यूनुस खान का नाम पहली लिस्ट में नहीं है. इसके अलावा राजे के करीबी 9 मंत्रियों का भविष्य का भी फैसला होगा. इनमें स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत, हेमसिंह भड़ाना, सुरेन्द्र पाल टीटी, धनसिंह रावत, बाबूलाल वर्मा, डा जसवंत सिंह यादव और राजकुमार रिणवा के टिकट पर फैसला होना बाकी है. लेकिन पहली लिस्ट साफ दिखा रही है कि बाकी टिकट भी वसुंधरा राजे के मनमुताबिक ही मिलेंगे.
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