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राजस्थान: BJP के 'पीएम बनाम सीएम' युद्ध के बीच वसुंधरा राजे का चौंकाने वाला उभार

कर्नाटक के उलट जहां क्षेत्रीय दिग्गजों को बुरी तरह से नजरअंदाज किया गया, BJP की राजस्थान कहानी अलग होने की उम्मीद है

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कर्नाटक (Karnataka) की हार के कुछ ही दिनों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अजमेर में एक रैली के साथ अभियान मोड में वापस आ गए हैं. राज्य में तीन सप्ताह में मोदी का दूसरा सफर यह दर्शाता है कि राजस्थान में भगवा ब्रिगेड के लिए कितना कुछ दांव पर लगा है. इस साल मोदी की राज्य की यह पांचवीं यात्रा थी, जिससे एक बड़ी चर्चा हुई है कि बीजेपी राजस्थान चुनाव की लड़ाई को 'पीएम बनाम सीएम' प्रतियोगिता में बदलने की ख्वाहिश में है.

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अजमेर रैली केंद्र में सत्ता में अपने नौ साल पूरे करने के लिए बीजेपी के 'महा जनसम्पर्क' के महीने भर चलने वाले अभियान का हिस्सा थी, लेकिन राजस्थान से एक अखिल भारतीय कार्यक्रम की शुरुआत से संकेत मिलता है कि पार्टी राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है और साफ तौर से अपने मुख्य प्रचारक पर काफी हद तक भरोसा कर रही है.

पीएम मोदी की तीन घंटे की यात्रा भले ही छोटी रही हो, लेकिन इसमें कुछ अहम दीर्घकालिक संदेश थे, क्योंकि बीजेपी इस रेगिस्तानी राज्य में अपने अभियान को शुरुआती गति देने की कोशिश कर रही है. पूर्व की कांग्रेस सरकारों के कथित भ्रष्टाचार और कुशासन की आलोचना करने के अलावा, पीएम राज्य के चुनावों के लिए कांग्रेस के "गारंटी फॉर्मूला" का मजाक उड़ाने काफी गंभीर थे.

पीएम मोदी की प्री-पोल राजस्थान आउटरीच

कर्नाटक में कांग्रेस की पांच गारंटियों पर मोदी ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस के पास गारंटी का एक नया फॉर्मूला है, जिसे लागू करने पर देश दिवालिया हो जाएगा. राजस्थान सरकार ने हाल ही में 'स्वास्थ्य का अधिकार' बनाया है, लेकिन मोदी ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि पचास साल पहले कांग्रेस ने देश से गरीबी खत्म करने की गारंटी दी थी, जो गरीबों के साथ सबसे बड़ा धोखा है. अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए कांग्रेस के पास अब झूठे गारंटियों का नया फॉर्मूला है.

कांग्रेस की निंदा करने के अलावा, पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि केंद्र में उनके प्रशासन के नौ साल सुशासन और गरीबों के कल्याण के लिए समर्पित थे.

सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस की अंतर्कलह के बावजूद, बीजेपी को पता है कि राजस्थान में उसके लिए काम कठिन है, विशेष रूप से क्योंकि कांग्रेस मुख्यमंत्री की कल्याणकारी योजनाओं के इर्द-गिर्द एक बड़ा अभियान खड़ा कर रही है, जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र की पहल से लेकर पुरानी पेंशन को फिर से शुरू करना शामिल है. अपनी केंद्र सरकार की उपलब्धियों पर बात करते हुए मोदी ने तर्क दिया कि राजस्थान को 'डबल इंजन सरकार' का फायदा उठाने के लिए बीजेपी को वापस लाने की जरूरत है.

भ्रष्टाचार, कुशासन, तुष्टिकरण की राजनीति और आपसी कलह को लेकर कांग्रेस पर अपने बहु-आयामी हमले में, मोदी ने राजस्थान में बीजेपी अभियान के लिए एक खाका तैयार किया. उन्होंने विशेष रूप से सीएम गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच की लड़ाई पर निशाना साधते हुए दावा किया कि उनके झगड़े ने राजस्थान को नुकसान पहुंचाया है.

कांग्रेस की कलह पर कटाक्ष करते हुए, मोदी ने जोर देकर कहा कि राज्य में लोगों ने पांच साल पहले कांग्रेस को जनादेश दिया था, इसके बदले में राजस्थान को विधायक, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच अस्थिरता और अराजकता मिली, जो आपस में लड़ने में व्यस्त थे.

मोदी के तेवर से पता चलता है कि राजस्थान के चुनावी रण में पीएम प्रभावी रूप से शामिल रहेंगे. इसकी बहुत जरूरत हो सकती है क्योंकि राज्य में नेताओं के बीच की लड़ाई राज्य बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती है. 2018 के चुनावों में अपनी हार के बाद से, आंतरिक तनाव और कलह राज्य इकाई के लिए अभिशाप रहा है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अश्विनी वैष्णव से लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तक कई नेताओं के साथ- मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षाओं के साथ बीजेपी में कई दरारें बनती नजर आई हैं. इस वजह से पार्टी एक मजबूत विपक्ष बनने में कामयाब नहीं हो सकी है. राज्य में हुए ज्यादातर उपचुनाव में बीजेपी हार गई और पिछले चार सालों में मुश्किल से ही कोई सार्वजनिक आंदोलन खड़ा किया है.

वसुंधरा राजे को लेकर बीजेपी की तैयारी

इस गुटबाजी को दूर करने के लिए बीजेपी की रणनीति वोट खींचने के लिए पीएम मोदी के नाम और चेहरे का इस्तेमाल करना और किसी को भी अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने से बचना है. हालांकि, अगर अजमेर की रैली कोई संकेत है, तो बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार है. मंच पर उनके आगमन के तुरंत बाद, मोदी और राजे ने गर्मजोशी के साथ मुलाकात की, जो पिछले कई वर्षों से शायद ही कभी देखा गया हो. साथ में उनकी ये तस्वीर इशारा कर रही थी कि अब कोई भी पूर्व सीएम को इग्नोर करने की गलती न करे.

खुशनुमा माहौल के अलावा, राजे रैली के लिए बनाए गए पोस्टरों प्रमुखता के साथ नजर आईं. बीते दिनों नॉर्मल जगह दिखने वाली राजे को पीएम मोदी के बगल में बैठाया गया था. यह सुझाव देने के लिए कि वह अब राजस्थान अभियान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

अजमेर की रैली में उन्हें अहमियत वह इसके विपरीत था कि 2018 में बीजेपी के राजस्थान चुनाव हारने के बाद राजे को पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा केंद्र के मंच से कैसे हटा दिया गया था. गौरतलब है कि कर्नाटक के नतीजों से पहले, राजे को दो अहम खाली पदों के लिए नजरअंदाज कर दिया गया था, जो इस साल की शुरुआत में सामने आई थीं. उन्हें न तो विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था और न ही राज्य बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था.

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पिछले कई सालों से राजे के बीजेपी आलाकमान के साथ ठंडे रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं. मोदी-शाह की जोड़ी राजे से सावधान रही है, लेकिन कर्नाटक की हार के बाद बीजेपी के दिग्गज राजस्थान चुनाव में हार का जोखिम नहीं उठाना चाहते क्योंकि इसे लोकसभा की लड़ाई के ट्रेलर के रूप में देखा जाएगा. इस तरह उन्हें अब राजे के प्रति अपनी घृणा पर काबू पाना होगा और उन्हें राजस्थान मुहिम में एक महत्वपूर्ण भूमिका सौंपनी होगी.

'PM बनाम CM' की लड़ाई

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों से पता चलता है कि पार्टी राजस्थान में मोदी लहर की योजना बना रही है. मोदी मैजिक पर निर्भर भगवा परिवार राजस्थान के चुनावों को 'पीएम बनाम सीएम' जंग में बदलने की उम्मीद कर रहा है. इसलिए, पीएम मोदी और केंद्रीय योजनाओं की सफलता, सामाजिक कल्याण योजनाओं पर सीएम गहलोत का मुकाबला करने के लिए एक अहम पेंच होगा, जिसे कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति के एक प्रमुख हिस्से के रूप में आगे बढ़ा रही है.

लेकिन कर्नाटक के उलट जहां क्षेत्रीय दिग्गजों को बुरी तरह से नजरअंदाज किया गया, राजस्थान की कहानी काफी अलग होने की संभावना है. जबकि पीएम मोदी उसके तुरुप का इक्का बने हुए हैं. लेकिन अजमेर की रैली से नजर आता है कि बीजेपी अब वोटरों से अपनी अपील के एक प्रमुख मुद्दे के रूप में राजे पर भरोसा कर सकती है.

(इस ओपिनियन पीस के लेखक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. NDTV में रेसिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @rajanmahan है. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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