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200 सीट, 9 हजार KM का सफर: राजस्थान बीजेपी की यात्रा से क्या होगा 'परिवर्तन'?

Rajasthan: पीएम मोदी ने जयपुर में कहा- जिस तरह कांग्रेस ने सरकार चलाई, वह जीरो नंबर की हकदार है. इसलिए राजस्थान के लोगों ने ठान लिया है कि गहलोत सरकार को हटाकर बीजेपी को वापस लाएंगे.

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राजस्थान (Rajasthan) क्या अपनी रवायत को कायम रखेगा? या मरुधरा एक नया इतिहास लिखेगा...इसका जवाब साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों में पता चलेगा.

दरअसल, पिछले पांच साल से राज्य की सत्ता से दूर बीजेपी ने वापसी के लिए प्रदेश में 'चार परिवर्तन यात्रा' निकाली, जिसका समापन 25 सिंतबर को जयपुर में हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए. पीएम ने इस मौके पर एक विशाल जनसभा को संबोधित किया.

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लेकिन सवाल है कि इस 'परिवर्तन यात्रा' का बीजेपी को कितना लाभ मिलेगा?

हम मूल सवालों का जवाब आपको आर्टिकल में दें, उस पहले इस यात्रा के बारे में कुछ जरूरी बातें जान लेते हैं.

  • BJP ने 2 सितंबर में प्रदेश से चार परिवर्तन यात्राएं निकालीं. पहली यात्रा त्रिनेत्र गणेश मंदिर (सवाई माधोपुर) से निकली. दूसरी पश्चिम में रामदेवरा (जैसलमेर), उत्तर में गोगामेड़ी मंदिर (हनुमानगढ़) और दक्षिण में बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) से निकाली गई.

  • इन यात्राओं ने प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों को कवर किया.

  • 18 दिन में 8,982 किलोमीटर ( लगभग 9 हजार) की यात्रा पूरी की गई.

  • इस यात्रा में करीब 72 सभाएं व कार्यक्रम आयोजित किए गये, जिसमें केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय नेता व प्रदेश कोर कमेटी के सदस्य, अलग-अलग बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए.

  • पहली यात्रा 2 सितंबर को रणथंभौर (सवाई माधोपुर) के त्रिनेत्र गणेश मंदिर से शुरू हुई, जिसको जेपी नड्डा ने हरी झंड़ी दिखाई. इस यात्रा ने 18 दिन में 1847 का सफर तय किया.

  • दूसरी यात्रा 3 सितंबर को बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) से शुरू हुई, जिसको अमित शाह ने हरी झंड़ी दिखाई. इस यात्रा ने 19 दिन में 2433 किलोमीटर की दूरी तय की.

  • तीसरी यात्रा 4 सितंबर को रामदेवरा (जैसलमेर) से शुरू हुई, जिसको राजनाथ सिंह ने हरी झंड़ी दिखाई. इस यात्रा ने 18 दिन में करीब 2574 किमी का सफर किया.

  • चौथी यात्रा 5 सितंबर को गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) से शुरू हुई, जिसको नितिन गडकरी ने हरी झंड़ी दिखाई. इस यात्रा ने 18 दिन में 2128 किमी का सफर पूरा किया.

किन सीटों से होकर गुजरी 'परिवर्तन यात्रा'?

  1. पहली यात्रा ने सवाई माधोपुर, जयपुर व भरतपुर क्षेत्र की मालपुरा, टोंक, निवाई, खंडार, बयाना, वैर, नदबई, लालसोट, चाकसू, बस्सी, जमवारामगढ़, विराट नगर, शाहपुरा, आमेर, कामां, देवली सहित कुल 47 विधानसभा सीटों को कवर किया.

  2. दूसरी यात्रा ने 52 सीटों को कवर किया, जिसमें डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिलों की विधानसभा सीटें शामिल हैं.

  3. तीसरी यात्रा में जैसलमेर, जोधपुर, पोकरण, मेड़ता, डेगाना, शेरगढ़, बिलाड़ा, अजमेर, पुष्कर, नागौर सहित करीब 51 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया गया.

  4. चौथी यात्रा में करीब 50 सीटों को कवर किया गया, जिसमें बीकानेर, चूरू, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर व अलवर जिलों की विधानसभा सीटें शामिल थी.

बीजेपी को यात्रा का कितना लाभ मिलेगा?

राजस्थान में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद लगाये बैठी बीजेपी ने यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंकी हैं. इसमें प्रदेश और केंद्र के नेताओं के साथ दूसरे राज्यों के बड़े चेहरों को भी जिम्मेदारी दी गई, ताकि पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया जा सके. पूरी यात्रा के दौरान कांग्रेस और अशोक गहलोत सरकार को टारगेट किया गया. लेकिन खास बात यह रही कि इस यात्रा में अब तक राजस्थान की पूर्व सीएम और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे की कम उपस्थिति जरूर सवालों के घेरे में रही है.

वसुंधरा यात्रा की शुरुआत में जरूर दिखीं, लेकिन उसके बाद से वो नदारद हैं. सूत्रों की मानें तो, राजे अभी भी पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं और चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलने से नाखुश हैं. वो चाहती हैं कि बीजेपी हाईकमान उनकी भूमिका के बारे में उन्हें स्पष्ट रूप से बताए, लेकिन मौजूदा स्थिति में अभी ऐसा होता कुछ दिख नहीं रहा है.

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राजस्थान बीजेपी के एक नेता ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर क्विंट हिंदी से कहा, "अभी तक की यात्रा की सफलता देखकर पार्टी काफी खुश है. हमें जैसे उम्मीद थी, हम उसके मुताबिक काफी सफल हुए हैं, हां ये जरूर है कि अगर राजे खुलकर मैदान में आतीं तो स्थिति और बेहतर हो सकती थी. लेकिन पार्टी हाईकमान साफ कह चुका है कि सबको मिलकर चुनाव में जाना है और राजे भी इस बात को समझ रही हैं. आगे वो पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर मैदान में दिखाई देंगी."

राजे के एक समर्थक नेता ने कहा, "हम चाहते हैं कि बीजेपी भारी बहुमत के साथ राज्य की सत्ता में वापसी करे और अगर मैडम (राजे) को तवज्जो दी जाएगी तो ऐसा आसानी से संभव है. लेकिन पार्टी ने अभी तक उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं की है. उम्मीद है कि कुछ बेहतर जल्द होगा. लेकिन ये तय है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है."

वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "इसमें कोई शक नहीं है कि राजे बड़ी नेता हैं और आज भी प्रदेश में उनकी मजबूत पकड़ है. लेकिन उसके बावजूद ये यात्रा बीजेपी के नजरिये से सफल हुई है. जिन क्षेत्रों में बीजेपी का लोकल नेतृत्व मौजूद है, वहां यात्रा में काफी भीड़ दिखी, लेकिन जहां मजबूत नेता नहीं हैं, वहां यात्रा का प्रभाव कुछ खास नहीं दिखा. हां, अगर राजे होतीं तो यात्रा की तस्वीर कुछ और हो सकती थी."

मौजूदा समय में बीजेपी को राजस्थान में बढ़त है. यात्रा का असर जमीन पर दिख रहा है. कांग्रेस को लेकर राज्य में एंटी इंकम्बेंसी है और अगर कोई बड़ा चमत्कार नहीं हुआ तो बीजेपी सत्ता में वापसी कर लेगी.
जगदीश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
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यात्रा से राजस्थान में होगा 'परिवर्तन'?

वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "यात्रा से बीजेपी का सोया नेता जागा है. अभी तक जो माहौल शांत था, वो अब एक्टिव हो गया है."

यात्रा की खास बात ये रही है कि इस यात्रा में राजे की गैरमौजूदगी के बावजूद बीजेपी की सेकेंड लाइन लीडरशिप ने काफी अच्छा प्रभाव डाला. सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत और महंत बालकनाथ जैसे नेताओं की जनसभाओं में अच्छी खासी भीड़ देखी गई. इससे ये संदेश गया कि पार्टी का कैडर वोट अभी भी उसके साथ है, फिर चाहे चेहरा कोई भी हो.
विवेक श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार

विवेक श्रीवास्तव ने आगे कहा, "अभी तक की स्थिति देखकर साफ लग रहा है कि बीजेपी को राजस्थान में बढ़त है और परिवर्तन यात्रा का असर चुनाव परिणाम में दिखेगा. वहीं, राजे के करीबी कैलाश मेघावल को निष्कासित करके साफ संदेश दे दिया गया है कि अनुशासनहीनता किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी, फिर चाहे वो कोई भी क्यों न हो. पार्टी पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी."

जगदीश शर्मा ने कहा, "गहलोत जो ऐलान अब कर रहे हैं, उसे अगर दो साल पहले किया होता तो तस्वीर कुछ और संभव थी, लेकिन मौजूदा समय के ऐलान, सिर्फ चुनावी घोषणा दिख रहे हैं. राज्य में बीजेपी को बढ़त दिख रही है, लेकिन अगर राजे खुलकर साथ में आ जाये तो पार्टी को बड़ी सफलता मिल सकती है."

वहीं, बीजेपी के एक नेता ने कहा, "25 सितंबर को जयपुर में एक बड़ी रैली होने वाली है. पीएम इस रैली को संबोधित करेंगे और इसमें कई लाख लोगों की भीड़ होगी. इसमें राजे को भी शामिल होने के लिए कहा गया है."

नाराजगी के सवाल पर बीजेपी नेता ने कहा, "वो पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, ऐसे में उनके पास और भी काम हैं, जिसमें वो लगी है, वो पार्टी के साथ हैं और चुनाव में उनका मार्गदर्शन सभी को मिल रहा है. नाराजगी की कोई बात नहीं है."

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एक वरिष्ठ टिप्पणीकार ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "राजे को नजरअंदाज करना बीजेपी को भारी पड़ सकता है. वो और उनके समर्थक अभी टिकट ऐलान का इंतजार कर रहे हैं. अगर राजे समर्थकों को ज्यादा टिकट नहीं मिला तो फिर राजे गहलोत का 2018 वाला तरीका अपना सकती हैं."

दरअसल, 2018 में सचिन पायलट कांग्रेस पीसीसी चीफ थे और उस दौरान कई गहलोत समर्थकों को टिकट नहीं मिला था, जिसके बाद वे निर्दलीय मैदान में उतरे और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. हालांकि, बाद में जब बहुमत की दिक्कत आई तो वे विधायक गहलोत के साथ गये, और इससे अशोक गहलोत का दावा सीएम के तौर पर मजबूत हुआ और उन्हें प्रदेश की कमान सौंपी गई.

वरिष्ठ टिप्पणीकार ने आगे कहा, "राजे के करीबियों पर कार्रवाई कर भले ही पार्टी संदेश देना चाह रही हो कि अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका नुकसान पार्टी को चुनाव में हो सकता है. कैलाश मेघावल (89) भले ही उम्र के इस पड़ाव पर हैं, जो बीजेपी के मानक पर फिट नहीं होता है, लेकिन ये भी एक सच है कि उनकी शाहपुरा और भीलवाड़ा में मजबूत पकड़ है. उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान करके बीजेपी के लिए मुसीबत बढ़ा दी है. और अगर ये कार्रवाईयों का सिलसिला जारी रहा तो कई और उम्मीदवार बीजेपी के खिलाफ मैदान में ताल ठोकते नजर आ सकते हैं."

हालांकि, बीजेपी की 'परिवर्तन यात्रा' कितना राजस्थान में 'परिवर्तन' करेगी, ये वक्त बताएगा, लेकिन इतना साफ है कि बीजेपी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है और वो अपने सेंकेंड लाइन लीडरशिप को मजबूती से आगे कर रही है.

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