Rajasthan CM: मध्यप्रदेश में जिस तरह शिवराज का पत्ता काट मोहन यादव को सीएम घोषित किया गया उसी तरफ राजस्थान में खेला हुआ. यहां बीजेपी आलाकमान ने पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया है- एक ऐसा नाम जिसकी सीएम की रेस में दूर-दूर तक कोई चर्चा नहीं थी. बीजेपी ने यही गुगली छत्तीसगढ़ में भी फेंकी. रमन सिंह जैसे कद्दावर नेता को दरकिनार कर विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. राजनीतिक जानकार पहले से ही कह रहे थे कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सीएम चुनने का ट्रेंड देखकर वसुंधरा राजे का चिंतित होना जायज था.
12 दिसंबर (मंगलवार) की शाम राजस्थान बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई. इसी बैठक में मंथन से नए सीएम का नाम निकला.
बीजेपी ने राजस्थान में 115 सीटें जीती हैं. सीएम रेस में राजे के अलावा, दीया कुमारी, किरोड़ीलाल मीणा, बाबा बालकनाथ भी थे, लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सीएम रेस में शामिल दिग्गज नेता जैसे साइडलाइन किये गए, वही राजस्थान में भी हुआ.
बीजेपी के दोनों दिग्गज नेताओं, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह ने क्रमशः मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में चुनाव अभियान का नेतृत्व किया. 64 साल की उम्र में, शिवराज चौहान पहले से ही मध्य प्रदेश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री हैं.
यही हाल 71 साल के रमन सिंह का छत्तीसगढ़ में है. राज्य के अस्तित्व में रहे 23 वर्षों में से 15 साल तक उन्होंने राज्य का नेतृत्व किया. दोनों नेताओं को स्थानीय स्तर पर काफी समर्थन प्राप्त है, लेकिन जब बीजेपी ने फैसला किया कि वह पार्टी नेतृत्व में पीढ़ीगत बदलाव लाना चाहती है, तो उसने ऐसा किया.
वसंधरा राजे ने अपने बेटे दुष्यंत सिंह के साथ हाल ही में दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि ऐसे समय में जब पार्टी युवा नेताओं को लाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है, तब राष्ट्रीय नेतृत्व को राजे को राजस्थान की जिम्मेदारी देना ठीक नहीं लग सकता है.
वसुंधरा के आड़े क्या रहा?
उम्र
राजवाड़ा छवि
बीजेपी में परिवर्तन का दौर
स्थानीय नेताओं के बीच मतभेद
जातीय समीकरण
70 साल की राजे पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं. पार्टी उन्हें दरकिनार करे, उससे पहले ही उन्हें स्पष्ट करना पड़ा कि वो राजनीति से अभी रिटायर नहीं हो रही हैं. हालांकि, छत्तीसगढ़ और एमपी की तरह पार्टी ने नए लीडरशीप पर भरोसा जताया.
साल 2018 के चुनाव में जब बीजेपी हारी तब एक नारा खूब चला था. "मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं". यहीं से वसुंधरा की पटकथा लिखी जाने लगी थी. उसके बाद उन्होंने राज्य की राजनीति से दूर करने की कोशिश की गई, और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई.
वसुंधरा और बीजेपी के लिए आगे क्या?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि जितनी आसानी से शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह ने कुर्सी का त्याग किया है, उतनी आसानी से वसुंधरा नहीं मानने वाली.
सीएम के नाम की घोषणा से पहले वरिष्ठ पत्रकार प्रेम सिंह मीणा ने क्विंट हिंदी से कहा ....
"अगर बीजेपी आलाकमान राजे को सीएम पद नहीं देता है तो पहले वो आसानी से नहीं मानेगी. दूसरा अगर उन्हें प्रेशराइज कर मनाया गया तो तत्कालिक तौर पर वसुंधरा मान जाएंगी, लेकिन कांग्रेस में जो हाल सचिन पायलट और एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के साथ किया था, वही रवैया राजे अपना सकती हैं."
वक्त की नजाकत को समझें वसुंधरा?
पॉलिटिकल पंडितों का मानना है कि फिलहाल, आलाकमान स्थानीय नेताओं से ज्यादा मजबूत है. उसने चुनावी मैदान में भी खुद के सहारे उतरा था और परिणाम सबके सामने हैं. हालांकि, अमित शाह के साथ मीटिंग के बाद वसुंधरा लौटीं, लेकिन अब देर हो चुकी है. बीजेपी में परिवर्तन की बयार बह रही है. पुराने को साइडलाइन और नए को मौका दिया जा रहा है. एक जनरेशन चेंज से बीजेपी गुजर रही है. ऐसे में वसुंधरा राजे को भी वक्त की नजाकत को समझना चाहिए और एक कदम पीछे हटना चाहिए इसी में उनकी और बीजेपी दोनों की भलाई है.
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