ADVERTISEMENT

Rajasthan: 4 साल बाद फिर बागी तेवरों में लौटी वसुंधरा राजे, BJP के लिए ही चुनौती

Rajasthan Politics: आने वाले दिनों में BJP में वसुंधरा राजे के बागी तेवरों के चलते भारी उठापटक देखने को मिल सकती है

Published
Rajasthan: 4 साल बाद फिर बागी तेवरों में लौटी वसुंधरा राजे, BJP के लिए ही चुनौती
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

राजस्थान (Rajasthan) में प्रदेश की सत्ता से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को दूर हुए चार साल का समय हो गया है. इतना ही समय पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) को भी बीजेपी की प्रदेश स्तरीय राजनीति के हाशिए पर रहते हुए हो गया है. हालांकि कहने को तो वसुंधरा बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन राजस्थान से संबंधित पार्टी के निर्णय और कार्यक्रमों में उनकी भूमिका बेहद मामूली ही रहती है.

ADVERTISEMENT

पार्टी ने कई बार वसुंधरा राजे के सीधे जनसंपर्क और राजनितिक ताकत दिखाने वाले कार्यक्रमों में रोड़ा डाल कर उन्हें स्थगित करने पर भी मजबूर किया है. देवदर्शन यात्रा में कुछ इसी तरह का नजारा दिखाई दिया था. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि धौलपुर की महारानी एक बार फिर पार्टी को अपना जलवा दिखाने के लिए आतुर हैं. बीकानेर संभाग की दो दिवसीय दौरे पर इसका आगाज भी कर दिया गया है.

राजस्थान में सत्ता में आने की उम्मीद पाले बैठी बीजेपी में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी का सपना संजोए बैठे नेताओं को इस बात का अंदेशा था कि वसुंधरा चुनाव से पहले एकाएक सक्रिय होकर अपनी रणनीति को अंजाम देंगी.

इसलिए उनके हर एक राजनीतिक एक्शन पर नजर रखी जा रही थी. वसुंधरा समर्थकों ने बीकानेर यात्रा और उसके बाद जनसभाओं का ऐलान किया तो प्रदेश में बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व और मंशा पर पार्टी में ​सक्रिय बने हुए नेताओं ने बात दिल्ली दरबार तक पहुंचा दी. जवाब में वसुंधरा राजे के समर्थकों ने सामान्य मंदिर दर्शन और मुलाकातों की जानकारी देकर मामले को रफादफा किया.

वसुंधरा राजे की जनसभाओं में उमड़ता जनसैलाब 

(फोटो- क्विंट हिंदी)  

लेकिन प्रदेश बीजेपी के नेता की हैरानी की सीमा तब नहीं रही, जब वसुंधरा राजे ने बीकानेर के प्रसिद्ध जूनागढ़ और देशनोक में करणी माता मंदिर सहित दो दिन में पांच बड़ी सभाएं कर डालीं. इन सभाओं में वसुंधरा राजे का भाषण भी तीखे अंदाज पर राज्य की गहलोत सरकार पर हमला करने वाला रहा.

यह ठीक वैसा ही अंदाज था जो 2013 में दूसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वसुंधरा ने दिखाया था. उस समय भी वसुंधरा राजे का बीजेपी आलाकमान से कुछ इसी अंदाज में टकराव हुआ था. तब वसुंधरा ने अपने तीखे तेवर दिखाते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की मेवाड़ दर्शन को रद्द करवा दिया था.

ADVERTISEMENT

पार्टी आलाकमान ने यात्राओं के इस बखेड़े से बचने के लिए सितंबर में जोधपुर में बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को भी रामदेवरा की पदयात्रा को रोकने के निर्देश दिए थे. उसे मानते हुए पूनिया ने पदयात्रा में भीड़भाड़ से दूरी बना कर अकेले ही यात्रा पूरी कर पार्टी आलाकमान का मान भी रखा था और अपनी बात को भी पूरा कर लिया था. लेकिन वसुंधरा राजे पार्टी आलाकमान की सलाह को नजरअंदाज करती दिखाई दी थी.

जनता का अभिनंदन स्वीकार करती बीजेपी नेता वसुंधरा राजे 

(फोटो- क्विंट हिंदी)  

बीकानेर में वसुंधरा की सभाओं में भारी सैलाब उमड़ा था. लेकिन बीजेपी के संगठन ने दूरी रखी थी. संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को वसुंधरा के कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखने के लिए केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की तरफ से मोर्चा खोल गया. खुद उनके परिवार के सदस्यों ने वसुंधरा राजे के इन कार्यक्रमों को पार्टी से छुपा कर दूरी बनाने का आह्वान भी किया था. लेकिन मामला बढ़ता देख इन पोस्ट्स को सोशल मीडिया से हटा लिया गया.

राजस्थान में बीजेपी के दिग्गज नेता अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई केंद्रीय नेता खुले मंच से ऐलान कर चुके हैं कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम और काम पर लड़ा जाएगा और चुनाव में पार्टी का हथियार संगठन का मजबूत ढांचा होगा.

यह रणनीति साफ है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में वसुंधरा की भूमिका पार्टी आलाकमान बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है. दरअसल पार्टी आलाकमान का यह रूख 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही वसुंधरा राजे को लेकर बन गया था. तब लाख जतन करने के बाद भी चुनाव में राजे की मनमानी के आगे पार्टी आलाकमान को चुप्पी साधनी पड़ी थी.

जनता को संबोधित करती वसुंधरा राजे 

(फोटो- क्विंट हिंदी)

लेकिन उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में वसुंधरा को दूर रखते हुए 25 की 25 सीटों पर बीजेपी की जीत ने आलाकमान के इरादों को और मजबूत कर दिया था. तब से लेकर अब तक राजस्थान बीजेपी में इस तरह की राजनीतिक अदावत की पिक्चर पर्दे के पीछे चल रही है.

लेकिन अब विधानसभा चुनाव में एक साल बाकी होने से राजे समर्थक और खुद वसुंधरा राजे बगावती तेवर अपनाने के लिए आतुर हो गई हैं. आने वाले दिनों में बीजेपी में इसी तेवर के चलते भारी उठापटक देखने को मिलेगी.

ADVERTISEMENT

चार साल में वसुंधरा बनीं बड़ी ताकत

2018 के विधानसभा चुनाव में हार देखने के बाद वसुंधरा के जनाधार में गिरावट का दौर रहा. लेकिन चार साल बाद आज फिर से वह जनताकत से लबरेज दिखाई दे रही हैं तो उसके पीछे बीजेपी के रणनीतिकारों की कमी है.

एक तो पार्टी राजस्थान में वसुंधरा के कद का कोई दूसरा नेता तैयार नहीं कर पाई. वहीं दूसरी तरफ प्रदेश भर में वसुंधरा राजे के समर्थकों को पार्टी से जोड़ने के लिए कोई अभियान स्थानीय बीजेपी नेताओं ने नहीं चलाया. इसका परिणाम यह निकला कि बड़ी संख्या में पूर्व विधायक और वसुंधरा शासन में राजनीतिक नियुक्तियों का आनंद ले चुके नेता अपनी पूरी ताकत के साथ राजे के साथ जुड़ने का मन बना चुके हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

ADVERTISEMENT
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
0
3 माह
12 माह
12 माह
मेंबर बनने के फायदे
अधिक पढ़ें
ADVERTISEMENT
क्विंट हिंदी के साथ रहें अपडेट

सब्स्क्राइब कीजिए हमारा डेली न्यूजलेटर और पाइए खबरें आपके इनबॉक्स में

120,000 से अधिक ग्राहक जुड़ें!
ADVERTISEMENT
और खबरें
×
×