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RSS के टॉप लीडिरशिप में बदलाव:अतुल लिमये-आलोक कुमार कौन हैं, दोनों को प्रमोशन क्यों?

RSS ने लोकसभा चुनाव से पहले अपनी टॉप लीडरशिप की टीम में क्यों बदलाव किया है?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में अपनी टॉप लीडरशिप की टीम में बड़ा बदलाव किया है. नागपुर में संपन्न हुई बैठक में संघ ने अपनी शीर्ष टीम में दो नए और युवा चेहरों को शामिल किया है, जिसमें अतुल लिमये और आलोक कुमार को सह सरकार्यवाह (संयुक्त महासचिव) के रूप में प्रमोट किया गया है. दोनों लंबे समय से क्षेत्र प्रचारक के तौर पर काम कर रहे थे.

अतुल लिमये और आलोक कुमार कौन हैं? RSS ने दोनों को टॉप लीडरशीप के लिए क्यों चुना? और दोनों को सह सरकार्यवाह बनाने के पीछे की वजह क्या है?

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अतुल लिमये कौन हैं?

अतुल लिमये महाराष्ट्र से आते हैं और अब तक वो पश्चिमी क्षेत्र में संघ के 'क्षेत्र प्रचारक' थे. जानकारी के अनुसार, लिमये ने महाराष्ट्र में संघ के काम और विस्तार की देखरेख की थी, जिसमें गुजरात और गोवा के अलावा नागपुर में आरएसएस मुख्यालय भी शामिल है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, लिमये ने महाराष्ट्र और गुजरात में काफी साल तक रहकर संघ के विस्तार का काम किया है.

आलोक कुमार कौन हैं?

आलोक कुमार संयुक्त राष्ट्रीय प्रचार प्रभारी रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले कुमार 1988 में नैनीताल में जिला प्रचारक के रूप में संघ में शामिल हुए थे. मेरठ के प्रांत प्रचारक बनने से पहले उन्होंने हरियाणा में विभाग प्रमुख के रूप में काम किया. 2014 में, उन्हें पश्चिमी यूपी के क्षेत्र प्रचारक के रूप में प्रमोट किया गया और बाद में उनका अधिकार क्षेत्र उत्तराखंड तक बढ़ा दिया गया. पिछले कुछ समय से वह रांची में रहकर झारखंड में संघ का काम देख रहे हैं.

संघ से जुड़े जानकारों की मानें तो आलोक कुमार ने क्षेत्र में संघ के प्रभाव और काम को मजबूत किया है. माना जाता है कि कुमार ने पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत में भूमिका निभाई थी.

आलोक कुमार को प्रदीप जोशी की जगह प्रमोट किया गया है, जिन्होंने अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बड़े पैमाने पर काम किया है.

RSS ने दोनों को क्यों चुना?

आलोक कुमार और अतुल लिमये की उम्र अभी 50 साल के करीब है. वो संघ में सह सरकार्यवाह के तौर पर सबसे कम उम्र के सदस्य हैं. दोनों की संयुक्त महासचिव के तौर पर नियुक्ति युवाओं को संघ से जोड़ने के क्रम में देखी जा रही है.

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जानकारी के अनुसार, संघ को लगता है कि दोनों की नियुक्ति युवाओं को आरएसएस से जोड़ने में मददगार साबित हो सकती है.

RSS ने लोकसभा चुनाव से पहले अपनी टॉप लीडरशिप की टीम में क्यों बदलाव किया है?

RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में शामिल हुए सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले.

(फोटो: RSS/X)

संघ से जुड़े लोगों की मानें तो, RSS नई लीडरशिप को तैयार करने में जुटी है. उसका फोकस आने वाले समय में बदलती राजनीतिक परिस्थितियों पर है इसलिए दो युवा नेतृत्व को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.

अतुल-आलोक को सह सरकार्यवाह बनाने के पीछे की वजह क्या है?

दरअसल, सह सरकार्यवाह की पोस्ट आरएसएस में नंबर तीन की मानी जाती है. 27 सितंबर 2025 को आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष मनाएगी. शताब्दी वर्ष से पहले संघ ने देश और समाज में बड़े बदलाव को लेकर खास प्लानिंग की है. उनका जोर समाज में बड़ा परिवर्तन लाने का है.

जानकारी के अनुसार, शताब्दी वर्ष में संघ ने देश में एक लाख शाखाएं बनाने का टारगेट रखा है. इसके लिए संघ ने युवाओं को फोकस किया है. यही वजह है कि संघ ने दो युवा चेहरों को टॉप लीडरशिप में प्रमोट किया है.
RSS ने लोकसभा चुनाव से पहले अपनी टॉप लीडरशिप की टीम में क्यों बदलाव किया है?

RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में मौजूद स्वयंसेवक.

(फोटो: RSS/X)

इसके अलावा जो अन्य मुख्य वजह है वो है झारखंड और महाराष्ट्र में बीजेपी का कमजोर होना. दरअसल, RSS का मुख्यालय नागपुर, महाराष्ट्र में स्थित है और फिर भी, बीजेपी लंबे समय से बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के बाद दूसरे नंबर की भूमिका निभाती रही है. देश में ताकतवर हिंदुत्व के चैंपियन के रूप में उनकी छवि के साथ, बीजेपी प्रदेश में कुछ खास नहीं कर सकी और शिवसेना की छत्रछाया में ही रही.

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हालांकि, बाल ठाकरे के निधन के बाद बीजेपी ने 'हिंदुत्व' की कमान संभालने का फैसला किया और इसका उसे लाभ भी मिला, लेकिन फिर भी वो अब तक महाराष्ट्र में मजबूत नहीं हो पाई है. उसे आज भी किसी न किसी सहारे के जरूरत पड़ती रही है.

वहीं, शिवसेना में टूट और उद्धव ठाकरे के कांग्रेस- शरद पवार के साथ जाने से बीजेपी को फायदा हुआ है, इसीलिए अब ऐसा पहली बार होगा की भगवा दल राज्य में 30 से अधिक सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहा है, जो उसके मिशन 370 के लिए अहम है.

इसके अलावा महाराष्ट्र में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में संघ अपनी टीम को मजबूत करने में जुटी है ताकि बीजेपी का मिशन सफल हो सके.

कुछ ऐसी ही स्थिति झारखंड में भी बीजेपी की है, जहां पार्टी का हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम के सामने संघर्ष करना पड़ रहा है. पिछले साढ़े चार वर्षों में बीजेपी आदिवासी बाहुल्य राज्य में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाई है. हालांकि, उसने संगठन में कुछ बदलाव जरूर किये हैं लेकिन अब संघ पर ही उसकी निगाह टिकी हुई, जो लगातार राज्य में विस्तार करने में जुटी है.

आरएसएस प्रदेश में आदिवासियों को भी जोड़ने की कोशिश में है. राज्य के वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन भी संघ की पसंद हैं. वो खुद राजभवन से निकल कर गांवों का दौरा कर रहे हैं, जहां पर बीजेपी कमजोर और जेएमएम मजबूत है. राज्यपाल बनने के बाद सीपी राधाकृष्णन ने राजभवन के दरवाजे भी आम जनता के लिए खोल दिये हैं. साथ ही जेएमएम की नीतियों को भी कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं है. ऐसे में संघ का मुख्य फोकस झारखंड में बीजेपी को मजबूत करना है.

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जानकारी के अनुसार, झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और राजद का गठबंधन भी बीजेपी की परेशानी का कारण है. पिछले कई उपचुनाव में बीजेपी को झटका लगा है. तो दूसरी तरफ ये गठबंधन लोकसभा चुनाव में भी साथ लड़ने जा रहा है. बीजेपी को लगता है कि हेमंत सोरेन के जेल जाने के कारण जेएमएम को साहनुभूति मिल सकती है. ऐसे में पार्टी इससे निपटना चाहती है.

माना जा रहा है कि आलोक कुमार बीजेपी नेतृत्व को राज्य की जमीनी हकीकतों से अवगत कराएंगे और कमजोरियों को दूर करने के तरीके सुझाएंगे. कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड भी बीजेपी और संघ के लिए उम्मीद की बड़ी किरण है.

कुल मिलाकर देखें तो संघ और बीजेपी को महाराष्ट्र और झारखंड से लोकसभा चुनाव में अधिक सीट आने की उम्मीद है. ऐसे में युवा जोश को प्रमोट कर दोनों को संघ और बीजेपी को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है.

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