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पायलट का गहलोत के खिलाफ मोर्चा,चुनाव से पहले राजस्थान कांग्रेस में 'रण' की वजह?

Sachin Pilot Ashok Gehlot Dispute: ऐसा पहली बार है कि गहलोत अपने आपको इतना 'असुरक्षित' महसूस कर रहे हैं.

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राजस्थान (Rajasthan) में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच की अदावत खुलकर सामने आ गयी है. राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट ने रविवार (9 अप्रैल) को ऐलान किया है कि वो 11 अप्रैल को प्रदेश में बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भष्टाचार की जांच को लेकर एक दिवसीय अनशन करेंगे.

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सचिन पायलट के ऐलान के बाद से राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर गहलोत बनाम पायलट का मुद्दा गर्मा गया है. सवाल उठ रहा है कि आखिर विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले पायलट ने ऐसा कदम क्यों उठाया है? क्या सचिन पायलट अब खुलकर आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं? या फिर अब पायलट का धैर्य जवाब दे चुका है और वो कांग्रेस हाईकमान को क्या संदेश देना चाहते हैं?

पायलट ने क्या कहा?

सचिन पायलट ने मांग की है कि वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के नेतृत्व वाली पिछली बीजेपी सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ गहलोत सरकार कार्रवाई करे.

मैंने पिछले साल 28 मार्च को मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था, और जब मुझे कोई जवाब नहीं मिला, तो मैंने उन्हें 2 नवंबर को फिर से लिखा. मैंने उनसे सभी मुद्दों की जांच करने का आग्रह किया, जो मैंने और सीएम गहलोत दोनों ने उठाया था. मैंने कहा कि चुनाव आ रहे हैं और हमें जनता को दिखाना होगा कि हमारे वादों और हमारे काम में कोई अंतर नहीं है.
सचिन पायलट, कांग्रेस विधायक

सचिन पायलट ने कहा कि सरकार आबकारी माफिया, अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और ललित मोदी हलफनामे के मामले में कार्रवाई करने में विफल रही है.

सचिन पायलट के बयान पर कांग्रेस का जवाब

कांग्रेस ने एक बयान जारी कर कहा कि राजस्थान सरकार ने लोगों को लाभान्वित करने वाली कई योजनाओं को लागू किया है, और वह अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ संगठन के सामूहिक प्रयासों के आधार पर नए जनादेश की मांग करेगी.

इसने राज्य को हमारे देश में शासन में नेतृत्व की स्थिति दी है. राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा राज्य में पार्टी संगठन के समर्पण और दृढ़ संकल्प से संभव हुई एक उत्कृष्ट सफलता थी.
जयराम रमेश, कांग्रेस महासचिव

सचिन पायलट के बयान के क्या मायने?

सचिन पायलट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जो भी आरोप लगाये, उससे एक बात साफ है कि उनके और गहलोत के बीच अब सुलह की गुंजाइश के बराबर है. दोनों के बीच की जारी अदावत, अब किस मोड़ पर पहुंचेगी, ये कांग्रेस नेतृत्व को ही तय करना होगा.

उन्होंने ने ये भी इशारा कर दिया कि अगर कांग्रेस हाईकमान उनके मुद्दे को सुलझाने में असमर्थ है या फिर दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो वो अब सारी बातों को जनता के बीच रखेंगे और वहीं से कुछ निर्णय संभव होगा. इसके लिए पायलट ने राजस्थान के जिलों का दौरा करना शुरू कर दिया है और लगातार अपनी बात को जनता के बीच रख रहे हैं.

सचिन पायलट का प्लान?

सचिन पायलट ने सरकार के खिलाफ एक दिन का अनशन का ऐलान करके बड़ा माइंड गेम खेला है. जैसे-अगर अशोक गहलोत वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जांच नहीं कराते हैं तो पायलट जनता के बीच मैसेज देने में कामयाब हो जाएंगे कि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं. दूसरा, इससे राजे सरकार को क्लीन चिट मिल जाएगी, जो गहलोत के खिलाफ जाएगी और तीसरा अगर जांच होती है तो पूरा क्रेडिट सचिन पायलट को मिलेगा कि उनके अनशन के बाद चीजें बदली.

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बैकफुट पर अशोक गहलोत!

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, पिछले साढ़े चार साल में जितना बीजेपी ने गहलोत को नहीं घेरा उससे अधिक परेशानी पायलट ने सरकार के सामने खड़ी कर दी. अशोक गहलोत तीन बार सीएम रह चुके हैं लेकिन ऐसा पहली बार है कि अपने पूरे कार्यकाल के दौरान गहलोत अपने आपको इतना 'असुरक्षित' महसूस कर रहे हैं.

कांग्रेस के सामने क्या संकट?

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो, सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ने कांग्रेस हाईकमान के सामने चुनौती खड़ी कर दी. पार्टी दोनों को गंवाना नहीं चाहती है. राजस्थान में गहलोत कांग्रेस का वर्तमान हैं तो पायलट भविष्य. ऐसे में पार्टी किसी एक को चुनने की स्थिति में नहीं और एक-एक कदम फूंक-फूंक रख रही है.

जानकारों की मानें तो, अशोक गहलोत की सरकार और संगठन दोनों में मजबूत पकड़ है. वो गांधी परिवार के वफादार माने जाते हैं और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ उनके अच्छे संबंध हैं. ऐसे में कांग्रेस चाहकर भी कुछ बड़ा कदम गहलोत के खिलाफ नहीं उठा पा रही है.

वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "कांग्रेस के सामने संकट ये है कि वो निर्णय नहीं कर पा रही है कि उसे क्या करना है. वो पायलट को रखना चाहती है या नहीं और अगर हां, तो फिर क्या पोजिशन देगी, लेकिन जो भी निर्णय है उसे पार्टी को जल्दी करना होगा."

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कांग्रेस को याद आ रहा पंजाब?

कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा कि पार्टी प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन करने के मूड में नहीं है. उन्होंने कहा, "हमारे सामने पंजाब का उदाहरण है. चुनाव में कुछ महीनों का वक्त बचा है. ऐसे में पार्टी कोई भी गलती नहीं करना चाहती है. पायलट और गहलोत विवाद पर हाईकमान निर्णय लेगा."

गहलोत पर कार्रवाई से क्यों बच रही कांग्रेस?

अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों एक-एक बार कांग्रेस हाईकमान को बगावती तेवर दिखा चुके हैं. लेकिन कार्रवाई सिर्फ पायलट खेमें पर हुई. सचिन पायलट को पीसीसी चीफ के साथ डिप्टी सीएम का भी पद गंवाना पड़ा था.

हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने 25 सिंतबर को CLP की मीटिंग बुलाकर प्रदेश में एक बार बदलाव की कोशिश की लेकिन वो असफल रही. इससे पार्टी की किरकिरी हुई. अब कांग्रेस को अच्छे से पता है कि अगर चुनाव के पहले कोई और प्रयास हुआ तो सरकार गिर सकती है.

इधर, पायलट और गहलोत विवाद पर बीजेपी ने चुटकी लिया है. राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सीपी जोशी ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "राजस्थान में सिर्फ कुर्सी हथियाने का खेल चला है."

राजस्थान में अशोक गहलोत के साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान जमकर भ्रष्टाचार हुआ. सरकार ने प्रदेश में विकास का कोई भी काम नहीं किया है. सचिन पायलट को कांग्रेस के 4.5 साल के भ्रष्टाचार को लेकर जरूर अनशन करना चाहिए.
सीपी जोशी, राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष
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पायलट क्यों दिखा रहे कांग्रेस को तेवर?

दरअसल, 2013 के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में 21 सीटों पर सिमट गयी थी. सचिन पायलट को जब पीसीसी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी तो उस वक्त कांग्रेस की स्थिति कमजोर थी. उन्होंने पांच साल तक जमीन पर रहकर काम किया और 2018 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई.

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने सचिन पायलट के बदौलत पूर्वी राजस्थान में क्लीन स्वीप किया था. 45 में से कांग्रेस को 43 सीट पर जीत मिली थी और इसका श्रेय सचिन पायलट को दिया गया था. उन्होंने जातीय समीकरण (मीणा, गुर्जर और जाट) को बहुत अच्छे से साधा था.

सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं. राजस्थान में गुर्जर–5%, मीणा 7% और जाट–10% हैं. तीनों ही समुदाय में पायलट की पकड़ मजबूत हैं और 2018 के चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा मिला था.

किन-किन राज्यों में गुर्जरों का प्रभाव?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान में 80 लाख, गुजरात में 60 लाख, जम्मू में 24 लाख, महाराष्ट्र में 45 लाख, कर्नाटक में 46 लाख, तमिलनाडु में 36 लाख, आंध्रप्रदेश में 24 लाख, उड़ीसा में 37 लाख, मध्यप्रदेश 42 लाख, छत्तीसगढ़ में 24 लाख, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2 करोड़, हिमाचल प्रदेश में 45 लाख, उत्तराखंड में 20 लाख, मिजोरम में 15 लाख और असम में 10 लाख गुर्जर हैं. लोकसभा की 55 सीटों पर गुर्जर समुदाय का प्रभाव हैं.

राजस्थान के 12 जिलों और 40 सीट पर गुर्जरों का प्रभाव

राजस्थान के 12 जिलों में गुर्जर समाज का प्रभाव है. भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनू जिलों को गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. प्रदेश में गुर्जर समाज 200 में से करीब 40 सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं.

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2018 में कांग्रेस को 7 सीट पर मिली जीत

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 12 सीटों पर गुर्जर समाज के प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया था, जिसमें से 7 नेता विधायक चुनकर आये थे.

शक्ति प्रदर्शन की तैयारी!

इन सबके अलावा, सचिन पायलट अनशन के जरिए शक्ति प्रदर्शन दिखाने की कोशिश में भी हैं. 11 अप्रैल को पायलट के कार्यक्रम में कितने विधायकों और पदाधिकारी पहुंचेंगे. ये देखने वाली बात होगी. क्योंकि इसका सीधा असर कांग्रेस हाईकामन और अशोक गहलोत पर पड़ेगा.

पायलट के पास क्या विकल्प?

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, सचिन पायलट को पता है कि इस सरकार के बाद कोई नेता उनके कद का राजस्थान कांग्रेस में नहीं है. ऐसे में वो अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए कांग्रेस हाईकमान और गहलोत को बार-बार चुनौती दे रहें हैं और बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जमीन पर उनकी पकड़ मजबूत हैं. हालांकि, पायलट जैसे नेता पर BJP और AAP दोनों की नजर है.

बीजेपी से जुड़े एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि पायलट बड़े नेता हैं और उनका जनाधार बड़ा है. कांग्रेस को दोनों नेताओं के विवाद ने कमजोर जरूर किया है और इसका फायदा बीजेपी को चुनाव में मिलेगा.

हालांकि, सचिन पायलट और गहलोत के विवाद ने एक बार फिर कांग्रेस की कमजोर स्थिति को बयां कर दिया है. कांग्रेस हाईकमान को सब पता है बावजूद इसके वो दोनों को एक मंच पर खुले मन से लाने में असफल रही हैं. ये कांग्रेस को सेल्फ गोल की तरह ले जाता दिखा रहा है.

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