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मुलायम को चेहरा बना SP लड़ सकती है उपचुनाव, गिरेंगे कई ‘विकेट’ 

लोकसभा चुनाव में एसपी की करारी हार के बाद मुलायम सिंह यादव अचानक एक्टिव हो गए हैं.

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लोकसभा चुनाव में एसपी की करारी हार के बाद मुलायम सिंह यादव अचानक एक्टिव हो गए हैं. चुनावी नतीजों के दिन 23 मई को जब समाजवादी पार्टी के लखनऊ दफ्तर में सियापा पसरा हुआ था उस दिन मुलायम सिंह यादव दफ्तर पहुँचे थे. इसके बाद से ही मुलायम सिंह यादव पार्टी कार्यालय में लगातार पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. उनकी ये सक्रियता यूपी की सियासत में नए संकेतों की ओर इशारा कर रही है. दरअसल चुनाव-दर-चुनाव हार का सामना कर रहे अखिलेश यादव ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में खाली हुई MLA की सीटों पर समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ सकती है.

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साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने यूपी विधानसभा में प्रचंड जीत के साथ सत्ता में वापसी की थी. एसपी ने 247 सीटें जीतकर मायावती का बोरिया बिस्तर समेट दिया था. बीएसपी को 80 सीटें तो बीजेपी के खाते में 47 सीटें आईं. मुलायम सिंह ने जीत का सेहरा अपने बेटे अखिलेश यादव के सिर पर बांधा और उन्हें सत्ता सौंप दी. लेकिन एक साल बाद ही इस जीत का साइड इफेक्ट देखने को मिलने लगा. नेताजी की पार्टी में अखिलेश के समाजवाद का सिक्का चलने लगा. शुरुआती दिनों में तो अखिलेश यादव, चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह के करीबी नेताओं का लिहाज करते रहे. लेकिन इसकी उम्र लंबी नहीं थी, उन्होंने रिश्ते की डोर तोड़ने के साथ ही सम्मान का चोला उतार फेंका.

पुराने ढर्रे को हटाना चाहते थे अखिलेश!

अखिलेश यादव प्रोफेशनल तरीके से पार्टी को चलाना चाहते थे लेकिन पुराने ढर्रे पर चलने वाले समाजवादियों को ये रास नहीं आता था. लेकिन अखिलेश यादव ने अपने पैर रोके नहीं और इसके लिए उन्होंने अपने पिता की भी परवाह नहीं की. दरअसल ऑस्ट्रेलिया में पढ़े लिखे अखिलेश यादव नई सोच के नए नेता थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी में नया कल्चर डेवलप किया, जिसमें भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के लिए रत्तीभर जगह नहीं थी.

वो जानते थे कि सोशल मीडिया के इस दौर में एक छोटी सी गलती उनके लिए बड़ी मुसीबत बन सकती थी. उन्होंने बाहुबल और दबंग छवि वाले नेताओं को सरकार से दूर करना शुरू कर दिया. हालांकि, अखिलेश यादव को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक के आगे समाजवादी पार्टी सिर्फ सैफई परिवार तक सिमट गई.
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फेल हुआ अखिलेश यादव का फॉर्मूला

साल 2014 में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अखिलेश यादव सकते में जरूर थे लेकिन खुद को नहीं बदलने दिया. अखिलेश यादव की कार्यशैली को लेकर सवाल उठते रहे और साल 2017 आते-आते मुलायम परिवार में कलह की खबरें बाजार में उछलने लगी. अखिलेश की बगावत ने मुलायम सिंह को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया और वो खुद पार्टी अध्यक्ष बन गए. यूपी में समाजवादी पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए अखिलेश यादव ने नये फॉर्मूले पर काम किया.

साल 2017 में UP विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ समझौता किया और नारा दिया-“UP को ये साथ पसंद है,” लेकिन UP ने इस साथ को पसंद नहीं किया. और दो सौ से ज्यादा सीट पाने वाली एसपी में सिर्फ 47 सीटों में सिमट गई.

अखिलेश ने दूसरे प्रयोग की तरह एसपी की सियासी दुश्मन के तौर पर मानी जाने वाली पार्टी बीएसपी से हाथ मिलाया. लेकिन ये समझौता भी समाजवादी पार्टी के काम नहीं आया. जीरो सीट वाली BSP 10 सीट हासिल कर पाई जबकि एसपी सिर्फ पांच सीटों पर अटक गयी.

क्या फिर एसपी का चेहरे बनेंगे मुलायम ?

चुनाव-दर-चुनाव एक्सपेरिमेंट करने वाले अखिलेश यादव पार्टी को फिर से पटरी पर लाने के लिए मंथन कर रहे हैं. मुश्किल की इस घड़ी में मुलायम सिंह उनके साथ खड़े दिखाई पड़ रहे हैं. मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव के साथ एक पिता और नेता के तौर पर साथ हैं. सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के बाद मुलायम सिंह पूरी तरह सक्रिय हैं और अखिलेश यादव से लगातार संपर्क में है. उन्होंने अखिलेश को खास हिदायत भी दी है. दूसरी तरफ अखिलेश यादव समझ चुके हैं कि समाजवादी पार्टी को यूपी में फिर से खड़ा करना है तो सोशल मीडिया वाले युवाओं के साथ पुराने अनुभव का होना बेहद जरूरी है. अगर पार्टी में युवा जोश वाले नेता आगे रहेंगे तो लंबा सियासी अनुभव रखने वाले समाजवादियों को भी साथ रखना पड़ेगा. समाजवादी पार्टी के विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि हालिया चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह को अपना चेहरा बना सकते हैं. प्रदेश की 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मुलायम सिंह की अगुवाई में पार्टी चुनाव लड़ सकती है.

  • लोकसभा चुनाव के बाद यूपी की 11 सीटों पर उपचुनाव होना है.
  • चुनाव जीतने वालों में बीजेपी के आठ विधायक हैं, जिसमें तीन राज्य सरकार में मंत्री थे
  • इसके अलावा एसपी, अपना दल और बीएसपी के एक-एक विधायक सांसद चुने गए हैं.

बड़े बदलाव के मूड में है समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव की कामयाबी के नाम पर सिर्फ गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के नतीजे ही हैं, जिनमें एसपी को जीत मिली थी. बीजेपी को साधने के लिए निकला अखिलेश का हर तीर तुक्का बन गया. इन फैसलों के हश्र के बाद अब अखिलेश के पास भी अब ज्यादा ऑप्शन नहीं रह गया है. अब लोग भी कहने लगे हैं कि मोदी लहर में समाजवादी पार्टी को अगर कोई यूपी में फिर से खड़ा करने का माद्दा रखता है तो वो सिर्फ और सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही हैं. अखिलेश यादव भी इस ओर गंभीर नजर आ रहे हैं. चुनाव नतीजों के बाद लिए गए फैसलों के बाद ये देखने को भी मिल रहा है.

अखिलेश यादव ने टीवी पर पार्टी का पक्ष रखने वाले सभी प्रवक्ताओं की छुट्टी कर दी है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी के चारों फ्रंटल संगठन के प्रभारी भी उनके निशाने पर हैं. कभी भी चारों को हटाया जा सकता है, इसमें समाजवादी युवजन सभा, समाजवादी छात्रसभा, समाजवादी लोहिया वाहिनी और मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड शामिल हैं. यही नहीं संगठन में लंबे समय से सत्तासीन बड़े नेताओं पर भी गाज गिरनी तय मानी जा रही है.

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