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लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल पटेल का क्यों बढ़ रहा है विरोध?

#SaveLakshadweep नाम से सोशल मीडिया कैंपेन चलाकर लक्षद्वीप के प्रशासक को वापस भेजे जाने की मांग हो रही है.

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पिछले कुछ दिनों से लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल पटेल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार में गृहमंत्री रह चुके प्रफुल पटेल को 5 दिसंबर 2020 यानी करीब 5 महीने लक्षद्वीप की जिम्मेदारी दी गई थी. अब लक्षद्वीप स्टूडेंट एसोसिएशन समेत यहां के कई छात्र संगठन और राजनीतिक दल प्रफुल पटेल की कई नीतियों को ‘जनविरोधी’ और ‘अधिनायकवादी’ बताकर प्रदर्शन कर रहे हैं ताकि वो नेशनल मीडिया का भी ध्यान अपनी दिक्कतों की तरफ खींच सकें.

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एक तरफ #SaveLakshadweep नाम से सोशल मीडिया कैंपेन चलाकर लक्षद्वीप के प्रशासक को वापस भेजे जाने की मांग हो रही है. वहीं दूसरी तरफ केरल के कुछ सांसदों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी भी लिखी है. इस लेटर में कहा गया है कि पटेल की तरफ से जारी सभी आदेशों का मकसद "लक्षद्वीप के लोगों के पारंपरिक जीवन और सांस्कृतिक विविधता को नष्ट करना है."

अब ये आदेश क्या हैं और प्रफुल पटेल के खिलाफ इतना असंतोष क्यों है, इसे समझते हैं-

कोरोना से जुड़े नियम-कायदे बदले गए

लक्षद्वीप में कोरोना से निपटने के लिए जो SOP बनाए गए थे, पटेल ने अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद ही उन्हें बदलना शुरू कर दिया. इससे पहले SOP ये था कि कोच्चि से आने वाले लोगों को अनिवार्य तौर पर क्वॉरंटीन में रहना होगा. लेकिन प्रशासन प्रफुल पटेल ने इसे ‘एकतरफा’ तरीके से बदल दिया और ये नियम बनाए गए कि जिस किसी के पास ट्रैवल से 48 घंटे पहले का आरटी-पीसीआर निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट होगा, उसे द्वीप पर आने की अनुमति होगी.

सांसद एलामारन करीम ने 23 मई को राष्ट्रपति को जो लेटर लिखा था, उसमें कहा गया है- “ द्वीप के लोगों के मुताबिक, SOP में इस तरह के अनियोजित और अवैज्ञानिक बदलाव की वजह से कोरोना वायरस के मामले बढ़े हैं.”

पिछले साल जब पूरे देश में कोरोना वायरस फैल रहा था, उस वक्त भी लक्षद्वीप में कोरोना वायरस के केस नहीं पाए गए थे. लेकिन 18 जनवरी, 2021 को पहला केस आने के बाद से माहौल बदल गया. 23 मई को जारी आंकड़ों के मुतबाकि, लक्षद्वीप में 6 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं. एक्टिव केस की संख्या 1,200 के करीब है.

अब प्रफुल पटेल से लक्षद्वीप के लोगों की दिक्क्त सिर्फ कोविड केस तक ही सीमित नहीं है.

बीफ का मांस प्रतिबंधित, शराब से प्रतिबंध हटा

यहां की कुल आबादी में 96 फीसदी मुस्लिम हैं. 25 फरवरी, 2021 को एनिमल प्रिजर्वेशन रेगुलेशन-2021 के तहत गोमांस उत्पादों के वध, परिवहन, बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया गया, इसका खुले तौर पर विरोध भी हुआ.

ऐसे में केरल से एक और सांसद बिनॉय विश्वम ने 24 मई को राष्ट्रपति को लेटर लिखा था. लेटर में उन्होंने लिखा- ‘एक गवर्निंग अथॉरिटी का अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए ऐसी घोर अवहेलना और लगातार उन्हें नुकसान पहुंचाना कतई स्वीकार नहीं है.’

सांसद करीम कहते हैं कि जानवरों के संरक्षण के नाम पर ऐसा ‘अलोकतांत्रिक और जनविरोधी’ नियम, लोगों की जिंदगी और पसंद के खाने की आजादी के खिलाफ है. वो कहते हैं कि कई लोगों की आजीविका इस नए कायदे से छिन जाएगी, किसी स्थानीय व्यक्ति ने ऐसी कभी कोई मांग की ही नहीं थी और नियम बनाते वक्त किसी स्थानीय से बातचीत भी नहीं किया गया.

ताज्जुब की बात ये है कि मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले इस द्वीप पर बीफ बैन का प्रस्ताव लाया गया और अल्कोहल बैन हटा दिया गया.

सांसद विश्वम का कहना है कि यहां के स्थानीय लोगों की मान्यताओं के हिसाब से शराब पर प्रतिबंध था. 'अब प्रशासन ने पर्यटन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में शराब लाइसेंस जारी करना शुरू कर दिया है. इस दौरान यहां सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरण को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया.'

करीम ये भी कहते हैं कि ''इस नए फैसले का मकसद लोगों का आपसी सद्भाव खत्म करना और धार्मिक मान्यताओं को नुकसान पहुंचाना है.''

लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन, 2021

यहां के लोग इन सभी नए नियम-कानूनों में से सबसे ज्यादा नाराज 'लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन, 2021' के प्रस्ताव से हैं. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नए रेगुलेशन के तहत ‘एडमिनिस्ट्रेटर को टाउन प्लानिंग या किसी दूसरे डेवलपमेंट एक्टिविटी के लिए यहां के स्थानीय लोगों को उनकी संपत्ति से हटाने या ट्रांसफर करने का अधिकार दिया गया है.’

ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में कहा गया है कि सरकार के पास "चल या अचल संपत्ति का अधिग्रहण, धारण, प्रबंधन करने की शक्तियां हैं"

लक्षद्वीप स्टूडेंट एसोसिएशन ने इस रेगुलेशन को रद्द करने के लिए कैंपेन शुरू कर किया है. इस बीच लक्षद्वीप के समर्थन में आवाज उठाने पर NSUI की यूनिट केरल स्टूडेंट यूनियन के ट्विटर अकाउंट को कथित तौर सस्पेंड कर दिया गया है.

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गुंडा ऐक्ट

देश में सबसे कम क्राइम रेट होने के बावजूद, प्रफुल पटेल ने जनवरी में लक्षद्वीप के लिए एक रिफॉर्म 'प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल ऐक्टिविटीज ऐक्ट (PASA)' पेश किया. इसे ऐक्ट को 'गुंडा ऐक्ट' के तौर पर भी जाना जाता है. इस ऐक्ट के तहत, किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक तौर पर जानकारी दिए बिना, एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.

प्रफुल पटेल की की सिर्फ उनकी नीतियां ही नहीं हैं जिन पर सवाल उठ रहे हैं...

2020 में दिनेश्वर शर्मा की आकस्मिक मृत्यु के बाद, पटेल को लक्षद्वीप का एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया गया था.  मोदी के करीबी माने जाने वाले पटेल को 2016 में केंद्रशासित प्रदेशों दादरा और नगर हवेली, और दमन और दीव का एडमिनिस्ट्रेटर बनाया गया था. बता दें कि इस पद पर सिर्फ IAS अधिकारियों को नियुक्त किया जाता रहा है, लेकिन पटेल के नियुक्ति इस प्रथा से अलग हटकर की गई.

इस साल की शुरुआत में, उन पर दादरा और नगर हवेली के सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था. सांसद मोहन डेलकर ने अपने 15 पन्नों के सुसाइड नोट में पटेल का नाम लिखा था. 22 जनवरी को डेलकर अपने होटल के कमरे में लटके पाए गए थे.

डेलकर के बेटे अभिनव ने आरोप लगाया था कि पटेल, डेलकर से 25 करोड़ की मांग कर रहे थे और परेशान कर रहे थे. साथ ही, धमकी दे रहे थे कि अग उन्होंने उनकी मांग पूरी नहीं कि तो डेलकर को PASA के तहत झूठे मामले में फंसा देंगे.

राज्यसभा सांसद डॉ. वी शिवदासन ने द क्विंट को बताया, “ये देश के संघीय ढांचे के खिलाफ एक हमला है. हम लोगों को लामबंद करेंगे और बीजेपी के इन नफरत भरे एजेंडे से लड़ेंगे.” उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ''एडमिनिस्ट्रेटर बीजेपी के नफरत के झंडे को थामे हुए हैं और तेजी से लक्षद्वीप को बड़ी जेल में बदल रहे हैं.''

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