सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 5 जजों की बेंच ने इलेक्शन कमिश्नर की चुनाव प्रक्रिया को लेकर की गई दायर याचिका पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री , चीफ जस्टिस और लोकसभा में विपक्ष के नेता की कमेटी की सिफारिश के आधार पर ही होगी. इसके अलावा किसी भी चुनाव आयुक्त हो पद से हटाने की प्रक्रिया मख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होगी. न्यायमूर्ति के.एम. जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह समिति तब तक रहेगी जब तक संसद इस संबंध में कानून नहीं बना देती.
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी एक नाम की सिफारिश राष्ट्रपति से करे और राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हो.
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना होगा. एक कमजोर चुनाव आयोग होने चुनाव प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है और इससे आयोग की कुशलता प्रभावित होगी. बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की शक्ति के साथ जुड़ा हुआ है और एक आम आदमी के हाथों में शांतिपूर्ण बदलाव की सुविधा प्रदान करता है.
कोर्ट ने 24 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था
बता दें कि जस्टिस के.एम. जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार की बेंच ने 24 नवंबर, 2022 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अगर चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार द्वारा उठाए गए हर कदम पर संदेह करना शुरू कर दिया, तो इसका प्रभाव संस्था की अखंडता और स्वतंत्रता पर पड़ेगा.
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