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एक वीडियो से उत्तराखंड सरकार में भूचाल, CM रावत पर केस की पूरी कथा

उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर लाखों रुपये की रिश्वत लेने का आरोप

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री CM त्रिवेंद्र सिंह रावत इन दिनों भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर चर्चा में हैं. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रावत के खिलाफ CBI जांच के आदेश दे दिये थे, जिसके बाद रावत ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सीबीआई जांच पर रोक लगा दी है. अब इस मामले को लेकर विपक्षी नेता और दल राज्य की सत्ता में बैठी बीजेपी को घेर रहे हैं. कांग्रेस और उत्तराखंड में डेब्यू कर रही आम आदमी पार्टी लगातार सीएम के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. समझिए कि आखिर ये पूरा मामला क्या है, जिसने उत्तराखंड की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है.

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कहां से हुई विवाद की शुरुआत?

इसी साल 24 जून को देहरादून के एक पत्रकार उमेश शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट डाला, लगभग 30 मिनट के इस वीडियो में उमेश कुमार शर्मा ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आक्रमक तरीके से एक के बाद एक कई आरोप लगाए. वीडियो में पत्रकार की तरफ से ये दावा किया गया कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं. घूसकांड कर चुके हैं. चुनाव के लिये नोटबंदी के बाद सगे संबंधियों के खाते में अवैध पैसे मंगवाए गए, खनन के क्षेत्र में भी सीएम की संलिप्तता, शराब की फैक्ट्रियों में भ्रष्टचार और पार्टनर संजय गुप्ता को लाभ पहुंचाने समेत कई बातें वीडियो में सुनी जा सकती हैं.

सीएम रावत पर क्या लगे हैं आरोप?

वीडियो में कहा गया कि झारखंड के अमृतेश चौहान ने नोटबंदी के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के निजी लाभ के लिए उनके सगे-संबंधियों के खाते में 25 लाख रुपये जमा कराए थे. इसमें रिटायर्ड प्रोफेसर हरेंद्र रावत और उनकी पत्नी का नाम था. जिनके बैंक खातों की जानकारी भी शेयर करने की बात वीडियो में कही गई.

2016 के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम बनने से पहले झारखंड बीजेपी के प्रभारी थे. इसी दौरान उन पर करीब 25 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है.

पत्रकार के खिलाफ कैसे दर्ज हुई FIR

वीडियो सामने आने के बाद 31 जुलाई को रिटायर्ड प्रोफेसर हरेंद्र रावत ने पत्रकार उमेश कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. जिसमें कहा गया कि ये सभी आरोप आधारहीन और झूठे हैं. इससे सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि को नुकसान पहुंचा है.

इस मामले में देहरादून पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुये पत्रकार उमेश शर्मा और शिवप्रसाद सेमवाल को हिरासत में ले लिया था. पत्रकार के खिलाफ IPC की धारा 420, 467, 468, 469, 471 और 120-B के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था.

जब हाईकोर्ट पहुंचा पूरा मामला

पुलिस की कार्रवाई के बाद उमेश शर्मा की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुये कहा कि मामला गंभीर है. इस दौरान कोर्ट ने अगली सुनवाई तक पत्रकार की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. साथ ही उन्हें जांच में सहयोग करने को कहा.

लेकिन 27 अक्टूबर को इस मामले पर सभी पक्षों को सुनने के बाद उत्तराखंड हाई कोर्ट (नैनीताल हाई कोर्ट) ने पत्रकार के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने और सीएम के खिलाफ लगाए गए आरोपों की CBI जांच के आदेश जारी कर दिए. साथ ही ये भी आदेश दिया गया कि इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज कोर्ट में जमा कराए जाएं.
  • हाईकोर्ट में ये फैसला जस्टिस रविन्द्र मैठाणी की सिंगल बेंच ने सुनाया
  • इस मामले में याचिकाकर्ता पत्रकार उमेश शर्मा की तरफ से कोर्ट में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा
  • फैसले के बाद सीएम रावत और उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का लिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट से सीएम को फिलहाल राहत

28 अक्टूबर को सीएम रावत ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिस पर 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत को राहत दे दी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सीएम को सुने बिना ही हाईकोर्ट का इस तरह का फैसला चौंकाने वाला है. क्योंकि पत्रकार ने मामले में सीबीआई जांच की मांग नहीं की है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीएम रावत की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सीएम का पक्ष सुने बिना FIR दर्ज नहीं की जा सकती, इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा.

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अब आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल नैनीताल हाई कोर्ट के CBI जांच वाले फैसले पर रोक लगा दी है. SC ने नोटिस जारी करते हुए चार हफ्ते में जवाब मांगा है. अब चार सप्ताह के बाद सभी पक्षों को सुनने के बाद क्या सामने आएगा ये देखना दिलचस्प रहेगा. लेकिन इस समय विपक्षी पार्टियां BJP को जमकर घेर रही हैं.

विपक्ष ने मांगा इस्तीफा

कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने मामले को लेकर राजभवन रुख किया है और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस्तीफे की मांग की है. वहीं आम आदमी पार्टी की ओर भी जमकर सीएम को घेरा जा रहा है. AAP की तरफ से राघव चड्ढा ने प्रेस कॉन्फ्रेस कर कहा है कि एक ओर पीएम मोदी सतर्कता सप्ताह की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं. सीएम रावत को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए. जबकि बीजेपी की ओर से सीएम का बचाव करते हुए कहा जा रहा है कि सभी आरोप झूठे और आधारहीन हैं.

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