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शरद यादव के साथ अनोखा संयोग: दोस्ती,सोच और संघर्ष,आखिरी कुछ ट्वीट में पूरी कहानी

Sharad Yadav Passes Away: लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ शरद यादव का रिश्ता कभी मीठा तो कभी तीखा रहा.

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"मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के यूपी निकाय चुनाव ओबीसी कोटा के बिना कराने के निर्देश पर रोक लगाने की सराहना करता हूं." राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव (Sharad Yadav) ने अपने निधन से कुछ दिन पहले 5 जनवरी को अपने आखिरी ट्वीट में यह बात कही थी.

भारत के सबसे बड़े समाजवादी नेताओं में से एक, शरद यादव का गुरुवार, 12 जनवरी की रात 75 साल की उम्र में निधन हो गया. किसान परिवार में जन्मे और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट शरद यादव का अपने विरोधियों के साथ भी अच्छे संबंध रहें.

आइए शरद यादव के कुछ आखिरी ट्वीट्स के जरिए उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर डालते हैं.

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Sharad Yadav: ओबीसी नेताओं में सबसे मजबूत आवाजों में से एक

यह शरद यादव का आखिरी ट्वीट था, जिन्हें उन्होंने 5 जनवरी को पोस्ट किया था.

1989 में शरद यादव तात्कालिक वीपी सिंह सरकार में कपड़ा मंत्री थे और ओबीसी के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करने वाले सबसे मुखर नेताओं में से एक थे. वीपी सिंह सरकार ने अगस्त 1990 में आयोग की सिफारिशों को लागू किया. जबकि दूसरी ओर सरकार को बाहर से समर्थन देने वाली बीजेपी ने राम मंदिर के मुद्दे पर विरोध तेज कर दिया था.

वीपी सिंह के इस फैसले ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी, जबकि शरद यादव अपने पूरे राजनीतिक जीवन में जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी बने रहे.

Sharad Yadav: कट्टर संविधानवादी, आपातकाल के विरोधी लेकिन इंदिरा गांधी का सम्मान किया 

शरद यादव ने यह ट्वीट पिछले साल 26 नवंबर को किया था.

इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल के शरद यादव कट्टर विरोधी थे. वे तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन में शामिल हुए और 1974 में जबलपुर से अपनी पहली चुनावी जीत दर्ज की.

उन्होंने 1976 में आपातकाल के दौरान लोक सभा की अवधि को एक वर्ष बढ़ाने के सरकार के फैसले का विरोध करते हुए यह सीट छोड़ दी और इसे संविधान से धोखा कहा था. हालांकि वे 1977 में आपातकाल के बाद के आम चुनावों में वापस इसी सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे.

दिलचस्प बात यह है कि शरद यादव ने हाल के एक ट्वीट में इंदिरा गांधी की "बुद्धिमत्ता, साहस और दृढ़ विश्वास" को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी थी.

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इंदिरा गांधी और शरद यादव के बीच संबंधों के बारे में बताते हुए कहा कि " मेरी दादी (इंदिरा गांधी) के साथ उनकी काफी राजनीतिक लड़ाई हुई थी. मगर उनके बीच सम्मान का रिश्ता था.. राजनीति के बारे में मैंने उनसे बहुत सीखा है."

Sharad Yadav: लालू-नीतीश के लिए कभी 'किंगमेकर' बने, कभी विरोधी

शरद यादव ने लालू यादव के किडनी ट्रांसप्लांट के बाद 5 दिसंबर को ट्वीट कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हुए यह ट्वीट किया था.

लालू यादव और शरद यादव के बीच रिश्ता कभी मीठा-कभी तीखा रहा. 1991 से लालू के साथ नजदीकियां बढ़ीं, फिर 1995 में नीतीश कुमार से लालू के अनबन के बाद उनके साथ बने रहे और RJD का गठन हुआ, फिर 1997 में लालू पर चारा घोटाले के आरोपों को लेकर अलग हो गए और आखिर में 1999 में मधेपुरा सीट से लालू के खिलाफ ही चुनाव लड़ा- शरद यादव ने बिहार की राजनीति में खुद को एक 'शिक्षित और प्रगतिशील यादव' के रूप में पेश करने की कोशिश की.

शरद यादव ने 1999 में यह सीट जीती, लेकिन 2004 में हार गए. उन्होंने 2000 के आसपास नीतीश कुमार की JDU के साथ हाथ मिलाया और मिलकर 2005 में बिहार में 15 साल पुराने लालू शासन को समाप्त कर दिया.

2017 में, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ गठबंधन करने के फैसले पर नीतीश कुमार के साथ उनका फिर मतभेद हो गया. उन्होंने अंततः 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल पार्टी बनाई, जिसका मार्च 2022 में JDU में विलय हो गया.

शरद यादव के निधन के बाद लालू यादव ने कहा कि ''मतभेदों के बावजूद उनके बीच कभी कड़वाहट नहीं रही.''

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Sharad Yadav: 'बड़े भाई' मुलायम सिंह यादव के साथ संबंध 

समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को अपना "बड़ा भाई" बताते हुए, शरद यादव ने 22 नवंबर को उनकी जयंती पर ट्विटर पर श्रद्धांजलि दी थी.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका प्रवेश संजय गांधी के निधन के बाद हुआ. 1981 में हुए उपचुनावों में शरद यादव को राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए उतारा गया था. यह सीट पहले संजय गांधी के पास थी.

हालांकि शरद यादव को राजीव गांधी के हाथों चुनावी हार का सामना करना पड़ा. वे 1986 में बदायूं से राज्यसभा सांसद बने और 1989 में इसी सीट से लोकसभा चुनाव जीते.

इस समय तक प्रभावशाली नेता बन चुके शरद यादव को यूपी में बनी 1989 की जनता दल सरकार में पहली बार मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है.

Sharad Yadav:  वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में मिली जगह

शरद यादव ने अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. याद रहे कि शरद यादव ने 1999-2004 के बीच वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल में तीन विभागों को संभाला था.

1980 के दशक में 2017 में एक प्रार्थना सभा के दौरान वाजपेयी के साथ अपनी पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए, शरद यादव ने बताया था कि कैसे वाजपेयी ने उन्हें जबलपुर से चुनाव जीतने पर लंच के लिए आमंत्रित किया था. शरद यादव ने आखिर में यह चुनाव जीत भी लिया.

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Sharad Yadav: सोनिया गांधी के साथ संबंध

शरद यादव ने 9 दिसंबर, 2022 को सोनिया गांधी के जन्मदिन पर यह ट्वीट किया था. यह हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की जीत के एक दिन बाद आया था.

सोनिया गांधी के साथ उनका संबंध ज्यादातर अच्छा माना जाता है. दोनों कई मौकों पर एक-दूसरे के समर्थन में सामने आए. जब 2004 में कांग्रेस की जीत के बाद सोनिया गांधी के पीएम बनने का विरोध इसलिए किया गया क्योंकि वो विदेशी मूल की हैं, तो वे सोनिया गांधी का समर्थन करने वाले विपक्षी नेताओं में से एक थे.

बिहार में जब 'महागठबंधन' सरकार - जिसमें जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं- 2017 में गिर गई, तो वे शरद यादव ही थे जिन्होंने इसे बचाने की कोशिश करते हुए सोनिया गांधी के साथ लगातार बैठकें कीं.

Sharad Yadav: सावित्रीबाई फुले को श्रद्धांजलि, लेकिन ...

शरद यादव महिला अधिकारों और शिक्षा की हिमायती सावित्रीबाई फुले के लिए श्रद्धांजलि दी. लेकिन फुले के सिद्धांतों के विपरीत महिला अधिकार के मुद्दे पर शरद यादव का राजनीतिक स्टैंड विवादास्पद रहा है.

शरद यादव को संसद में महिला आरक्षण के मुद्दे पर कट्टर विरोधी के रूप में जाना जाता था. 2009 में इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान शरद यादव ने जहर पीने तक की धमकी भी दी थी. हालांकि महिलाओं के लिए कोटा के खिलाफ उनका तर्क जातिगत विशेषाधिकार से जुड़ा था. उन्होंने कहा कि आरक्षण का यह प्रस्ताव उच्च जाति और शहरी महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा था, जो "ग्रामीण और निचली जाति की महिलाओं" की तुलना में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त थे.

शरद यादव ने "आरक्षण के टोकन" के बजाय जाति व्यवस्था को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा. दिलचस्प बात यह है कि यह वह समय था जब प्रतिभा पाटिल के रूप में भारत को पहली महिला राष्ट्रपति मिलीं थीं.

2015 में, उन्होंने फॉरेन इन्वेस्टमेंट पर एक बिल के खिलाफ बहस करते हुए दक्षिण भारतीय महिलाओं के रंग पर कमेंट किया था, जिसपर खूब विवाद हुआ.

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