ADVERTISEMENTREMOVE AD

उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के लिए बाला साहेब की विरासत कितनी प्रासंगिक?

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

बाला साहेब ठाकरे

शिवसेना

और उनका परिवार.

बाला साहेब (Bal Thackeray) नहीं रहे, शिवसेना में दो फाड़ हो गई है, और परिवार बिखर गया है. शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था. इसका मुख्य उद्देश्य समाजिक सेवा और मराठी माणूस के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ना था. लेकिन, समय के साथ-साथ शिवसेना के विचारों में धीरे-धीरे राजनीति रंग चढ़ने लगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिवसेना ने पहली बार साल 1990 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा, उसे लोगों का प्यार और सफलता दोनों मिली. उसे चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है और उसे सबसे ज्यादा चुनौती उसके अपने लोगों से ही मिली है.

पार्टी में दो फाड़ हो गई है. पार्टी का चुनाव चिन्ह शिंदे गुट के पास है, लेकिन बाला साहेब की विरासत पर दोनों गुट दावा कर रहे हैं. ऐसे में पार्टी की साख, ताकत और विश्वसनीयता सभी कुछ दांव पर है. यहां से शिव सेना बचेगी, बिखरेगी, क्या होगी, किधर जाएगी-कुछ पता नहीं. लेकिन, एक बात जो साफ है, वह यह है कि दोनों गुट बाला साहेब के रास्ते से डिरेल हो गए हैं.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

पिछले साल 2022 जून में, शिवसेना में टूट हुई थी.

(द क्विंट) 

19 जून 2023 को, शिवसेना गठन के 57 साल पूरे हो गये. इसको लेकर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट, अलग-अलग रैली कर रहे हैं. हालांकि, रैली से पहले, दोनों के बीच पोस्टर पॉलिटिक्स का खेला शुरू हो गया, जिसमें एक-दूसरे पर निशाना साधा गया है.

उद्धव ठाकरे गुट सेंट्रल मुंबई के सायन स्थित शनमुखानंदा हॉल में कार्यक्रम कर रहा है. शिंदे गुट उत्तर पश्चिम मुंबई के गोरेगांव स्थित नेस्को मैदान में रैली कर रहा है.

इस आर्टिकल में हम आपको मुख्यतः तीन सवाल का जवाब देंगे?

  1. दोनों गुटों की रैली के क्या मायने हैं?

  2. दोनों गुटों के लिए बाल ठाकरे कैसे प्रासंगिक हैं?

  3. शिंदे-उद्धव के सामने क्या चुनौती?

0

दोनों गुटों की रैली के क्या मायने हैं?

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की रैली शिवसेना की स्थापना दिवस को लेकर हो रही है. 19 जून 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना का निर्माण किया था. लेकिन 2022 में पार्टी दो गुटों में टूट गयी, जिसमें एक पर मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का और दूसरे पर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कब्जा है.

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल 2022 जून में ही शिवसेना में टूट हुई थी, जिसके बाद एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की राह अलग हो गयी थी. तब से लेकर अब तक, दोनों गुट एक दूसरे पर हमलावर हैं.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

उद्धव ठाकरे (बाएं) और  सीएम एकनाथ शिंदे.

(फोटो: ट्विटर/ शिवसेना, एकनाथ शिंदे)

हालांकि, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब उद्धव और शिंदे रैली कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं. इससे पहले पिछले साल 2022 में, दशहरा के मौके पर भी दोनों ने रैली कर अपने ताकत का एहसास कराने की कोशिश की थी. और अब एक बार फिर सात महीने बाद, दोनों एक दूसरे पर निशाना साधते दिखेंगे.

इस रैली की खास बात यह है कि दोनों एक-दूसरे पर 'धोखा' देने का आरोप लगाने के साथ, हिंदुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और बाला साहेब ठाकरे की असली विरासत संभालने का दावा करेंगे. इसके अलावा, रैली के जरिए अपनी ताकत का एहसास विरोधियों के अलावा अपने सहयोगियों को भी कराएंगे.

रैली के पहले, शहर में लगे पोस्टर में एक-दूसरे पर हमला करने की कोशिश हुई और इसमें असली शिवसैनिक होने का दावा किया गया. यानी लड़ाई से पहले परसेप्शन की लड़ाई शुरू हो गई है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "स्थापना दिवस के साथ शिवसेना में टूट के भी एक साल लगभग पूरे हो रहे हैं. हाल के दिनों में कई ऐसे बयान भी सामने आये हैं, जिसमें दावा किया गया है कि दोनों दलों के कई नेता साथ छोड़कर जा सकते हैं. उद्धव गुट में ऐसा हुआ भी है. ऐसे में कौन कितनी भीड़ जुटा पाता है, ये भी देखना अहम है."

बाला ठाकरे क्यों प्रासंगिक?

शिवसेना में टूट के बाद दोनों पार्टियों के सिंबल अलग जरूर हो गये, लेकिन एक बात कॉमन है कि दोनों पार्टियों का झंडा भगवा हैं. और दोनों शिंदे और उद्धव गुट, बाला साहब की विरासत पर कब्जा करने को लेकर ताल ठोक रही हैं.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

बाल ठाकरे

फोटो- क्विंट हिंदी

रैली से पहले शुरू हुए पोस्टर पॉलिटिक्स में भी इसकी झलक दिखी. दोनों दलों की तरफ से लगाये गये पोस्टर में दिवंगत बाल ठाकरे की तस्वीर है. शिंदे गुट द्वारा लगाए गए होर्डिंग्स में बाल ठाकरे के साथ उनके राजनीतिक गुरु स्वर्गीय आनंद दीघे की तस्वीरें हैं. बैकग्राउंड में, महाराष्ट्र के नक्शे के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज हैं. इसमें सीएम शिंदे की तस्वीरें भी हैं.

वहीं, शिवसेना (यूबीटी) के पोस्टरों में बाला साहेब ठाकरे, उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की तस्वीरें हैं. UBT की तरफ से लगाये गये पोस्टर में मराठी में लाइन लिखी गयी है जिसका हिंदी अनुवाद है कि "यह कट्टर वफादारों का मिलन है. शिवसेना परिवार दुनिया से अलग है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जबकि शिंदे गुट के पोस्टर में लिखा है, "हम बालासाहेब की शिवसेना हैं. हम हमेशा के लिए 365 दिन, 24 घंटे अपना समर्थन देने की प्रतिज्ञा करते हैं."यानी कुल मिलाकर देखें तो साफ है कि दोनों के लिए बाल ठाकरे प्रासंगिक हैं और दोनों उनकी विरासत संभालने का दावा कर रहे हैं.

हालांकि, एक बात साफ है, जो दोनों दल में अब तक देखने को मिली है कि दोनों के नेता बाल ठाकरे पर समझौता करने के मूड में नहीं है. उद्धव ठाकरे भी साफ कर चुके हैं कि बाला ठाकरे के विरोध में कोई बयान स्वीकार नहीं होगा जबकि महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे तो अपने वरिष्ठ सहयोगी दल बीजेपी को भी आंख दिखा चुके हैं.

शिंदे ने बीजेपी नेता और मंत्री चंद्रकांत पाटिल को लेकर दो टूक कहा कि उन्हें बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए था. यानी शिंदे भी हर मौके पर बाल ठाकरे को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाने से चूक नहीं रहे हैं.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे

फोटोः क्विंट

वरिष्ठ पत्रकार आलोक त्रिपाठी ने क्विंट हिंदी से बात करते कहा, "दोनों दलों की सियासी जमीन हिंदुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और बाल ठाकरे के विचारों पर टिकी है. लेकिन समस्या ये है कि राज ठाकरे भी बाल ठाकरे की विरासत संभालने का दावा करते हैं. इसमें फायदा इन दलों से ज्यादा बीजेपी को मिलता दिख रहा है. क्योंकि तीनों सत्ता के लिए इधर से उधर हुए हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आलोक त्रिपाठी ने कहा कि बाल ठाकरे की असली विरासत कौन संभाल रहा है, इसका फैसला जनता करेगी. लेकिन ये सच है कि जिस तरह की वैचारिक लड़ाई बाल ठाकरे लड़ते थे, वो न शिंदे लड़ पा रहे हैं और ना ही उद्धव. हालांकि, राज ठाकरे में वो सियासी आग है, लेकिन बड़ा कैडर और जनाधार न होने की वजह से वो सफल नहीं हो पा रहे हैं.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

सीएम पद की शपथ लेने से पहले पिता बाल ठाकरे को श्रद्धांजली देते उद्धव ठाकरे

(पुरानी फोटो: पीटीआई)

वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज कहते हैं, "शिंदे और उद्धव, दोनों गुट बाल ठाकरे की सियासत पर टिके हैं. दोनों को पता है कि अब सियासी राह बाला साहेब की आइडियोलॉजी है, दोनों के वोट बैंक को बाला साहब ने ही तैयार किया था. लेकिन मौजूद वक्त में दोनों ही कमजोर नजर आ रहे हैं."

शिंदे-उद्धव के सामने क्या चुनौती?

मौजूदा समय में एकनाथ शिंदे गुट सत्ता में है और ड्राइविंग सीट पर बैठा है, जबकि उद्धव ठाकरे एंड कंपनी सत्ता से बाहर है. लेकिन चुनौती दोनों के सामने बड़ी है. शिंदे के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में एकजुटता बनाए रखना है, जिसका डर उद्धव को था और नतीजतन बाद में पार्टी में टूट हुई.

शिंदे गुट के एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "पार्टी के भीतर भी गुटबाजी है. एक साल से अधिक समय बीत चुका है लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हुआ. इससे नाराजगी है."
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिंदे गुट के एक अन्य नेता ने कहा, "हां, पार्टी और बीजेपी के बीच कुछ संशय की स्थिति थी. हमारे नेता की इस पर कई बार बीजेपी के टॉप लीडर्स से मुलाकात हुई और अब हमने सबकुछ सुलझा लिया है. कुछ दिन पूर्व ही अमित शाह के साथ मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों दलों के बीच समझौता हुआ है कि हम सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगे."

उन्होंने आगे कहा कि जो भी मुद्दे अभी बचे हैं, उसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा. लेकिन एक बात तय है कि बीजेपी को हमारा पूरा सम्मान करना होगा.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

अमित शाह से एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने की मुलाकात.

(पुरानी फोटो: एकनाथ शिंदे/ट्विटर)

शिंदे और उद्धव के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के विस्तार को लेकर है. राजनीति के जानकारों की मानें तो, मौजूदा वक्त में बीजेपी की मशीनरी इतनी मजबूत है कि उसके आगे सहयोगी छोटे दल सिमट जाते हैं. यही जदयू, अकाली, जेजेपी और पुरानी शिवसेना के साथ हुआ. भविष्य में अपना वजूद बनाए रखने के लिए शिंदे को इसे लेकर सतर्क रहना होगा.

शिंदे और उद्धव के सामने विचारधारा को लेकर भी चुनौती है. वरिष्ठ पत्रकार ललित राय कहते हैं, "दोनों हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधार की बात करते हैं. लेकिन दोनों के सामने इसको लेकर अलग चुनौती है."

बाला ठाकरे ने जब शिवसेना की स्थापना की थी, तो उस वक्त उनका उद्देश्य 80 फीसदी सामाजिक कार्य और 20 फीसदी राजनीति थी. लेकिन मौजूदा समय में दोनों शिवसेना की विचारधारा ऐसी नहीं दिख रही है.
ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ललित राय ने कहा, "2014 विधानसभा चुनाव के वक्त भी उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को कुर्सी के लिए आंख दिखाने की कोशिश की थी, लेकिन मामला निपट गया था. लेकिन 2019 के चुनाव के बाद कुर्सी का चाहत साफ दिखी. उद्धव ठाकरे ने ढाई साल सीएम पद के लिए महाविकास अघाड़ी में चल गये, जहां उनका वैचारिक समन्वय बिल्कुल फिट नहीं बैठता था. हमने इसको लेकर विरोध भी देखा. और उद्धव के निर्णय से साफ तौर पर प्रतीत हुआ कि वो अब अपने पिता के 20 फीसदी उद्देश्य को 100 प्रतिशत में बदल चुके हैं."

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी

(पुरानी फोटो: PTI)

ललित राय ने कहा, "कांग्रेस के साथ जाकर उद्धव ने अपनी वैचारिक विचारधारा और बाला साहेब दोनों की प्रासंगिकता पर संदेह पैदा किया. इसका जनता में नेगेटिव संदेश गया, जिसका उनको नुकसान हुआ है और आगे भी हो सकता है."

हालांकि, कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही कुछ समय के लिए, लेकिन ये सच है कि शिंदे गुट भी उस MVA गठबंधन का हिस्सा था. लेकिन बाद में सत्ता के लिए उन्होंने भी पाला बदला. भले ही इसका उन पर उतना नेगेटिव प्रभाव न पड़े, जितना उद्धव गुट पर पड़ा है.

Shiv Sena Foundation Day: शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ने किया था.

एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे

(फोटोः अल्टर्ड बाय क्विंट हिंदी) 

लेकिन, दोनों गुटों के सामने एक कन्फूयजन है और वो ये है कि दोनों का महाराष्ट्र के लिए क्या विजन है? क्योंकि दोनों एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं और इसके बीच, जनता के मुद्दे गायब हैं

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसके अलावा दोनों दलों के सामने अपने दम पर पार्टी को खड़ा करने के साथ जनता के बीच जनाधार बनाने की चुनौती है. क्योंकि दोनों जिस बड़े दल (बीजेपी-कांग्रेस) के साथ गठबंधन में हैं, वो राष्ट्रीय दल हैं और उनकी विचारधारा एकदम साफ है. उद्धव के लिए कांग्रेस अपनी लड़ाई नहीं छोड़ सकती तो शिंदे का दल बीजेपी के सामने काफी छोटा है.

इन सबके बीच, दोनों के पास सहानुभूति भी है. उद्धव के पास 'पिता की विरासत' और कथित 'धोखे' से पार्टी तोड़ने की सहानुभूति है, तो शिंदे के पास विचारों से समझौता न करने का और वसूलों पर सियासत करने की सहानूभूति. लेकिन दोनों को इसका कितना लाभ मिलेगा, ये देखना दिलचस्प होगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×