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सुशील मोदी को कैंसर, जानिए त्रिभुजाकार राजनीति में कहां खड़े हैं बिहार के पूर्व डिप्टी CM

Sushil Modi: सुशील मोदी को कैंसर. संघ से लेकर बीजेपी तक सुशील मोदी के राजनीतिक जीवन में क्या क्या पड़ाव आये हैं.

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सुशील मोदी ने आज 3 अप्रैल को ट्वीट कर जानकारी दी कि वो कैंसर से लड़ रहे हैं. पिछले 6 महीने से वो कैंसर से पीड़ित हैं इसलिए वो इस बार BJP के लिए प्रचार करते नजर नहीं आयेंगे और चुनाव से दूर रहेंगे.

बिहार की सियासत दशकों से जिन लोगों के इर्द गिर्द घूम रही है वो सब पटना कॉलेज की छात्र राजनीति से निकले छात्र नेता रहे हैं. सुशील मोदी भी इन्हीं में से एक हैं. आइये जानते हैं एक छात्र नेता से केंद्रीय राजनीति में आने तक सुशील कुमार मोदी का सफर कैसा रहा.

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शुरू से ही रहा संघ से जुड़ाव

सुशील कुमार मोदी का संबंध एक व्यापारिक परिवार से है. उनके पहले परिवार में किसी का भी रिश्ता राजनीति से कभी नहीं रहा. एक इंटरव्यू में सुशील मोदी ने बताया था कि जीवन के शुरुआती दौर से ही वो संघ से जुड़े रहे हैं. बताते हैं कि साल 1962 में भारत चीन के युद्ध के दौरान हर जगह देश भक्ति का माहौल था. उनके पिता 'वीर अर्जुन' अखबार पढ़ा करते थे और पिता के कहने पर ही चौथी क्लास से ही वो संघ की शाखा में जाने लगे थे.

गोविंदाचार्य सुशील मोदी के राजनीतिक गुरु रहे हैं. सुशील मोदी आगे बताते हैं कि वो 8th में थे तब वो गोविंदाचार्य के संपर्क में आये थे और यहीं से उनसे प्रभावित हुए.

बकौल सुशील मोदी अगर वो संघ की शाखा में नहीं गए होते तो शायद आज उनके जीवन की दशा दिशा कुछ और होती.

छात्र राजनीति से की शुरुआत 

साल 1971 में सुशील मोदी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से होती है. 1973 में पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ के चुनाव हुए और लालू यादव छात्र संघ अध्यक्ष और सुशील मोदी महामंत्री चुने गये.

सुशील मोदी बेहद जहीन छात्र रहे हैं. पटना यूनिवर्सिटी से इन्होंने वनस्पति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया. साल 1974 में लालू यादव और सुशील मोदी समेत छात्र नेताओं ने गुजरात के नाव निर्माण आन्दोलन से सीख लेकर बिहार विधानसभा के घेराव का ऐलान किया.

18 मार्च की तारीख थी जब बिहार में हजारों छात्रों ने 'गुजरात की जीत हमारी है, अब बिहार की बारी है' नारा देते हुए बिहार विधानसभा का घेराव किया.1983 में ABVP के महासचिव बनाए गए. आपातकाल के दौरान वो 19 महीने जेल में रहे.

साल 2005 में जहां भाजपा को 55 सीटें मिली थीं, 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार 102 सीटों पर लड़े जिनमें 91 पर विजयी हुए. जदयू को 115 सीटें मिलीं लेकिन एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और सुशील मोदी उप-मुख्यमंत्री.

सुशील मोदी और बिहार की राजनीति 

लंबे समय तक ABVP में रहने के बाद सुशील मोदी ने 1990 में पहली बार BJP के टिकट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. तब तक बिहार में BJP के लिए गोविंदाचार्य ने सोशल इंजीनियरिंग शुरू कर दी थी. सुशील मोदी लगातार 15 साल विधायक रहे. सुशील मोदी अपने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र करते हैं कि 1995 में नेता प्रतिपक्ष उन्हें ही बनना था मगर ईश्वर सिंह को पार्टी ने विधायक दल का नेता बना दिया.

सुशील मोदी कई साल तक विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहे. साल 2004 में उन्होंने भागलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंच गये. 2005 अपनी संसद सदस्यता से इस्तीफा देकर वो विधान परिषद में नामित हुए और बिहार के उपमुख्यमंत्री बन गये. 2005 से 2013 तक वो लगातार उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे. 2017 में BJP और नीतीश की JDU के गठबंधन में वो एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बने.

सुशील मोदी को BJP धीरे धीरे साइड लाइन करती दिख रही है. सुशील मोदी कहते हैं कि यदि वो राजनीति में ना रहते तो पत्रकार होते. सुशील मोदी कहते हैं कि बिहार की पूरी राजनीति त्रिभुजाकार है जिसमें RJD, JDU और BJP इसकी तीन भुजाएं हैं.

लालू और सुशील मोदी का टकराव 

लालू यादव आज जिस चारा घोटाले के चलते बिहार में अपनी सत्ता खो बैठे, उसे उजागर करने में सुशील मोदी का बड़ा हाथ है. जिन 5 लोगों ने 1996 में पटना हाईकोर्ट में चारा घोटाले को लेकर PIL दायर की, उनमें से एक सुशील मोदी भी थे. लालू यादव का नाम चारा घोटाले में सामने आने के बाद राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया और पार्टी में फूट पड़ गई. यहीं से RJD का गठन हुआ.

साल 2015 में JDU और RJD की संयुक्त सरकार बनी और सुशील मोदी ने 2017 में लालू परिवार की बेनामी संपत्ति को लेकर विरोध शुरू कर दिया और 2017 में RJD व JDU अलग हो गयीं. नीतीश कुमार ने BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई और सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

सुशील मोदी और नीतीश कुमार ने लंबे समय तक एक साथ काम किया.

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सुशील मोदी से जुड़े विवाद 

सुशील मोदी का नाम वैसे तो किसी बड़े विवाद में सामने नहीं आया है लेकिन उनके परिवार के सदस्य लगातार विवादों में रहे हैं. उनके भाई महेश मोदी का नाम रामधारी सिंह दिनकर के आवास पर कब्जे के मामले में आया. इनकी चचेरी बहन रेखा मोदी का नाम बिहार के सृजन घोटाले में जुड़ा. यह घोटाला 2004 से चल रहा था और 2017 में सामने आया. इस दौरान खुद सुशील मोदी भी वित्त मंत्री रहे.

साल 2019 में राहुल गांधी के मोदी सरनेम पर दिये गये बयान के खिलाफ सुशील मोदी ने केस किया था.

सुशील मोदी पर अक्सर ये इल्जाम लगाया जाता है कि उन्होंने बिहार में BJP को नीतीश की B टीम बना कर रख दिया. सीटें किसी की भी ज्यादा हों मुख्यमंत्री की गद्दी हमेशा JDU के पास ही रही है.

बीजेपी में अकेले पड़ते सुशील मोदी 

BJP के लिए भी सुशील मोदी का साथ बेहद जरूरी है. संघ से होने के बाद भी वो BJP में हर किसी की पसंद नहीं बन सके. सुशील मोदी की राजनीति डॉक्यूमेंटेड राजनीति है. एक तरफ जहां नीतीश ग्राउंड पर चुनाव लड़े वहीं सुशील मोदी कागज की राजनीति करते रहे.

जब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की वजह से नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया तब एक तरह से माना जा रहा था कि सुशील मोदी ही मुख्यमंत्री बनाये जायेंगे लेकिन BJP ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. BJP ने सुशील मोदी को ना केंद्र में कभी पद दिया, ना राज्य का मुख्यमंत्री ही बनाया.

2024 में नीतीश कुमार ने BJP के साथ फिर से सरकार बना ली लेकिन ये पहली बार हुआ जब नीतीश और BJP के गठबंधन में सुशील मोदी को जगह ना मिली हो. अनुमान था कि BJP उन्हें राज्यसभा भेज सकती है लेकिन इसी साल फरवरी में BJP ने बिहार राज्यसभा से अपने दो उम्मीदवार उतारे लेकिन सुशील मोदी का नाम इसमें नहीं था.

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