ADVERTISEMENTREMOVE AD

CG: मोदी लहर में अकेले जीते, अब CM रेस में सबसे आगे ताम्रध्वज साहू

ताम्रध्वज साहू, मोदी लहर में छत्तीसगढ़ से लोकसभा चुनाव जीतने वाले अकेले कांग्रेस सांसद थे

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

2014 में मोदी लहर के चलते कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 10 में से 9 सीट हार गई थी. उस वक्त दुर्ग की एकमात्र सीट पर पार्टी की लाज बचाई थी ताम्रध्वज साहू ने. साहू ने बीजेपी की कद्दावर नेता सरोज पांडे को मात दी थी.

अगर सबकुछ उनके मनमुताबिक रहा, तो ताम्रध्वज छत्तीसगढ़ के तीसरे सीएम हो सकते हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ताम्रध्वज सीएम रेस में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव से आगे चल रहे हैं.

ताम्रध्वज जिस साहू जाति से आते हैं, उसकी संख्या छत्तीसगढ़ में 12-15 फीसदी बताई जाती है. कहीं न कहीं विधानसभा चुनावों में इस वोट बैंक का फायदा लेने के लिए ही ताम्रध्वज को कांग्रेस ने ओबीसी सेल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब उन्हें सीएम बनाकर पार्टी के दिमाग में लोकसभा चुनावों में इस वोट बैंक से मदद की आस है. बता दें बीजेपी ने साहू बहुल सीटों पर करीब 14 साहू कैंडिडेट को टिकट दिया था. फिर भी इनमें से 13 हार गए. मतलब इस बार जनाधार कांग्रेस की तरफ खिसक गया.

लोकसभा के पहले मिली थी ताम्रध्वज साहू को मात...

69 साल के साहू 2014 के लोकसभा चुनाव से महज चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में बेमेतरा सीट से हार गए थे. बतौर साहू, उनकी हार में कांग्रेस के भितरघात और बीजेपी से सांठगांठ जिम्मेदार थी. यह साहू का चौथा विधानसभा चुनाव था.

जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर अपने सफर की शुरूआत करने वाले साहू ने अविभाजित मध्यप्रदेश में श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा जैसे सीनियर लीडर्स के साथ काम किया है. 1998 में पहली बार धमधा से विधानसभा चुनाव जीता और छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2000 से 2003 के बीच जोगी सरकार में मंत्री भी रहे.

2003 में साहू, दोबारा धमधा से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 2007 में उनकी सीट बदलकर, उन्हें बेमेतरा भेज दिया गया. यहां से भी वे जीत गए. लेकिन 2013 चुनावों में उन्हें बेमेतरा से ही 16 हजार वोटों से करारी हार मिली.

राहुल गांधी के नजदीकी हैं ताम्रध्वज...

अपनी शालीन भाषा और चुनावी मैनेजमेंट के लिए पहचाने जाने वाले ताम्रध्वज पर राहुल गांधी बहुत भरोसा करते हैं. इसी के चलते ताम्रध्वज 2014 से पार्टी में अहम होते जा रहे हैं. पहली बार ही सांसद बनने पर उन्हें संगठन में कई बड़ी जिम्मेदारियां दी गईं. पहले उन्हें उड़ीसा में पार्टी का ऑब्जर्वर बनाया गया, इसके बाद उन्हें इसी जिम्मेदारी के साथ अंडमान भी पहुंचाया गया.

लेकिन राहुल के उन पर बढ़ते भरोसे का तब पता चला, जब उन्हें कर्नाटक और मेघालय चुनावों की स्क्रीनिंग कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी गई. बता दें स्क्रीनिंग कमेटी का काम टिकट बंटवारे का होता है. आमतौर पर इस बेहद सीक्रेट और जिम्मेदार काम के लिए केंद्रीय नेतृत्व के करीबियों को ही चुना जाता है.

साहू समाज में ताम्रध्वज...

साहू समाज के सामाजिक कार्यक्रमों में ताम्रध्वज, अलग-अलग स्तरों पर बड़ा योगदान निभाते हैं. इसके लिए सामाजिक सहयोग के साथ, हर साल कार्यक्रम करवाए जाते हैं. प्रधानमंत्री के बड़े भाई भी हर साल छत्तीसगढ़, साहू समाज के कार्यक्रम में हिस्सा लेने जाते हैं. बताते चलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साहू जाति से आते हैं.

ताम्रध्वज राजनीति के अलावा समाज के कामों में भी करीबी योगदान निभाते हैं. प्रधानमंत्री का उनके समाज से आने की बात पर ताम्रध्वज कहते हैं कि 'मोदी का समाज में कोई योगदान नहीं है, वे बड़े राजनेता हो सकते हैं पर समाज के नेता नहीं हैं.'

साहू समाज का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में होने की बात पर ताम्रध्वज साफ मुकर जाते हैं. एक टीवी इंटरव्यू में कहते हैं कि उन्हें दूसरे समाजों का भी समर्थन प्राप्त है. बतौर ताम्रध्वज, ‘राजनीतिक और सामाजिक नेताओं का ताना-बाना बिल्कुल अलग होता है. समाज की धारा अलग चलती है.’

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×