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सत्ता विरोधी लहर, मैदान में नए खिलाड़ी, KCR के हैट्रिक लगाने में कैसी चुनौतियां?

KCR के लिए पार्टी का नाम बदलकर BRS रखने बाद यह पहला चुनाव होगा.

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तेलंगाना में मुख्यमंत्री केसीआर के लिए सबसे बड़ी मुश्किल सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी है. केसीआर को प्रदेश में जीत की हैट्रिक लगानी है तो एंटी इनकंबेंसी को दूर करना होगा. अगर केसीआर तेलंगाना की सत्ता पर वापसी करते हैं तो वह इतिहास रच देंगे. क्योंकि, दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है.

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केसीआर ने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) को भारत राष्ट्र समिति (BRS) में बदल दिया. नाम बदलने के बाद पार्टी के लिए यह पहला चुनाव होगा.

दरअसल, केसीआर को तेलंगाना मूवमेंट के लिए जाना जाता है. इसी के आधार पर उन्होंने अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्रीय समिति रखा था. लेकिन, अब जब पार्टी का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय समिति कर दिया और तेलंगाना लहर भी धीमी पड़ गई है, ऐसे में उनके सामने बड़ी चुनौती होगा.

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही. क्योंकि, टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था.

केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है. ऐसे में उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को परिभाषित करते हुए TRS को BRS के रूप में एक नई पहचान दी है. के. चंद्रशेखर राव को लगता है कि अब समय आ गया है, जब तेलंगाना मॉडल को देश के बाकी हिस्सों पहचान दिलाई जाए.

दरअसल, तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है. कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरेंगे, जिससे चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने वाली है. ऐसे में नतीजों का अनुमान लगाना भी बड़ा मुश्किल हो रहा है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही है. केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया.

केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है. वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं.

तेलंगाना में बीजेपी एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरी है. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेते हैं.

कुछ राजनीतिक विश्लेषक टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को भी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. BRS प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर चुके हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी कहते हैं कि ....

"केसीआर BJP के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं. वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है, क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा, जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं.

स्नैपशॉट
  • इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का भी सामना करेगी.

  • भारतीय पुलिस सेवा (IPS) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (BSP) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर गई है. तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है.

  • एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है.

  • पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है. यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था.

एक विश्लेषक ने कहा कि "BRS अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं. मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं. अगर बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी."

हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट बीजेपी, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं. पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं.

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में बीजेपी के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी.

केसीआर कई बार कह चुके हैं कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है. उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है.

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी.

ऐसे में बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, बीजेपी और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी.

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