देश के कई मेट्रो शहर वायु प्रदूषण की मार झेल रहे हैं. लोग खराब हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं. इसी बीच तृणमूल कांग्रेस सांसद काकोली घोष दस्तीदार मास्क पहनकर लोकसभा पहुंची और वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाया.
काकोली ने कहा, "दिल्ली में लोग मास्क लगाकर घूम रहे हैं. जब हमारे देश में 'स्वच्छ भारत मिशन' है, तो क्या हमारे पास 'स्वच्छ हवा मिशन' नहीं हो सकता है? क्या हमें स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार सुनिश्चित नहीं किया जाना चाहिए?"
काकोली ने आगे कहा, 'दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत के हैं. मैं सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहती हूं.'
प्रदूषण को लेकर कमेटी बनाने की मांग
शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन लोकसभा में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर अपने बयान दिए. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने प्रदूषण को लेकर एक कमेटी बनाने की मांग की. लोकसभा में मनीष तिवारी ने कहा, "जिस तरह कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स और एस्टिमेट्स कमेटी है, ठीक वैसे ही प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर भी एक कमेटी होनी चाहिए."
वहीं बीजेपी सांसद परवेश सिंह वर्मा ने दिल्ली में प्रदूषण को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की खिंचाई की. बीजेपी सांसद ने कहा-
पांच साल पहले अकेले दिल्ली सीएम खांसते थे, आज पूरी दिल्ली खांस रही है. उन्होंने दिल्ली को जो दिया है वो है ‘प्रदूषण’.
मृत्यु होने की तीसरी सबसे बड़ी वजह वायु प्रदूषण
देश में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है. प्रदूषित हवा में सांस लेने की वजह से लोगों की सेहत खराब हो रही है. भारत में हेल्थ रिस्क रैंकिंग के लिहाज से वायु प्रदूषण, अब मृत्यु होने की तीसरी सबसे बड़ी वजह बन चुका है.
साल 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया के 20 में से 14 सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं. भारी धुंध के कारण पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी का ऐलान, विमान सेवाएं रद्द करने, स्कूल बंद करने और राजनीतिक उठापटक के कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं.
पर्यावरण संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण मिलकर, कुछ गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं. वायु प्रदूषण से क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज जैसी सांस की गंभीर बीमारियों के 49 फीसदी मामले सामने आते हैं और ये इस बीमारी से होने वाली करीब आधी मौतों के लिए जिम्मेदार है. यही नहीं फेफड़े के कैंसर से करीब 33 फीसदी लोगों की मौत होती है.
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