त्रिपुरा (Tripura) में एक बार फिर से 'कमल' खिला है. बीजेपी गठबंधन (BJP Alliance) दोबारा सरकार बनाने जा रही है. हालांकि, 2018 के मुकाबले इस बार बीजेपी गठबंधन की सीटें कम हुई हैं. बीजेपी को 32 सीटें मिली हैं. वहीं सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी IPFT के खाते में 1 सीट आई है. साथ आने के बावजूद CPI (M) और कांग्रेस बीजेपी को हराने में नाकाम रही. वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही टिपरा मोथा पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. बताते हैं कि टिपरा मोथा पार्टी की वजह से किस पार्टी को ज्यादा डेंट लगा है?
BJP को बहुमत, लेकिन सीटों का घाटा
इस बार के चुनाव नतीजों को देखें तो बीजेपी गठबंधन को बड़ा झटका लगा है. 33 सीटें ही जीत पाई है. जो कि बहुमत के आंकड़े से मात्र दो सीट ज्यादा है. 2018 में बीजेपी और IPFT ने मिलकर 44 सीटों पर कब्जा जमाया था. बीजेपी को 36 सीटें और IPFT को 8 सीटें मिली थी.
वहीं इस बार CPI (M) और कांग्रेस गठबंधन के खाते में 14 सीटें आई है. CPI (M) ने 11 और कांग्रेस ने 3 सीटों पर कब्जा जमाया है. पिछली बार अकेले CPI (M) ने 16 सीटें जीती थी. पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस और वाम दल ने बीजेपी को चुनौती देने के लिए पहली बार हाथ मिलाया था. लेकिन दोनों पार्टियां बीजेपी को रोकने में नाकम साबित हुई हैं. वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही टिपरा मोथा पार्टी के खाते में 13 सीटें आई हैं.
यहां सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अगर CPI (M), कांग्रेस और टिपरा मिलकर चुनाव लड़ती तो बीजेपी को हरा सकती थी?
टिपरा ने बिगाड़ा कांग्रेस-लेफ्ट का खेल?
माना जा रहा था कि CPI(M) और कांग्रेस मिलकर बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसका सबसे बड़ा कारण है- टिपरा मोथा पार्टी. कांग्रेस से अलग होकर त्रिपुरा राजघराने के मुखिया प्रद्योत देबबर्मा ने 2021 में टिपरा मोथा पार्टी का गठन किया था. टिपरा का जनजातीय आबादी के एक बड़े हिस्से पर प्रभाव है. जो चुनाव में वोट में भी तब्दील हुआ है. जिसका सीधा असर इंडिजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी IPFT पर पड़ा है. वहीं CPI (M) और बीजेपी को भी नुकसान उठाना पड़ा है.
उदाहरण के लिए, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सिमना, मंडीबाजार, तकरजला, रामचंद्रघाट, आशारामबाड़ी और अम्पीनगर जैसी सीटों पर वाम-कांग्रेस गठबंधन ने खराब प्रदर्शन किया और टिपरा ने बड़े अंतर से जीत हासिल की है.
हालांकि, कृष्णापुर और संतिरबाजार जैसी एसटी सीटों पर वामपंथियों ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया और बीजेपी विरोधी वोटों को विभाजित किया है.
हो सकता है कि कुछ गैर आदिवासी सीटों पर भी ऐसा ही हुआ हो. उदाहरण के लिए, विशालगढ़ में टिपरा मोथा ने एक मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया और बीजेपी के अंतर से अधिक वोट प्राप्त किए. वहीं पार्टी ने अमरपुर, कल्याणपुर और प्रमोदनगर जैसी कुछ सामान्य सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, इससे एंटी बीजेपी वोट बंट गए.
इन परिणामों को देखने के बाद कहा जा सकता है कि CPI (M)-कांग्रेस को आदिवासी क्षेत्रों में टिपरा मोथा के नेतृत्व को स्वीकार करने की जरूर थी. वहीं गैर-आदिवासी क्षेत्रों में खुद आगे आना चाहिए था.
त्रिपुरा में BJP का वोट घटा, कांग्रेस का बढ़ा
अगर वोट पर्सेंटेज को देखें तो बीजेपी-IPFT को बड़ा डेंट लगा है. 2018 में बीजेपी-IPFT का वोट पर्सेंटेज करीब 51 फीसदी था, जो 2023 में गिरकर 40 फीसदी पर पहुंच गया है. 2018 में बीजेपी को अकेले 43.4% वोट मिले थे, लेकिन अबकी बार करीब 39% वोट ही मिले हैं. वहीं कांग्रेस को 2018 में 1.8% वोट मिले थे, लेकिन अबकी बार 8% से ज्यादा वोट मिले हैं. CPI (M) का वोट 2018 में 43.2% था, लेकिन अबकी बार 24% तक सिमट गया है. बीजेपी गठबंधन के साथ ही CPI (M) का वोट पर्सेंटेज भी घटा है. वहीं इसका सबसे ज्यादा फायदा टिपरा और कांग्रेस को हुआ है.
पिछले चुनाव से कितना बदला नतीजा?
इस बार के चुनाव परिणामों को सबसे ज्यादा प्रद्योत देबबर्मा की टिपरा मोथा पार्टी ने प्रभावित किया है. सीटों के हिसाब से TMP दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. हालांकि, इस बार के नतीजे कांग्रेस के लिए भी थोड़ी राहत लेकर आए हैं. कांग्रेस का सीटों के साथ ही वोट पर्सेंट भी बढ़ा है. वहीं CPI (M) का वोट पर्सेंट सबसे ज्यादा गिरा है. जो की पार्टी के लिए अलार्मिंग है. वहीं बीजेपी को कम और उसकी सहयोगी पार्टी IPFT को ज्यादा नुकसान पहुंचा है.
बीजेपी गठबंधन की सीटों और वोट शेयर में बड़े नुकसान को देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर चुनाव से पहले लेफ्ट-कांग्रेस और टिपरा मोथा ने हाथ मिला लिया होता तो चुनाव परिणाम बदल सकते थे.
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