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उद्धव ठाकरे को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत- HC का फैसला अहम क्यों है?

1966 के बाद से, शिवसेना ने Shivaji Park में दशहरा रैली आयोजित की है, लेकिन CM शिंदे ने इस साल इस परंपरा को चुनौती दी

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30 अक्टूबर 1966- 40 वर्षीय बाल ठाकरे ने उसी साल शिवसेना के गठन के बाद मुंबई के शिवाजी पार्क में अपनी पहली दशहरा मेगा रैली को संबोधित किया.

24 अक्टूबर 2012 - 86 वर्षीय बाल ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में अपनी आखिरी दशहरा रैली को संबोधित किया, और कार्यकर्ताओं से अपील की कि उनके बाद "उद्धव ठाकरे का ख्याल रखे."

56 वर्षों तक 2020 और 2021 में दो साल महामारी को छोड़कर, किसी न किसी ठाकरे ने मुंबई के दादर स्थित मशहूर शिवाजी पार्क (Shivaji Park) में हर दशहरे (Dussehra Rally) पर राज्य और शिवसेना कैडर को संबोधित किया है. लेकिन 56 साल में पहली बार शिवसेना की 'परंपरा' को एकनाथ शिंदे गुट ने चुनौती दी- जब पार्टी में बाल ठाकरे की विरासत को लेकर संघर्ष छिड़ा हुआ है जो इस साल जून में दो फाड़ हो गई थी.

लेकिन 23 सितंबर को मुंबई हाई कोर्ट ने जैसे उद्धव ठाकरे को जीत का तमगा पहना दिया. उसने ठाकरे को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करने की इजाजत दे दी है. बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने कानून और व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए किसी भी गुट को अनुमति देने से इनकार कर दिया था. मुंबई पुलिस बीएमसी को यह चेतावनी दे चुकी थी कि अगर किसी भी गुट को वहां रैली करने की इजाजत दी जाती है तो हालात बिगड़ सकते हैं.

यहां पांच प्वाइंट्स में हम बता रहे हैं कि उस जगह पर शिवसेना की दशहरा रैली का क्या महत्व है, साथ ही शुक्रवार को हाई कोर्ट के आदेश से पहले हुई लड़ाई पर भी एक एक नज़र डालते हैं.

उद्धव ठाकरे को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत- HC का फैसला अहम क्यों है?

  1. 1. कानून व्यवस्था हमारी समस्या नहीं है- हाई कोर्ट में क्या हुआ

    मुंबई हाईकोर्ट ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को 2-6 अक्टूबर तक शिवाजी पार्क के इस्तेमाल की अनुमति दी है. दशहरा रैली 5 अक्टूबर को होनी है.

    बीएमसी और मुंबई पुलिस ने कानून और व्यवस्था पर जो चिंता जाहिर की थी, हाई कोर्ट ने उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करने के लिए कहा है. जानते हैं कि मामले की सुनवाई के दौरान क्या हुआ:

    • अदालत ने शिंदे गुट के सदा सरवणकर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में सरवनकर का कोई अधिकार नहीं है.

    • ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सीनियर एडवोकेट अस्पी चिनॉय ने तर्क दिया कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना पार्टी की समस्या नहीं है और यह कि ठाकरे गुट ने 22 और 26 अगस्त को अनुमति के लिए अर्जी दी थी और सदा सरवणकर ने 30 अगस्त को.

    • चिनॉय ने यह भी तर्क दिया कि असली शिवसेना का सवाल यहां नहीं आता है और सरवणकर ने मामले को उलझाने के लिए हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है.

    • लाइव लॉ के हवाले से चिनॉय ने कहा, "कमीश्नर ने रिकॉर्ड पर स्वीकार किया है कि शिवसेना ने अनुमति मांगी है. इस हस्तक्षेप आवेदन का उद्देश्य यह है कि यहां मामला मुद्दे से भटक जाए और राजनीतिक गुत्थमगुत्था होने लगे."

    • बीएमसी के सीनियर एडवोकेट मिलिंद साठे ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है और शिवाजी पार्क एक खेल का मैदान और एक साइलेंट जोन है. साठे ने तर्क दिया, "शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होना ही एकमात्र अधिकार है. इस मैदान पर रैली करने का कोई अधिकार नहीं है."

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  2. 2. 1966-2022: शिवसेना और शिवाजी पार्क का संबंध

    शिवसेना और शिवाजी पार्क के बीच पांच दशक लंबा पारंपरिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बंधन है. शिवाजी पार्क में शिवसेना के कुछ महत्वपूर्ण आयोजनों पर एक नजर:

    • अक्टूबर 1966: बाल ठाकरे ने उस वर्ष पार्टी के गठन के बाद दशहरा पर पहली मेगा रैली की

    • मार्च 1995: शिवाजी पार्क में शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने शपथ ली

    • अक्टूबर 2010: आदित्य ठाकरे को दशहरा रैली में युवा सेना के साथ आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतारा गया

    • नवंबर 2012: शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार किया गया

    • नवंबर 2019: उद्धव सीएम बनने वाले पहले ठाकरे बने, और शिवाजी पार्क में सीएम पद की शपथ ली

    • शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे की दिवंगत पत्नी मीनाताई की प्रतिमा और स्वयं बाल ठाकरे का स्मारक है

    पांच दशकों से अधिक समय से, कोई न कोई ठाकरे शिवसेना की सभी प्रमुख घोषणाएं हर साल शिवाजी पार्क के 'दशरा मेला' में करता हैं. इससे शिवाजी पार्क में दशहरा रैली पार्टी की विरासत का एक प्रमुख पहलू बन जाती है.

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  3. 3. 'खरी शिवसेना': शिंदे के साथ लड़ाई के बीच 'परंपरा' को जारी रखेंगे उद्धव

    उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना इस साल जून में पार्टी के भीतर विद्रोह के बाद विभाजित हो गई. इसके कारण शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई और शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए. राजनीतिक, कानूनी, वैचारिक- दोनों गुट अब बाल ठाकरे की विरासत, पार्टी के नाम और धनुष-बाण के प्रतीक के लिए कई स्तरों पर लड़ रहे हैं.

    खरी शिवसेना कोंटी? (असली शिवसेना कौन है?) - यह एक ऐसा सवाल है जो पार्टी के विभाजन के बाद से पूछा जा रहा है.

    जबकि शिंदे गुट को पहले ही बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के एमएमआरडीए मैदान में एक दूसरी जगह की मंजूरी मिल चुकी है, उद्धव गुट शिवाजी पार्क में रैली आयोजित करने पर अड़ा हुआ था, इसीलिए यह लड़ाई मुंबई हाईकोर्ट में पहुंच गई.

    लेकिन बंटवारे के तीन महीने बाद दोनों गुटों की दशहरा रैलियों के जरिए इस सवाल का जवाब मिल सकता है. सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि दोनों रैलियों में कितने लोग जुटते हैं. कौन राजनीतिक रूप से दूसरे से ज्यादा दमखम वाला है.

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  4. 4. संवेदनशील क्षेत्र: बीएमसी, मुंबई पुलिस ने इजाजत देने से क्यों किया इनकार

    22 अगस्त को ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के अनिल देसाई ने शिवाजी पार्क की अनुमति के लिए बीएमसी में आवेदन किया था. 30 अगस्त को शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर ने भी ऐसा ही आवेदन किया.

    इसके जवाब में मुंबई पुलिस ने कहा कि अगर दोनों गुटों में से एक को मंजूरी दी जाती है तो शिवाजी पार्क में कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है. इसके बाद बीएमसी के डिप्टी म्युनिसिपल कमीश्नर (जोन 2) ने बुधवार को दोनों गुटों को अलग-अलग चिट्ठी भेजकर, मैदान के इस्तेमाल की इजाजत देने से इनकार किया.

    बीएमसी ने दोनों अर्जियों को खारिज करते हुए शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन की बयान का हवाला दिया. उसने कहा, "अगर किसी भी आवेदक को रैली करने की अनुमति दी जाती है, तो यह शिवाजी पार्क के संवेदनशील क्षेत्र में कानून व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा कर सकता है."

    मुंबई हाई कोर्ट ने गुरुवार को ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अपनी पिछली याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी ताकि इजाजत से इनकार को चुनौती दी जा सके. मूल याचिका में शिवसेना ने बीएमसी को उसके आवेदन पर फैसला करने का निर्देश देने की मांग की थी. अदालत ने शिंदे गुट के सदा सरवणकर की याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें उन्होंने ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की याचिका का विरोध किया था.

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  5. 5. शिवाजी पार्क मामले के बाद शिंदे गुट चिंता में

    सदा सरवणकर ने मुंबई हाई कोर्ट से अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में अभी यह मामला लंबित है कि "असली शिवसेना" कौन है. इसलिए हाई कोर्ट को मौजूदा याचिका पर कोई सुनवाई नहीं करनी चाहिए या कोई निर्देश नहीं सुनना चाहिए.

    शिंदे खेमे के प्रवक्ता किरण पावस्कर का कहना है कि उनका गुट आखिरी पल तक य़ह कोशिश करता रहेगा कि शिवाजी पार्क में वह अपना आयोजन कर सके.

    उन्होंने कहा कि बीएमसी ने शिंदे के मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनके गुट को इजाजत देने से इनकार कर दिया, जो इस बात को दर्शाता है कि वह दबाव में काम नहीं कर रहा थी.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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कानून व्यवस्था हमारी समस्या नहीं है- हाई कोर्ट में क्या हुआ

मुंबई हाईकोर्ट ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को 2-6 अक्टूबर तक शिवाजी पार्क के इस्तेमाल की अनुमति दी है. दशहरा रैली 5 अक्टूबर को होनी है.

बीएमसी और मुंबई पुलिस ने कानून और व्यवस्था पर जो चिंता जाहिर की थी, हाई कोर्ट ने उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करने के लिए कहा है. जानते हैं कि मामले की सुनवाई के दौरान क्या हुआ:

  • अदालत ने शिंदे गुट के सदा सरवणकर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में सरवनकर का कोई अधिकार नहीं है.

  • ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सीनियर एडवोकेट अस्पी चिनॉय ने तर्क दिया कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना पार्टी की समस्या नहीं है और यह कि ठाकरे गुट ने 22 और 26 अगस्त को अनुमति के लिए अर्जी दी थी और सदा सरवणकर ने 30 अगस्त को.

  • चिनॉय ने यह भी तर्क दिया कि असली शिवसेना का सवाल यहां नहीं आता है और सरवणकर ने मामले को उलझाने के लिए हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है.

  • लाइव लॉ के हवाले से चिनॉय ने कहा, "कमीश्नर ने रिकॉर्ड पर स्वीकार किया है कि शिवसेना ने अनुमति मांगी है. इस हस्तक्षेप आवेदन का उद्देश्य यह है कि यहां मामला मुद्दे से भटक जाए और राजनीतिक गुत्थमगुत्था होने लगे."

  • बीएमसी के सीनियर एडवोकेट मिलिंद साठे ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है और शिवाजी पार्क एक खेल का मैदान और एक साइलेंट जोन है. साठे ने तर्क दिया, "शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होना ही एकमात्र अधिकार है. इस मैदान पर रैली करने का कोई अधिकार नहीं है."

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1966-2022: शिवसेना और शिवाजी पार्क का संबंध

शिवसेना और शिवाजी पार्क के बीच पांच दशक लंबा पारंपरिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बंधन है. शिवाजी पार्क में शिवसेना के कुछ महत्वपूर्ण आयोजनों पर एक नजर:

  • अक्टूबर 1966: बाल ठाकरे ने उस वर्ष पार्टी के गठन के बाद दशहरा पर पहली मेगा रैली की

  • मार्च 1995: शिवाजी पार्क में शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने शपथ ली

  • अक्टूबर 2010: आदित्य ठाकरे को दशहरा रैली में युवा सेना के साथ आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतारा गया

  • नवंबर 2012: शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार किया गया

  • नवंबर 2019: उद्धव सीएम बनने वाले पहले ठाकरे बने, और शिवाजी पार्क में सीएम पद की शपथ ली

  • शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे की दिवंगत पत्नी मीनाताई की प्रतिमा और स्वयं बाल ठाकरे का स्मारक है

पांच दशकों से अधिक समय से, कोई न कोई ठाकरे शिवसेना की सभी प्रमुख घोषणाएं हर साल शिवाजी पार्क के 'दशरा मेला' में करता हैं. इससे शिवाजी पार्क में दशहरा रैली पार्टी की विरासत का एक प्रमुख पहलू बन जाती है.

'खरी शिवसेना': शिंदे के साथ लड़ाई के बीच 'परंपरा' को जारी रखेंगे उद्धव

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना इस साल जून में पार्टी के भीतर विद्रोह के बाद विभाजित हो गई. इसके कारण शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई और शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए. राजनीतिक, कानूनी, वैचारिक- दोनों गुट अब बाल ठाकरे की विरासत, पार्टी के नाम और धनुष-बाण के प्रतीक के लिए कई स्तरों पर लड़ रहे हैं.

खरी शिवसेना कोंटी? (असली शिवसेना कौन है?) - यह एक ऐसा सवाल है जो पार्टी के विभाजन के बाद से पूछा जा रहा है.

जबकि शिंदे गुट को पहले ही बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के एमएमआरडीए मैदान में एक दूसरी जगह की मंजूरी मिल चुकी है, उद्धव गुट शिवाजी पार्क में रैली आयोजित करने पर अड़ा हुआ था, इसीलिए यह लड़ाई मुंबई हाईकोर्ट में पहुंच गई.

लेकिन बंटवारे के तीन महीने बाद दोनों गुटों की दशहरा रैलियों के जरिए इस सवाल का जवाब मिल सकता है. सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि दोनों रैलियों में कितने लोग जुटते हैं. कौन राजनीतिक रूप से दूसरे से ज्यादा दमखम वाला है.

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संवेदनशील क्षेत्र: बीएमसी, मुंबई पुलिस ने इजाजत देने से क्यों किया इनकार

22 अगस्त को ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के अनिल देसाई ने शिवाजी पार्क की अनुमति के लिए बीएमसी में आवेदन किया था. 30 अगस्त को शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर ने भी ऐसा ही आवेदन किया.

इसके जवाब में मुंबई पुलिस ने कहा कि अगर दोनों गुटों में से एक को मंजूरी दी जाती है तो शिवाजी पार्क में कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है. इसके बाद बीएमसी के डिप्टी म्युनिसिपल कमीश्नर (जोन 2) ने बुधवार को दोनों गुटों को अलग-अलग चिट्ठी भेजकर, मैदान के इस्तेमाल की इजाजत देने से इनकार किया.

बीएमसी ने दोनों अर्जियों को खारिज करते हुए शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन की बयान का हवाला दिया. उसने कहा, "अगर किसी भी आवेदक को रैली करने की अनुमति दी जाती है, तो यह शिवाजी पार्क के संवेदनशील क्षेत्र में कानून व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा कर सकता है."

मुंबई हाई कोर्ट ने गुरुवार को ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अपनी पिछली याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी ताकि इजाजत से इनकार को चुनौती दी जा सके. मूल याचिका में शिवसेना ने बीएमसी को उसके आवेदन पर फैसला करने का निर्देश देने की मांग की थी. अदालत ने शिंदे गुट के सदा सरवणकर की याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें उन्होंने ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की याचिका का विरोध किया था.

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शिवाजी पार्क मामले के बाद शिंदे गुट चिंता में

सदा सरवणकर ने मुंबई हाई कोर्ट से अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में अभी यह मामला लंबित है कि "असली शिवसेना" कौन है. इसलिए हाई कोर्ट को मौजूदा याचिका पर कोई सुनवाई नहीं करनी चाहिए या कोई निर्देश नहीं सुनना चाहिए.

शिंदे खेमे के प्रवक्ता किरण पावस्कर का कहना है कि उनका गुट आखिरी पल तक य़ह कोशिश करता रहेगा कि शिवाजी पार्क में वह अपना आयोजन कर सके.

उन्होंने कहा कि बीएमसी ने शिंदे के मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनके गुट को इजाजत देने से इनकार कर दिया, जो इस बात को दर्शाता है कि वह दबाव में काम नहीं कर रहा थी.

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