उत्तर प्रदेश में ओबीसी से जुड़ी 17 जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में शामिल किए जाने के योगी सरकार के फैसले पर केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने सवाल उठाए हैं. केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि योगी सरकार का फैसला संविधान के अनुसार नहीं है. उन्होंने कहा कि इस मामले में फैसला लेने का अधिकार सिर्फ संसद को है.
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान बीएसपी सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा द्वारा ये मामला उठाए जाने पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा, "यह उचित नहीं है."
योगी सरकार ने दिया था OBC की 17 जातियों को SC में शामिल करने का आदेश
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीती 24 जून को सभी जिलाधिकारियों और कमिश्नरों को ये आदेश दिया था कि ओबीसी में आने वाली 17 जातियों (कश्यप, राजभर, धीवर, बिंद, कुम्हार, कहार, केवट, निषाद, भर, मल्लाह, प्रजापति, धीमर, बाथम, तुरहा, गोदिया, मांझी और मछुआ) को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाए.
गहलोत ने कहा कि अगर यूपी सरकार अपने प्रस्ताव पर आगे बढ़ना चाहती है तो उसे प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और केंद्र को प्रस्ताव भेजना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम तब इस पर विचार करेंगे."
गहलोत ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश संविधान के मुताबिक नहीं है. उन्होंने योगी सरकार से कहा कि वह आदेश के आधार पर जाति प्रमाण पत्र जारी न करे अन्यथा मामला कोर्ट में जा सकता है.
थावर चंद गहलोत ने दिया जवाब
केंद्रीय मंत्री और राज्य सभा में नेता थावर चंद गहलोत ने कहा कि एक श्रेणी को दूसरी जाति की श्रेणी में स्थानांतरित करने का अधिकार संसद का है.
इससे पहले भी इसी तरह के तीन-चार प्रस्ताव संसद को भेजे गए थे, लेकिन उन पर सहमति नहीं बनी. गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार को उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था. सभापति एम. वेंकैया नायडू ने गहलोत को राज्य सरकार को उचित प्रक्रिया का पालन करने की सलाह देने के लिए कहा.
BSP ने उठाया 17 जातियों को SC में शामिल किए जाने का मुद्दा
शून्यकाल में बीएसपी सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 उप खंड (2) के तहत, अनुसूचित जाति की लिस्ट में परिवर्तन करने की शक्ति केवल संसद के पास है.
उन्होंने कहा, "यहां तक कि राष्ट्रपति के पास भी अनुसूचित जाति की लिस्ट को बदलने या बनाने की शक्ति नहीं है." उन्होंने कहा, इन 17 जातियों को जोड़ने से न तो उन्हें ओबीसी का लाभ मिलेगा और न ही एससी का. क्योंकि, राज्य सरकार के पास अनुसूचित जाति की लिस्ट में कोई भी बदलाव करने की कोई शक्ति नहीं है.
सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि बीएसपी इन 17 जातियों को एससी की श्रेणी में शामिल किए जाने के पक्ष में है लेकिन ऐसा तभी संभव है जब तय प्रक्रिया का पालन किया जाए. मिश्रा ने कहा, ‘संसद की शक्ति को एक राज्य द्वारा अपमानित नहीं किया जा सकता है.’
बीएसपी नेता ने कहा कि केंद्र सरकार को ‘असंवैधानिक फैसला’ वापस लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को एडवाइजरी जारी करनी चाहिए. क्योंकि यह जातियों को नुकसान पहुंचा रहा है.
पहले की सरकारें भी कर चुकी हैं कोशिश
ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में बजेपी सरकार ने ही ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किए जाने का फैसला लिया हो. इससे पहले साल 2005 में समाजवादी पार्टी की मुलायम सिंह सरकार ने पहली बार 11 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का आदेश दिया था. लेकिन इस प्रस्ताव पर कोर्ट ने स्टे लगा दी थी. इसके बाद, मायावती की बीएसपी सरकार ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया था.
बाद में बीएसपी ने कहा कि इन जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है, बशर्ते कि एससी कोटा बढ़ाया जाए. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सरकार ने 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले इन जातियों को एसी श्रेणी में शामिल किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, लेकिन इसे चुनौती दी गई और अब ये मामला कोर्ट में है.
बता दें, योगी सरकार के इस कदम को राज्य की 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
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