महिला-पुरुष बराबरी और समानता की बात बरसों से इस देश में होती चली आई है. लेकिन, स्थिति क्या है, ये जानना है तो देश के गांवों में जाइए. बराबरी की जरूरत है और छोटे बड़े कदम उठाए जा रहे हैं. यूपी में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया चल रही हैं और इन चुनावों में महिलाओं की कई हटके कहानियां सामने आ रही हैं. अब आप सोचिए कि यूपी के जालौन का एक गांव है जिसे आजादी के बाद से ही एक अदद महिला प्रधान की दरकार है. इस साल ये जरूरत पूरी होने जा रही है.
जालौन के आटा गांव के विकास की बागडोर पंचायत चुनावों के बाद एक महिला प्रधान के हाथ में होगी. दशकों के लंबे इंतजार के बाद आटा में सामान्य महिला सीट आरक्षित की गई हैं. ऐसे में महिलाएं अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में हैं. गांव के कुछ लोग को आस है कि जब महिला कमान संभालेगी तो विकास तो होगा ही साथ ही सामाजिक बराबरी की नींव और मजबूत होगी.
आटा गांव की गायत्री कहती हैं कि बहुत सारी ऐसी महिलाएं इस गांव में जो कभी गांव-घर से बाहर नहीं निकलतीं. हो सकता है कि इस फैसले के बाद उनका हौसला बढ़े और आगे वो बढ़कर सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लें.
गांव की महिला प्रधान पद कैंडिडेट रसना कहती हैं
अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा देख रही हूं. लॉकडाउन लगने के बाद जो बराबरी की बात होती थी वो और कम हो गई है. इस स्थिति में अगर हमारे गांव में महिलाओं के लिए ये मौका मिला है तो ये बहुत खुसी की बाद है.
रसना कहती हैं कि गांव में महिला प्रधान होने से निश्चित तौर पर गांव का विकास और बेहतर तरीके से होगा.
आटा के अरविंद शुक्ला भी इस पर खुशी जताते हैं उनका कहना है कि हमारे गांव मे आबादी लगभग 10 हजार लोगों की है और वोटिंग लगभग 5200 लोगों की है. हमको लगता है कि अगर महिला प्रधान गांव से बनेगी तो गांव का विकास होगा.
लेकिन एक बड़ा सच ये भी है...
गांव की सूरत बदलने की बात है. बदलाव की बात है. ये अच्छा है लेकिन एक सच और भी है जो यूपी के तकरीबन हर जिले में देखने को मिल जाएगा, वो है कि पंचायत चुनाव में भले ही महिलाओं को प्रत्याशी बना दिया जाता है लेकिन असल में प्रचार के बागडोर से लेकर चुनाव जीत जाने के बाद ज्यादातर कामकाज महिला जनप्रतिनिधियों के भाई, पिता या बेटे करते आए हैं.
जालौन के इस गांव में भी जब हमने महिला प्रत्याशियों से बात करने की कोशिश की, तो दो अलग-अलग कैंडिडेट के घर पुरुषों ने ही फोन उठाया. पोस्टर पर महिला कैंडिडेट के साथ उस घर के पुरुष की तस्वीर प्रमुखता से लगी है, साथ ही पोस्टर पर लिखा मोबाइल नंबर पर भी घर के पुरुष सदस्यों से ही बातचीत होती है.
हमने जब आटा गांव के ऐसे ही एक कैंडिडेट को फोन किया तो कैंडिडेट के बेटे ने फोन उठाया. महिलाओं को महज सीट आरक्षित होने की वजह से चुनाव लड़ाने पर जब हमने सवाल पूछा तो वो कहते हैं कि आप जानते ही हैं कि महिलाएं गांव में कम पढ़ी लिखी होती हैं. ऐसे में पुरुषों को ही ये जिम्मेदारी संभालनी होती है. हालांकि, वो ये मानते हैं कि उनकी माता की तरफ से कुछ योजनाएं तैयार की जा रही हैं, अगर वो चुनाव जीतती हैं तो उन्हें अमल में ले जाया जाएगा
ऐसे ही एक कैंडिडेट को हमने और फोन किया तो उनके पति ने फोन उठाया. ऐसे ही एक कैंडिडेट को हमने और फोन किया तो उनके पति ने फोन उठाया जिनका नाम शिवेंद्र शुक्ला था. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही हैं लेकिन फोन तो वो ही इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि हम लोग महिलाओं को कम आगे करते है, और पुरुष ही प्रतिनिधि बन जाते है. वो तर्क भी देते हैं कि महिलाएं शिक्षित हो तो कोई दिक्कत नहीं आएगी वो शिक्षित कम होती हैं तो पुरुषों को ‘जिम्मेदारी’ संभालनी पड़ती है.
कुल मिलाकर कहानी ये है कि आजादी के बाद इस गांव को कागजों पर महिला प्रतिनिधित्व मिल जाएगा लेकिन शायद असली ‘महिला प्रधान’ मिलने में कुछ और साल लगेंगे.
26 अप्रैल को है चुनाव
जालौन में तीसरे चरण में यानी 26 अप्रैल को चुनाव है. नामांकन की तारीख 13 अप्रैल की है. तीसरे चरण में जालौन के साथ ही शामली, मेरठ, मुरादाबाद, पीलीभीत, कासगंज, फिरोजाबाद, औरैया, कानपुर, देहात, हमीरपुर, फतेहपुर, उन्नाव, अमेठी, बाराबंकी, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर,देवरिया, चंदौली, मिर्जापुर, बलिया में भी वोट डाले जाएंगे.
पंचायत चुनाव के नतीजे 2 मई को आएंगे.
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