उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे ये साफ संकेत दे रहे हैं कि 2014 की लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मायावती ने यूपी की राजनीति में एक बार फिर वापसी की है.
पंचायत चुनावों में एक और चौंकाने वाली बात ये देखने को मिली कि भारतीय जनता पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की 48 में से 40 पंचायत सीटों पर बीजेपी हार चुकी है.
चुने गए जिला पंचायत सदस्यों में से अधिकांश की निष्ठा सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के साथ है. दिलचस्प बात यह है कि अखिलेश यादव की सरकार के अधिकांश मंत्रियों के रिश्तेदारों की इन चुनावों में हार हुई है.
इनमें से सिर्फ समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के छह करीबी रिश्तेदार ही अपवाद रहे, जिन्होंने जोरदार जीत दर्ज की.
विकास का एजेंडा जीता
एक हकीकत ये है कि स्थानीय चुनाव परंपरागत रूप से पार्टी लाइन पर नहीं लड़े जाते हैं और इन चुनावों में जीतने वालों को सत्तारुढ़ दल आसानी से अपने पाले में कर लेते हैं, इसीलिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जीत पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ.
ये चुनाव काफी हद तक स्थानीय मुद्दों तक ही सीमित रहे. लेकिन हैरत की बात यह है कि विकास के मुद्दे ने बाकी सभी मुद्दों को पीछे छोड़ दिया.
लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर स्थित उपखंड मोहनलालगंज के अंतर्गत आने वाले एक गांव के पूर्व प्रधान राधे लाल ने कहा, ‘यदि आप अपने क्षेत्र में कोई विकास कार्य कराना चाहते हैं, तो यह प्रशासन के सक्रिय समर्थन के बिना मुमकिन नहीं है, जोकि सिर्फ सत्तारुढ़ पार्टी की सुनता है.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में भी बीजेपी की करारी हार हुई है, और यह निश्चित रूप से मोदी के लिए एक चेतावनी है. यहां तक कि जिस जयापुर गांव को प्रधानमंत्री ने आदर्श गांव बनाने के लिए गोद लिया था, वहां भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा.
पंचायत चुनावों में बीजेपी की करारी हार
बीजेपी के अन्य सभी बड़े नेताओं के संसदीय क्षेत्रों में बीजेपी को ऐसी ही हार का सामना करना पड़ा. जहां केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा के संसदीय क्षेत्र देवरिया की 56 में से 50 पंचायत सीटों पर पार्टी की हार हुई, वहीं राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के गृहजनपद अलीगढ़ में पार्टी 52 में से 44 सीटें हार गई.
दशकों तक कल्याण सिंह का गढ़ रही अतरौली विधानसभा सीट पर तो पार्टी की हालत और खराब रही, यहां की आठ पंचायत सीटों में से पार्टी एक सीट भी जीतने में नाकामयाब रही.
रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के संसदीय क्षेत्र गाजीपुर की 67 में से 57 सीटों पर पार्टी की हार हुई, जबकि केंद्रीय मंत्री उमा भारती की झांसी की 24 में से 20 सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के लिए भी यह चुनाव शर्मिंदगी का सबब साबित हुआ, जिनकी लखनऊ लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 26 में से 20 पंचायत सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा. और मोदी की ही तरह वह भी अपने गोद लिए गांव बेंती से जिला पंचायत सदस्य पद के लिए पार्टी प्रत्याशी को जीत नहीं दिला पाए.
पंचायत चुनावों में समाजवादी पार्टी ने झंडा गाड़ा
• हालिया पंचायत चुनावों में समाजवादी पार्टी की जीत पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इन चुनावों में जीतने वाले आसानी से सत्ता के पाले में आ जाते हैं
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बीजेपी की करारी हार निश्चित रूप से एक चेतावनी है
• मनोज सिन्हा, कालराज मिश्र और राजनाथ सिंह जैसे बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं के संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशियों की हार की वजह से यह चुनाव उनके लिए भी शर्मिंदगी का सबब बना
• 2017 के विधानसभा चुनावों में वापसी का दावा करने वाली बीएसपी इन चुनावों में समाजवादी पार्टी के मंत्रियों के करीबी रिश्तेदारों की हार को एक बड़ी जीत के रूप में देख रही है
क्या यह सच में बीएसपी की वापसी है?
आश्चर्य की बात यह रही कि बीजेपी का नेतृत्व इन चुनावों के नतीजों से काफी संतुष्ट दिखा. उत्तर प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मी कांत बाजपेई के मुताबिक, ‘हमने 25-30% सीटें जीतने की उम्मीद की थी और मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि हमारी जीत का प्रतिशत इससे कम नहीं होगा.’
भले ही समाजवादी पार्टी ने कुल मिलाकर इन चुनावों में झंडा गाड़ा है, उसके कुछ मंत्रियों के रिश्तेदारों की हार भी हुई है. इनमें अवधेश प्रसाद भी शामिल हैं, जिनकी पत्नी और बेटा दोनों चुनाव हार गए.
इसी तरह मंत्री मनोज कुमार पांडेय के बेटे, रामपाल राजवंशी की दो बेटियों और अन्य मंत्रियों के लगभग दर्जनभर करीबी रिश्तेदारों को इन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा.
यह भी दिलचस्प है कि समाजवादी पार्टी के मंत्रियों के करीबी रिश्तेदारों की हार को बीजेपी अपनी जीत के रूप में देख रही है.
यह चुनाव बताते हैं कि बीएसपी 2017 के विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत दर्ज करने के लिए तैयार है.
— स्वामी प्रसाद मौर्य, यूपी विधानसभा में बीएसपी के नेता
अब सिर्फ यह देखना बाकी है कि इन चुनावों के नतीजों पर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह क्या प्रतिक्रिया देते हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में पार्टी के प्रत्याशियों की जीत पर एक विशेष ट्वीट किया था.
जाहिर सी बात है उत्तर प्रदेश पंचायत चुनावों के नतीजे उस पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होंगे जो फिलहाल भारत पर राज कर रही है.
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पैनी नजर रखते हैं.)
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