2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha) से पहले उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिला है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) एक बार फिर NDA में शामिल हो गए हैं. दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद गठबंधन में शामिल होने का ऐलान किया गया. ओपी राजभर के बीजेपी से हाथ मिलाने से विपक्षी एकता की कवायद को भी बड़ा झटका लगा है.
'यूपी में NDA को मिलेगी मजबूती'
अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा, "ओपी राजभर जी से दिल्ली में भेंट हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में आने का निर्णय लिया. मैं उनका एनडीए परिवार में स्वागत करता हूं. राजभर जी के आने से उत्तर प्रदेश में एनडीए को मजबूती मिलेगी और मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए द्वारा गरीबों व वंचितों के कल्याण हेतु किए जा रहे प्रयासों को और बल मिलेगा."
वहीं ओपी राजभर ने ट्वीट किया, "बीजेपी और SBSP आए साथ. सामाजिक न्याय देश की रक्षा- सुरक्षा, सुशासन वंचितों, शोषितों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं, किसानों, नौजवानों, हर कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी मिलकर लड़ेगी."
समाचार एजेंसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि, हमारी पार्टी और बीजेपी आगामी 2024 चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला लिया है. 14 तारीख को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई और विभिन्न बिंदुओं पर बात हुई. दोनों दल के मिलने से पूरे प्रदेश में एक बड़ी ताकत पैदा होगी. देश के प्रधानमंत्री की जो सोच है उसे आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी."
क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं,
"बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एक नई रणनीति बनाई है, जिसके तहत वो हर राज्य में किसी ऐसे दल को अपने साथ कर रही है जो उस राज्य में पकड़ रखती हो. इसकी शुरुआत हमें कर्नाटक में देखने को मिली. जहां जेडीएस को साथ लेने की कोशिश हुई. उसके बाद ये कोशिश महाराष्ट्र में हुई, जहां एनसीपी इनके साथ आ गई है. उसके बाद ये कोशिश बिहार में हुई, जहां चिराग पासवान उनके साथ आ गए हैं. और अब यूपी ये यूपी में देखने को मिला है."
अखिलेश-राजभर में खटास
2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ओपी राजभर की पार्टी का समाजवादी पार्टी से गठबंधन हुआ था. उन्होंने अखिलेश यादव के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. SBSP ने 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से उसे 6 सीटों पर जीत मिली थी. SBSP के खाते में 1.36% वोट आए थे.
विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अखिलेश और राजभर के बीच खटास चल रही थी. दोनों ओर से हो रही बयानबाजी की वजह से सियासी दूरियां और बढ़ गई थी. उन्होंने अखिलेश यादव को 'एक नंबर का झूठा' तक कह दिया था.
इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि राजभर बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं. दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात से पहले ओपी राजभर ने बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं के साथ भी मुलाकात की थी. जिसके बाद तय माना जा रहा था कि वो एनडीए में शामिल होंगे. राजभर के बेटे अरुण राजभर के रिस्पेशन पार्टी में भी यूपी बीजेपी के कई बड़े नेता पहुंचे थे.
2019 में बीजेपी से हुए अलग
बता दें कि 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तब पार्टी ने 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से 4 सीटों पर जीत मिली थी. पार्टी को 0.70% वोट मिले थे.
राजभर को पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग और विकलांग जन विकास विभाग के मंत्री के रूप में योगी कैबिनेट में जगह भी मिली थी. इसके दो साल बाद 2019 में राजभर को गठबंधन विरोधी गतिविधियों के कारण मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था. उसके बाद 2022 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया था.
पूर्वांचल में राजभर का प्रभाव
पूर्वांचल की सियासत जाति के इर्द-गिर्द घुमती है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का फोकस विशेष रूप से पूर्वांचल और राजभर मतदाताओं पर है. पूर्वांचल में 18 जिले, 107 विधानसभा और 18 लोकसभा सीटें हैं. माना जाता है कि पूर्वांचल में ओपी राजभर की मजबूत पकड़ है. ऐसे में उनके साथ आने से बीजेपी को और मजबूती मिलने की उम्मीद है. क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं,
"ये तय है कि राजभर की SBSP पार्टी कुछ सीटें जीत सकती है. यूपी में जहां तक क्षेत्रीय पार्टियों का सवाल है, इसमें SBSP का नंबर अब काफी आगे हैं. इन्होंने पूर्वी जिलों में अपनी पकड़ दिखाई है. यही वजह है कि ये पहले भी बीजेपी और एसपी के साथ रहे हैं."
इसके साथ ही वो कहते हैं कि "SBSP से हाथ मिलाने से बीजेपी को राजनीतिक लाभ तो मिलेगा ही, इसके साथ ही उसने राजभर के समाजवादी पार्टी के साथ दोबारा जाने की संभावना को भी खत्म कर दिया है."
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल आगे कहते हैं कि "राजभर का पूर्वी उत्तर प्रदेश के 10-12 जिलों में प्रभाव है. ये सब जिले ऐसे हैं जहां उनकी जाति के लोगों की अच्छी-खासी संख्या है."
पिछले कुछ सालों में राजभर का राजनीतिक कद भी बढ़ा है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 4 सीटें जीती थीं. उस वक्त चुनाव BJP के साथ गठबंधन में लड़ा गया था. 8 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे थे. हालांकि 2022 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा. कुल 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 6 सीटों पर जीत मिली थी.
पिछले चुनावों में क्या हुआ?
अगर 2022 विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पूर्वांचल में राजभर के प्रभाव वाले क्षेत्र आजमगढ़ और गाजीपुर में BJP का खाता भी नहीं खुला. मऊ जिले में बड़ी मुश्किल से एक सीट जीत मिली और 3 सीट पर एसपी-SBSP गठबंधन को सफलता मिली. जौनपुर में एसपी-SBSP गठबंधन पांच और बलिया जिले में तीन विधानसभा सीट जीतने में सफल रहा.
इसके साथ ही जौनपुर, घोसी, लालगंज, गाजीपुर, अम्बेडकरनगर, सलेमपुर, आजमगढ़, बलिया जैसी सीटें हैं, जो BJP के लिए हमेशा से बेहद मुश्किल सीटों में शामिल रही हैं. राजभर का इन सीटों पर खासा प्रभाव है. राजभर समाज के वोटर घोसी, गाजीपुर, लालगंज और सलेमपुर में निर्णायक भूमिका में हैं.
वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के चेहरे के बावजूद BJP को पूर्वांचल में चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. 2014 में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 16 सीटों पर जीत हासिल किया, लेकिन 2019 में मोदी का प्रभाव कम हुआ और 18 में से 11 सीट ही जीत पाई थी. ऐसे में बीजेपी एक बार फिर राजभर के भरोसे पूर्वांचल फतह करने की कोशिश में है.
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