समाजवादी पार्टी ने आजम खां का गढ़ बचाने की जिम्मेदारी उनकी पत्नी तंजीन फातिमा को दी है. दरअसल, दर्जनों मुकदमों का सामना कर रहे आजम खां का जब राजनीतिक रसूख संकट में है, तब पार्टी ने उनकी परंपरागत रामपुर विधानसभा सीट से आजम की पत्नी तंजीन को अपना उम्मीदवार बनाया है.
रामपुर विधानसभा सीट से आजम खां नौ बार विधायक रहे हैं. इस साल वह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत गए. सांसद बनते ही उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. और अब यहां उपचुनाव होना है.
SP ने तंजीन को क्यों बनाया उम्मीदवार?
तंजीन का राज्यसभा का कार्यकाल नवंबर 2020 में खत्म हो रहा है. यानी कि अगले साल नवंबर महीने में तंजीन समेत समाजवादी पार्टी के पांच सदस्य राज्यसभा से रिटायर हो जाएंगे. समाजवादी पार्टी अपने मौजूदा विधायकों के दम पर एक से ज्यादा सदस्य राज्यसभा में भेजने की स्थिति में नहीं होगी. ऐसे में उसके लिए कोई एक नाम चुनना काफी मुश्किल होगा.
दूसरी तरफ, जिस तरह से बीजेपी ने आजम के गढ़ रामपुर में अपना दमखम लगा रखा है, उससे ये गढ़ ढहने का खतरा मंडरा रहा है. इसलिए समाजवादी पार्टी ने अपने मौजूदा गढ़ को बचाने पर ध्यान केंद्रित किया है.
एक तीर से दो निशाने
समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खां इन दिनों भूमाफिया से लेकर बकरी चोरी तक के कई दर्जन मुकदमे झेल रहे हैं. वह इस बीच में कई महीने से अपने घर रामपुर भी नहीं आए हैं. जहां एक ओर आजम के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती है, वहीं समाजवादी पार्टी के सामने अपना वोटबैंक सुरक्षित रखने की चुनौती है.
- आजम की छोड़ी सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाकर समाजवादी पार्टी की एक तीर से दो निशाने साध रही है. पहला, चुनाव में पार्टी को आजम खां के प्रभाव का सीधा फायदा मिलेगा.
- दूसरा, आजम के सांसद बनने के बाद से उनके खिलाफ अब तक 87 मुकदमे दर्ज कराए जा चुके हैं. आजम इसे साफ तौर पर राजनीतिक प्रताड़ना और बदले की कार्रवाई बता रहे हैं. चुनाव में इसे सहानुभूति फैक्टर के तौर पर भुनाने की कोशिश होगी.
अगर आजम सीट बचा ले गए तो जनसमर्थन पर मुहर के जरिए उनकी मुश्किलें कम हो सकती हैं. और अगर हार गए तो उनके लिए अपना राजनीतिक रसूख बचाना मुश्किल होगा.
विधानसभा में संख्या बढ़ाने पर नजर
समाजवादी पार्टी की नजर बीजेपी के विधायकों के सांसद बनने के कारण खाली हुई सीटों को जीतकर विधानसभा में अपनी संख्या बढ़ाने पर है.इसलिए उम्मीदवारों के चयन में जातीय और स्थानीय समीकरणों को भी ध्यान में रखा गया है.
रामपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार
- तंजीन फातिमा - समाजवादी पार्टी
- अरशद अली खां- कांग्रेस
- जुबैर मसूद - बीएसपी
- भारत भूषण- बीजेपी
रामपुर विधानसभा के समीकरण?
रामपुर विधानसभा सीट के इतिहास को देखें तो आजम यहां साल 1980 से लेकर अब तक चुनाव जीते हैं. हां एक बार 1996 में कांग्रेस से वह चुनाव हारे थे. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2017 में जब बीजेपी की सुनामी आई थी तब भी आजम अपनी और अपने बेटे की सीट बचाने में कामयाब रहे थे. अब उन्हीं के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हो रहा है.
इस बार परिस्थितियां अलग हैं, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) भी पहली बार उपचुनाव के मैदान में है. वह यहां पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर दलित मुस्लिम का गठजोड़ बनाने का प्रयास करके रामपुर में अपनी कामयाबी दिखाना चाह रही है. बीएसपी ने यहां से कस्टम विभाग के पूर्व अधिकारी जुबैर मसूद खान को टिकट दिया है. लेकिन कांग्रेस ने भी रामपुर विधानसभा सीट के लिए अरशद अली खान को टिकट देकर बीएसपी का खेल खराब करने की कोशिश की है.
रामपुर के एक बीएसपी नेता ने बताया-
“बहन जी (मायावती) ने यहां पर प्रत्याशी का चयन सोच-समझकर किया है. यहां पर मुस्लिम और दलित का अच्छा गठजोड़ होगा. रामपुर विधानसभा के विधायक ने यहां पर अपनी हुकुमत करने के अलावा कोई काम नहीं करवाया है.”
रामपुर निवासी अरशद बताते हैं कि रामपुर सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है. ऐसे में यहां पर कुछ मुस्लिमों के वोट बंट जाएंगे, क्योंकि कुछ आजम के खिलाफ हैं और कुछ उनके साथ हैं.
रामपुर सीट को मुस्लिम-दलित बहुल माना जाता है. यहां करीब 52 प्रतिशत मुस्लिम और 17 प्रतिशत दलित मतदाता हैं.
BSP और कांग्रेस की वजह से बंट सकता है वोट
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं, ‘बीएसपी और कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है. बीजेपी को बढ़त भी मिल सकती है, लेकिन लोकसभा चुनाव में एक खास बात देखने को मिली है कि मुस्लिमों ने उन्हें पसंद किया है. आजम के जितने पंसद करने वाले हैं, उतने ही उनके यहां पर विरोधी हैं.’
उन्होंने कहा कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने और कुछ दलितों के वोट मिलने से बीजेपी को बढ़त मिल सकती है. मुस्लिम वोट बहुत है इस कारण से यह कहना मुश्किल है कि वोटों का कितना बंटवारा हो पाएगा.
‘आजम के लिए नाक की लड़ाई’
वहीं एक अन्य विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्रा का कहना है, "रामपुर आजम के लिए प्रतिष्ठा की सीट है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी तब उन्होंने अपनी सीट अच्छे मार्जिन से जीती थी. उन्होंने 2017 में भी अपनी और अपने बेटे की सीट पर जीत हासिल की थी. यह आजम का बहुत मजबूत किला है. इस समय आजम की प्रशासनिक और सरकारी घेराबंदी है. ऐसे में यह उनकी नाक का सवाल है. बीजेपी इस गढ़ को तोड़ना चाहती है. यहां एक दिलचस्प लड़ाई होगी.’
मिश्रा ने बताया, ‘आजम के लिए यह अस्तित्व की सीट हैं. अगर यहां के परिणाम नकारात्मक आते हैं तो उनके लिए राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है. आजम को मुकदमों पर सहानुभूति भी मिल सकती है. एसपी-बीएसपी का अलग लड़ना और कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करना उन्हें नुकसान दे सकता है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी न उतारना उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ था."
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