उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election) के लिए बीजेपी BJP ने तीसरी लिस्ट जारी कर दी है. कुल 85 उम्मीदवारों के नाम हैं, जिसमें 15 महिलाएं हैं. लिस्ट की खास बात ये है कि इसमें दूसरी पार्टियों से टूटकर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं के नाम हैं. जैसे कि अदिति सिंह (Aditi Singh), रामवीर उपाध्याय, नितिन अग्रवाल (Nitin Agarwa)l और हरिओम यादव (Hari Om Yadav). इन 85 नामों में एक नाम कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण (Aseem Arun) का है. इनका नाम देखकर लगता है कि बीजेपी जाटव वोटों में सेंध लगाना चाहती है. समझते हैं कैसे?
लिस्ट में दूसरी पार्टी से आए नेताओं को ज्यादा तवज्जो क्यों?
इसका जवाब इन नेताओं की सीट और जीतने के रिकॉर्ड को देखने पर मिलता है. दरअसल, इन सभी नेताओं का अपनी सीट से जीतने का रिकॉर्ड रहा है. कई सीटें ऐसी हैं जहां पर किसी खास परिवार का प्रभाव रहा है और सालों से यहां से जीत रहा है. लिस्ट में शामिल इन नामों पर गौर करिए..
पहला नाम अदिति सिंह का है. वे पिछले कई महीनों से लगातार बीजेपी के संपर्क में थीं. हाल के दिनों में बीजेपी में शामिल हुईं. इन्हें रायबरेली सदर सीट से टिकट मिला. कहते हैं रायबरेली कांग्रेस का गढ़ का है, लेकिन सदर सीट अदिति सिंह का परिवार ही जीतता रहा है. अदिति के पिता अखिलेश सिंह इस सीट से 1993 से लेकर 2012 तक विधायक रहे . उनकी मृत्यु होने के बाद अदिति सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा था. इस सीट पर करीब साढ़े तीन लाख वोटर हैं.
लिस्ट में दूसरा नाम रामवीर उपाध्याय का है. 15 जनवरी को ही बीएसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. 5 दिन बाद ही टिकट भी मिल गया. ये सादाबाद से चुनाव लड़ेंगे. मायावती कैबिनेट में मंत्री रहे रामवीर उपाध्याय का बीएसपी में बड़ा कद था. ब्राह्मणों की राजनीति के माहिर माने जाते हैं. इनकी पत्नी सीमा उपाध्याय दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष और एक बार सांसद रह चुकी हैं.
तीसरा नाम मुलायम के समधी हरिओम यादव का है. हाल के दिनों में इन्होंने बीजेपी ज्वाइन की. सिरसागंज से टिकट मिला है. हरिओम यादव को मुलायम सिंह का बेहद करीबी माना जाता है. इसीलिए जब ये बीजेपी में शामिल हुए तो एसपी के लिए एक बड़ा झटका बताया गया. हरिओम यादव कहते हैं कि उनका असर आसपास की 6 विधानसभा सीटों पर है. इनका सबसे ज्यादा प्रभाव फिरोजाबाद में है. सैफई और इटावा के कुछ इलाकों में भी उनका असर है.
अगला नाम यूपी विधानसभा उपाध्यक्ष रहे नितिन अग्रवाल का है. उन्होंने हाल में एसपी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन की. ये साल 2017 में हरदोई सदर की सीट से सपा के टिकट पर चुनाव जीते थे. इनके पिता नरेश अग्रवाल इस सीट से विधायक रह चुके हैं. पहली बार नितिन अग्रवाल साल 2008 में पिता के इस्तीफे के बाद उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. तब बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. फिर एसपी में चले गए. फिर 2012 में एसपी के टिकट पर विधायक बने और अखिलेश कैबिनेट में मंत्री बन गए. बीजेपी ने भी इन्हें हरदोई से ही टिकट दिया है.
बेबी रानी मौर्य के बाद असीम अरुण को टिकट, जाटव वोट बैंक में सेंध की कोशिश
अब वापस आते हैं कि असीम अरुण पर. कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण ने सर्विस खत्म होने के 9 साल पहले ही आईपीएस सर्विस से इस्तीफा दे दिया. कुछ दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुए हैं. कन्नौज की सदर सीट से टिकट मिला है.
असीम अरुण को टिकट देने के पीछे बीजेपी का मकसद सिर्फ एक सीट को जीतना नहीं बल्कि बीएसपी के जाटव वोटों में सेंध लगाना है. दरअसल, यूपी में करीब 21% दलित वोटर है, जिसमें से 55% जाटव समुदाय है. पिछले 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में तो बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी को साध लिया. उनकी बदौलत बड़ी जीत हासिल की, लेकिन इस चुनाव में गैर यादव ओबीसी के कुछ बड़े चेहरे बीजेपी छोड़कर एसपी में आ गए हैं. ऐसे में उसकी भरपाई बीजेपी जाटव वोटों को अपनी तरफ कर के कर सकती है.
चुनाव में मायावती बहुत ज्यादा एक्टिव नहीं दिख रही हैं. ऐसे में बीजेपी जाटव वोट में सेंध लगाना चाह रही है. यही वजह है कि बीजेपी की पहली लिस्ट में उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य का भी नाम था. इस्तीफा देने के बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया. फिर पहली ही लिस्ट में आगरा ग्रामीण से टिकट मिल गया. असीम अरुण और बेबी रानी मौर्य जाटव समुदाय से ही आते हैं.
सीएसडीएस के आंकड़ों की बात करें तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 17% जाटव वोट मिले थे. वहीं अन्य की बात करें तो ब्राह्मण के 82%, राजपूत के 89%, वैश्य के 70%, जाट के 91%, अन्य अपर कास्ट का 84%, कुर्मी-कोइरी का 80%, अन्य ओबीसी का 72%, अन्य एससी का 48% वोट मिला. सिर्फ जाटव और मुस्लिम वोट कम मिला था. 17% जाटव और 8% मुस्लिम वोट मिला था. यानी जाटव वोटर्स ऐसे हैं जहां बीजेपी अभी तक सेंध नहीं लगा सकी. अबकी बार यही कोशिश है
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