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UP: गांव का हर परिवार कैंसर से प्रभावित, 15 करोड़ खर्च लेकिन अस्पताल शुरू नहीं

क्विंट हिन्दी की टीम ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी पहुंचकर कैंसर प्रभावित लोगोंं से बात की.

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मैनपुरी के ललूपुर गांव में कैंसर बीमारी से हर घर प्रभावित है, और ये सिलसिला लगातार जारी है. नेता चुनाव के समय आकर के आश्वासन दे जाते हैं लेकिन कोई एक्शन नहीं होता. इस बार भी मैनपुरी लोकसभा के उपचुनाव शुरू होते ही जनपद में कैंसर की बीमारी की चर्चाएं गर्म हो गईं. यहां के लोग कई सालो से कैंसर जैसी घातक और जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं.

"ये बीमारी तम्बाकू से होती है", ऐसा (WHO) विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है. समय समय पर होने वाले परीक्षण में खान पान और दूषित जल के प्रयोग से कैंसर फैलने की बात सामने आई है.

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मैनपुरी के ललूपुर गांव के लोग आज भी मध्यप्रदेश, गुजरात मुंबई समेत बड़े-बड़े शहरों में कैंसर का इलाज करवाने के लिए जाते हैं, इससे मध्यमवर्गी या छोटे परिवार आर्थिक तंगी से जूझने लगते हैं. आज के दिन भी गांव में लोग कैंसर बीमारी से ग्रसित हैं. 2006 में 15 करोड़ की लागत से बने कैंसर अस्पताल का आज तक ताला नहीं खुल सका है.

क्विंट हिन्दी की टीम उत्तर प्रदेश के जनपद मैनपुरी के तहसील सदर क्षेत्र में पहुंची. मैनपुरी से भोगांव मार्ग पर स्थित ग्राम ललूपुर की दूरी जिला मुख्यालय से महज 5 किमी. है.

क्विंट हिन्दी की टीम ने उत्तर प्रदेश के  मैनपुरी पहुंचकर 
कैंसर प्रभावित लोगोंं से बात की.

ललूपुर गांव

क्विंट हिंदी

कुछ ऐसे कैंसर से जूझ रहा है ग्राम ललूपुर

मैनपुरी सदर विधानसभा क्षेत्र के ग्राम ललूपुर की कुल आबादी 2000 के आसपास की है. इस गांव में लगभग 300 परिवार रहते हैं. गांव के अधिकतर लोग खेती-बाड़ी या मेहनत मजदूरी पर निर्भर रहते हैं. ये गांव आज के समय में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा है, जिसके समाधान के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि सामने नहीं आया है. हालांकि समय-समय पर यहां के पानी की जांच होती रही है. गांव के लोगो ने बताया कि गांव के हर घर से कोई न कोई कैंसर से जान गंवा चुका है और आज भी कैंसर फैल रहा है.

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सुधा ने 15 साल में परिवार के तीन सदस्य खो दिये

क्विंट की टीम ग्राम ललूपुर की संकरी गलियों में सुधा के घर पर पहुंची. मकान में कहीं भी छत नहीं है. सुधा का परिवार झोपड़ी में रहता है. यहां पर मोहर सिंह कैंसर से ग्रसित एक तरफ लेटे हुए अपनी जिदंगी की आखिरी सांसे ले रहे हैं.

पिछली 15 सालो में हमारा परिवार कैंसर से दो लोगों को खो चुका है. पहले मेरी शादी कबीरदास के साथ हुई थी, जिसके बाद में वह 40 वर्ष की उम्र में कैंसर से मर गये. बाद में मेरी शादी मेरे देवर के साथ हो गई. इस समय उनकी उम्र 35 वर्ष के करीब है और वह भी कैंसर से ग्रसित हैं और अब तो उन्होंने बोलना तक बंद कर दिया है. इसके अलावा मेरे एक और देवर कैंसर से मर चुके हैं. 15 सालो में अभी तक कैंसर दो लोगों को निगल चुका है. तीसरे भी अब बिस्तर पर लेटे हैं. शायद अब वह भी कभी बोल नहीं पाएंगे.
सुधा, ललूपुर गांव की निवासी
क्विंट हिन्दी की टीम ने उत्तर प्रदेश के  मैनपुरी पहुंचकर 
कैंसर प्रभावित लोगोंं से बात की.

सुधा अपने परिवार के साथ

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सुधा की पुत्र वधू गीता ने बताया हमारे परिवार में तीन लोगो को कैंसर हो चुका है. हम लोग बर्बाद हो गए हैं. 10-12 लाख रूपये कर्जा तक हो चुका है. हमारे ससुर को 6 साल से कैंसर है. कानपुर, लखनऊ, आगरा, ग्वालियर, दिल्ली समेत अन्य शहरों में इलाज करवा चुके हैं. कोई फायदा नही मिला है.

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कैंसर की वजह गांव में "पीने का पानी"

गांव में 2019 ने एक टीम ने सर्वे किया जिसमें बताया गया गांव का पानी दूषित है. एक तालाब था जिसे बंद करवाकर संरक्षित कर दिया गया है.

हमारे गांव की लगभग 2000 लोगों की आबादी है. प्रत्येक घर से कोई न कोई मर चुका है. गांव के पानी के नलों की जांच हुई थी, लेकिन नतीजा कुछ नही आया है. कैंसर आज भी फैल रहा है. अधिकतर पुरुषों के मुंह में कैंसर होता है और महिलाओ के पेट में. हमारे यहां 20 साल से ऊपर के ही लोगों को कैंसर होता है.
रामनिवास, ग्रामीण, ललूपुर
क्विंट हिन्दी की टीम ने उत्तर प्रदेश के  मैनपुरी पहुंचकर 
कैंसर प्रभावित लोगोंं से बात की.

इन्हीं नलों से लोगों को पानी मिलता है

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गांव में ही सब्जी बेचने वाले गोविंद ने बताया कि मेरे पापा की कैंसर से ही जान चली गई और मेरे गांव में इस समय भी 20 प्रतिशत कैंसर होगा. ऐसा कोई घर नहीं है जिस घर में कोई कैंसर से बीमार न रहा हो. नेता चुनाव में आते हैं फिर कोई नहीं आता, और हम लोग बस ऐसे ही जिंदगी काट रहे हैं.

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"सरकार ने कुछ नहीं किया"

कैंसर से लड़ कर के वापस लौटे राघवेंद्र ने बताया कि उन्हें चार साल पहले कैंसर हुआ था. उन्होंने बताया कि "पहले हमने ग्वालियर टेस्ट करवाया और अहमदाबाद जा कर आपरेशन करवाया. इस पूरी प्रक्रिया में 5 लाख रूपये का खर्चा हो गया. नेताओं ने हमारे गांव में कैंसर को लेकर कुछ नहीं किया. मुलायम सिंह की सैफई में एक कैंसर का वार्ड बन जाता तो हम लोगों के लिए सुविधा हो जाती. मैनपुरी में बना कैंसर अस्पताल बंद पड़ा है."

16 साल से बंद पड़ा कैंसर वार्ड, अंदर मशीनें जर्जर

क्विंट की टीम अब मैनपुरी स्थित महाराजा तेज सिंह जिला चिकित्सालय में पहुंची. आपातकालीन वार्ड के पास में बने कैंसर वार्ड के बाहर तो रंगाई पुताई कर दी गई थी लेकिन मुख्य द्वार पर आज भी ताला लटका हुआ था.

अस्पताल के प्रधान सहायक प्रशासनिक अधिकारी आर के वर्मा ने कैमरे पर बात करने से मना कर दिया, लेकिन बिना कैमरे के बताया कि "2006 में इस वार्ड का निर्माण 10 करोड़ रुपए की लागत से करवाया गया था, जिसके बाद में एक बार मशीनों की मरम्मत भी हुई थी. अब ये 16 सालो से बंद पड़ा हुआ है. इसकी हालत अंदर जर्जर अवस्था में तब्दील हो गई है.

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मैनपुरी के वरिष्ठ पत्रकार राकेश त्यागी ने बताया पूरी दुनिया में मैनपुरी में मुंह के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले थे. कैंसर की बीमारी अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी थी. उस समय मैनपुरी में एक मैनपुरी नामक तम्बाकू बनती थी. काफी लोग मैनपुरी तम्बाकू के सेवन से डरने लगे थे. कैंसर का मामला अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहुंचने के बाद यहां पर तम्बाकू को बंद नहीं किया गया इसका नाम बदल करके कपूरी रख दिया गया. इस तम्बाकू का कोई रैपर इत्यादि नहीं होता है. आज के समय में इस तरीके की तीन से चार तरह की तम्बाकू दुकानों पर बिकती नजर आ जाती है.

सीमित संसाधनों से जूझ रहा है स्वास्थ्य विभाग

गांव में फैले कैंसर के प्रकोप पर मैनपुरी के मुख्यचिकित्सा अधिकारी पी पी सिंह ने बताया कि

"गांव में समय समय पर टीमें जाती रहती हैं और वहां पर जांच सेंपल कलेक्ट करने का काम करती हैं. अगर वहां कैंसर की बीमारी फैली है तो जांच करवाई जायेगी. वहां पर कितने मरीज हैं इस बात की जानकारी जिला अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के पास होगी. इस कैंसर यूनिट को सुचारू करने के लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं. शासन को समय-समय पर पूर्व में पत्र लिखे जाते रहे है."

महाराजा तेज सिंह जिला चिकित्सालय मैनपुरी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मदन लाल ने बताया कि हमारे यहां कैंसर के इलाज की कोई सुविधा नहीं है. समय-समय पर कितने कैंसर के मरीज रेफर किए गए हैं इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है. हमारे यहां कैंसर का इलाज नहीं होता है. 15 करोड़ की लागत से बनाई गई कैंसर यूनिट की बिल्डिंग जर्जर है.

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2004 में शुरू हुई कैंसर जागरूकता टुकड़ी

राकेश त्यागी के मुताबिक सन 2004 से मैनपुरी में कैंसर के बचाव के जन जागरूकता के लिए गांव गांव टुकड़ी घूमने लगी थी और ये जन आंदोलन बनता जा रहा था. धीरे-धीरे ये आंदोलन 2005-06 तक चला. उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. बाद में मैनपुरी में कैंसर अस्पताल का निर्माण जिला अस्पताल में करवाया गया.

15 करोड़ लगने के बाद भी आज तक गेट नहीं खुला

2005 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी में कैंसर अस्पताल के निर्माण के लिए 7 करोड़ रुपए का एक फंड जारी किया. बाद में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने 2010 में अस्पताल में कैंसर के इलाज में प्रयोग होने वाली मशीनों के लिए 6.5 करोड़ रुपए की दूसरी किस्त जारी की. 2010 से 2012 के बीच के समय मैनपुरी में कैंसर अपनी पीक पर था. ललूपुर, नगला, जुलाह और खरपरी ये गांव ज्यादा प्रभावित थे और अस्पताल का ताला अभी तक नहीं खुल पाया था.

इसके बाद 2015 में मशीनों के मैंटेनेंस के लिए सरकार की तरफ 1 करोड़ रुपए दिए गए. अस्पताल फिर भी शुरू नहीं हो पाया. आखिरी में जनवरी 2019 में कैंसर यूनिट का 40 लाख रूपये बिजली का बिल भी जमा किया गया.
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सैफई-मैनपुरी में घूमते रहे अस्पताल के उपकरण, नहीं मिला लाभ

कैंसर अस्पताल बनने के बाद में पीड़ितों को लग रहा था कि अब इसका जमीनी लाभ मिलना शुरू हो जाएगा. विभागीय दखलनबाजी के बीच इस अस्पताल के उपकरण सैफई और मैनपुरी के बीच ही घूमते रहे. 2006 में मैनपुरी में अस्पताल बनने के बाद में इस अस्पताल की मशीनें 2010 में सैफई के अस्पताल में भेज दी गईं. बाद में 2012 में फिर से ये मशीनें मैनपुरी आ गईं.

अमर उजाला मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 27 जून 2019 को तकनीकी टीम ने बंद पड़े इस कैंसर अस्पताल का निरीक्षण किया था, जिसमें कुछ जरूरी मशीनों को दुरुस्त करने के लिए दो करोड़ रुपए का खर्चा आने की बात कही गई थी. सीमेंस कम्पनी के कई अधिकारियों ने उस समय निरीक्षण किया था.

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वरिष्ठ कैंसर सर्जन डा. नवल किशोर शाक्य ने बताया कि कैंसर कई तरीके से हो सकता है लेकिन तम्बाकू खाने से कैंसर होने की उम्मीद ज्यादा रहती है. तम्बाकू में कुछ पदार्थ पाए जाते हैं वह काफी खतरनाक होते हैं, जैसे कि निकोटीन, ऐसीटोन, फॉर्मिस्ट एसिड, ल्यूटारिक एसिड, फिनोल तत्व. अगर कैंसर शुरआत में पता चल जाता है तो इसे जल्दी रोका जा सकता है.

मुंह का कैंसर अधिकतर जबड़े या गलफड़ों के हिस्सों में होता है. जब कैंसर अपनी चरम सीमा पर पहुंचने लगता है तो मरीज को खाने पीने में दिक्कत होने लगती है और गले की लार ग्रंथियां और श्वास ग्रंथियां बंद होने लगती हैं. ये स्थित बहुत ही भयंकर और नाजुक होती है. इस स्थित में मरीज बहुत ही कम सही हो पाते हैं.

पानी इत्यादि में जब ये छारीय तत्व महिलाओ के अंदर जाने लगते है तो ये ही ब्रेस्ट कैंसर या शरीर के अन्य हिस्सों को जख्मी कर देते है. जब मरीज को सही से इलाज नहीं मिल पाता है तो ये ही जख्म कैंसर में तब्दील हो जाते है. हालांकि थोड़ी से सजगता और कैंसर को सही समय पर इलाज मिलने से सही किया जा सकता है.

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पाकिस्तान तक है मैनपुरी की इस तम्बाकू की सप्लाई

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस गांव में कैंसर के सर्वाधिक मरीज पाए जाते है. हालांकि WHO के मुताबिक तम्बाकू के खाने के कारण मुंह में सर्वाधिक कैंसर होता है. यहां पर मैनपुरी नामक 'कपूरी' तम्बाकू बनाई और खाई जाती है. 2012 की डेक्कन हेराल्ड अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रांत में यहां की कपूरी तम्बाकू को बैन किया गया था, क्योंकि वहां भी इस तम्बाकू से कैंसर होने की बात कही गई थी.

बीबीसी हिंदी की 7 नवंबर 2022 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में हर साल 85,000 भारतीय महिलाओं की ब्रेस्ट कैंसर से मृत्यु हो जाती है. वहीं भारत में हर साल 11 लाख कैंसर के मरीज पाये जाते हैं.

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उत्तर प्रदेश के ग्राम ललूपुर के ग्राम प्रधान विजयबहादुर के मुताबिक गांव में प्रत्येक घर से कोई न कोई मर चुका है. कई परिवार तो ऐसे हैं जहां पर उनके परिवार से तीन लोग मर चुके हैं. दो साल पहले यहां पर पानी को चेक करने लिए एक टीम आई थी. उन्होंने घर-घर पानी और गांव में स्थित तालाब को चेक किया था. बाद में गांव में बने हुए तालाब को बंद कर दिया गया. तब से कैंसर के कुछ केस आने कम हुए हैं. अभी कुछ दिन पहले ही गांव के मोहर सिंह की कैंसर से मौत हुई है.

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