उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजीपुर जिले में 50 वर्ष के एक शख्स पर आरोप है कि उसने तीन साल की बच्ची के साथ रेप किया. यह वीभत्स घटना 27 जुलाई को हुई. आरोपी की पहचान अशोक सिंह उर्फ बिल्ला के रूप में हुई है- जिसके नाम पर हत्या सहित 22 से अधिक मामले दर्ज हैं- जिसे एक दिन बाद गिरफ्तार कर लिया गया.
गाजीपुर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए एक हफ्ते के अंदर आरोपपत्र दाखिल किया, उसी दौरान अयोध्या में एक रेप का मामला सुर्खियों में आया. पुलिस की सफलता के बावजूद, उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजीपुर मामले की अपेक्षा अयोध्या मामले पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चुना और इसके पीछे राजनीतिक कारण बताए जाते हैं.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने ऐसे मामलों का जिक्र किया है, जिनमें आरोपी या तो मुस्लिम हैं या फिर यादव.
एक मामले में तो मुख्यमंत्री ने अलग-अलग जातियों के आरोपियों में से सिर्फ यादव और मुस्लिम आरोपी को लेकर बयान दिया.
चलिए, मुख्यमंत्री के बयानों और उसके पीछे की राजनीति पर नजर डालते हैं.
सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान
राज्यभर में रेप और जघन्य अपराधों के कई मामले सामने आए हैं, लेकिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 1 अगस्त 2024 को विधानसभा में बोलते हुए दो मामलों पर विस्तार से चर्चा की- पहला अयोध्या, दूसरा हरदोई. इसके साथ ही उन्होंने बहुचर्चित गोमतीनगर छेड़छाड़ मामले का भी जिक्र किया. सीएम आदित्यनाथ ने यूपी विधानसभा में कहा,
"अयोध्या का ये मामला है. मोइन खान समाजवादी पार्टी का नेता है. अयोध्या के सांसद की टीम का सदस्य है. 12 वर्षीय एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म के कृत्य में शामिल पाया गया है. अभी तक समाजवादी पार्टी ने उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की है. मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि ये सब क्या है? अब क्या कोई समाजवादी पार्टी का नाम न ले?"
उनके इस बयान के बाद सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों ने "शेम, शेम!" के जोरदार नारे लगाए.
ऐसा ही एक और मामला 30 जुलाई का है, हरदोई जिले में वकील कनिष्का मल्होत्रा की हत्या कर दी गई. कथित तौर पर संपत्ति विवाद के चलते उनकी हत्या की गई थी.
आरोपियों ने मल्होत्रा की हत्या के लिए कथित तौर पर भाड़े के हत्यारों को बुलाया था. जांच में दावा किया गया कि आदित्यभान सिंह उर्फ उदयभान, पूर्व एसपी जिला अध्यक्ष वीरेंद्र यादव, शिखर गुप्ता और नृपेंद्र त्रिपाठी मुख्य आरोपी थे जिन्होंने मल्होत्रा की हत्या के लिए भाड़े के हत्यारों को बुलाया था. हालांकि, यूपी विधानसभा में बोलते समय सीएम योगी ने केवल वीरेंद्र यादव का नाम लिया.
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने विधानसभा में यादव का हिस्ट्रीशीट पढ़ते हुए कहा, "हरदोई की घटना में विरेंद्र यादव उर्फ वीरे का नाम सामने आया है, ये समाजवादी पार्टी का पूर्व जिलाध्यक्ष है. आप देखो किस प्रकार के व्यक्ति को आप जिलाध्यक्ष बना रहे हैं. IPC और CrPc की कोई धारा नहीं है, जो इसपर न लगी हो. 28 ऐसे मामले हैं. और ऐसा नहीं है कि ये मामले 2017 से 2024 के बीच के हैं. इस पर पहला अपराध दर्ज हुआ था 1989 में, दूसरा है 1991 में और तीसरा 1991 में, चौथा 1991 में पांचवां 1992 में...."
बहुचर्चित गोमतीनगर मामला- जिसमें कुछ लोगों ने मिलकर ताज होटल अंडरपास के पास जलमग्न सड़क पर फंसी एक महिला के साथ छेड़छाड़ किया था, लेकिन मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने दो संदिग्धों के नाम लिए- पवन यादव और मोहम्मद अरबाज. हालांकि, इस मामले में उस समय चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से दो अन्य हिंदू थे और गैर-यादव जाति से आते थे.
बाद में इस मामले में विभिन्न जातियों के लगभग एक दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया.
हालांकि, मुसलमानों के मामले में बीजेपी का रुख सर्वविदित है, लेकिन कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य हुआ है कि इस तरह के बयानों में यादवों को भी निशाना बनाया जा रहा है, खासकर तब जब राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी इस समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है.
क्या बीजेपी गैर-यादव OBC को लुभाने की कोशिश कर रही है?
यादवों को लुभाने के लिए बीजेपी द्वारा उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक 2023 में मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त करना था. उम्मीद के मुताबिक, मोहन यादव ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी के गढ़ सहित उत्तर प्रदेश में कई चुनावी यात्राएं कीं. हालांकि, परिणाम पार्टी के लिए उत्साहवर्धक नहीं रहे, लेकिन यह स्पष्ट था कि केन्द्रीय नेतृत्व की नजर यादव वोट बैंक के एक हिस्से पर थी, जो मोटे तौर पर एसपी के प्रति वफादार रहा है.
हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा जघन्य अपराधों में यादव जाति के आरोपियों के नाम उजागर करने और उन्हें शर्मिंदा करने की रणनीति ने कुछ लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं.
जानकारों का मानना है कि यह गैर-यादव ओबीसी को अपने पाले में लाने और पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) आधार में सेंध लगाने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसे अखिलेश यादव साधने की कोशिश कर रहे हैं. हाल के लोकसभा चुनावों के दौरान अखिलेश यादव की रणनीति काफी हद तक सफल रही, खासकर जिस तरह से एसपी और कांग्रेस ने 'संविधान बचाने' और 'आरक्षण की रक्षा' को मुद्दा बनाया.
द क्विंट से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल ने कहा, "यादवों की संख्या अधिक होने के कारण गैर-यादव ओबीसी को नुकसान उठाना पड़ा है. यादवों को निशाना बनाना गैर-यादव ओबीसी को खुश करना है. जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, कुर्मी, लोध, पटेल और कुशवाह जैसे गैर-यादव ओबीसी हमेशा से महसूस करते रहे हैं कि यादवों को सरकारी नौकरियों में बड़ी हिस्सेदारी मिलती है और डेयरी, खेती, ऑटो-सहायक उपकरण, शोरूम आदि जैसे क्षेत्रों में उनका दबदबा है."
उन्होंने आगे कहा,
"मुसलमानों के साथ यादवों का नाम जोड़ना एक सोची-समझी चाल थी, ताकि अन्य ओबीसी को यह संदेश जाए कि यादवों की पहचान न केवल संख्या में श्रेष्ठ के रूप में है, बल्कि वे आक्रामक और कानून तोड़ने वाले के रूप में भी पहचाने जाते हैं."
क्या इसका आगामी उपचुनावों पर असर पड़ेगा?
यह मुद्दा 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के मद्देनजर काफी अहम माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद सबकी निगाहें सीएम योगी आदित्यनाथ पर टिकी हैं कि वह कैसे पार्टी को दोबारा जीत के ट्रैक पर लाएंगे.
जिन 10 सीटों पर चुनाव होना है, उनमें से पांच- करहल, मिल्कीपुर, कठेहरी, कुंडरी और सीसामऊ- पहले एसपी विधायकों के पास थीं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां व्यक्तिगत रूप से इन सीटों पर तैयारियों का जायजा ले रहे हैं, वहीं कई वरिष्ठ मंत्रियों को भी काम पर लगाया गया है.
सीएम आदित्यनाथ की रणनीति जोखिम भरी है. संभव है कि वे गैर-यादव ओबीसी को वापस अपने पाले में लाने में सफल हो जाएं, जो लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी से दूर हो गए थे. हालांकि, इस चाल से यादव और मुस्लिम पूरी तरह से एसपी-कांग्रेस गठबंधन के समर्थन में एकजुट भी हो सकते हैं. अगर बीजेपी उम्मीद के मुताबिक, गैर-यादव ओबीसी को अपने पाले में करने में नाकाम रहती है, तो उपचुनाव का नतीजा भी लोकसभा चुनाव की तरह हो सकता है.
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