उत्तराखंड में होने वाले अगले विधानसभा चुनावों (Uttarakhand Election 2022) में करीब 6 महीने का वक्त बाकी है, ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है. जहां कुछ महीने पहले तक कांग्रेस अंदरूनी कलह के चलते चुनावों की तरफ देख तक नहीं रही थी और कार्यकर्ताओं का जोश काफी लो था, वहीं अब बीजेपी के कुछ फैसलों ने कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने का काम किया है. उधर आम आदमी पार्टी भी अपनी उम्मीदें तलाशने का काम कर रही है.
कांग्रेस में अंदरूनी घमासान
उत्तराखंड विधानसभा के तमाम समीकरण मौजूदा घटनाक्रम से बदल गए हैं. बीजेपी के पास जो मौका था वो अब ना के बराबर नजर आ रहा है, वहीं अब तक राज्य में सोई हुई कांग्रेस जाग चुकी है. पहले उत्तराखंड कांग्रेस की ही बात कर लेते हैं.
देश के कई राज्यों की तरह कांग्रेस उत्तराखंड में भी गुटबाजी से जूझ रही है. कुछ महीने पहले तक आलम ये था कि कांग्रेस चुनाव को लेकर कुछ भी तैयारी नहीं कर रही थी, कार्यकर्ता और नेता अपने-अपने गुट को लेकर लॉबिंग में जुटे थे. मौजूदा हालात भी ऐसे ही हैं, क्योंकि कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? साथ ही प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को लेकर भी लड़ाई जारी है.
उत्तराखंड कांग्रेस में फिलहाल दो गुट हैं, एक पूर्व सीएम हरीश रावत का गुट और दूसरा प्रीतम सिंह गुट है. दोनों गुट चाहते हैं कि बड़ा पद उनके खेमे के नेता को ही मिले. यही कारण है कि आलाकमान अब तक इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाया है.
हालांकि हरीश रावत को लेकर कांग्रेस पहले से ही अपनी स्थिति साफ कर चुकी है. जब हरीश रावत के खिलाफ कांग्रेस के सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और बाकी बड़े नेताओं ने नाराजगी जताई थी, तब भी पार्टी ने हरीश रावत के लिए इन तमाम नेताओं की कुर्बानी दी थी. अब एक बार फिर हरीश रावत को ही पार्टी का चेहरा बनाया जा सकता है.
बीजेपी ने खुद कांग्रेस को दी संजीवनी
अब पार्टी के भीतर चल रहे विद्रोह से जूझ रही कांग्रेस को बीजेपी ने खुद संजीवनी देने का काम कर दिया है. बीजेपी ने लगातार तीन मुख्यमंत्री देकर कहीं न कहीं ये बताने की कोशिश की है कि जनता त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामकाज और तीरथ सिंह रावत के रवैये से खुश नहीं थी. चुनाव को सामने देख जल्दबाजी में मुख्यमंत्री बदले गए. अब कांग्रेस पार्टी बीजेपी में हुई इस हलचल से अचानक खड़ी हो चुकी है. बताया जा रहा है कि एक बार फिर कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा रहा है और मिशन 2022 की जोरदार तैयारियां शुरू कर दी गई हैं.
कांग्रेस नेताओं को समझ आ चुका है कि ये उनके लिए एक सुनहरा मौका है, जिसे अगर वक्त रहते भुनाया नहीं गया तो बात हाथ से निकल सकती है. इसीलिए बीजेपी की गलतियों को सामने रखकर कांग्रेस एक बार फिर उत्तराखंड में सरकार बनाने के सपने देखने लगी है.
2022 में बीजेपी का क्या हाल?
बीजेपी के पास एक मौका था कि वो उत्तराखंड में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सकते थे. यानी हर बार बदलने वाली सरकार का ट्रेंड खत्म हो सकता था. क्योंकि उत्तराखंड कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को बीजेपी अपने पाले में शामिल कर चुकी थी. लेकिन अब अचानक समीकरण बदल चुके हैं. कांग्रेस से बीजेपी में आए हरक सिंह और सतपाल महाराज जैसे नेताओं को भले ही मंत्री पद से हर बार चुप करा दिया गया हो, लेकिन उनके समर्थकों में कहीं न कहीं गुस्सा है, जो चुनाव में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है.
उत्तराखंड की राजनीति के पक्के खिलाड़ी माने जाने वाले सतपाल महाराज की बात करें तो कांग्रेस में उन्होंने लंबे समय तक सीएम की कुर्सी का इंतजार किया, जब लगा कि नहीं मिल रही तो पाला बदल लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. यहां भी थोड़े इंतजार के बाद लॉबिंग शुरू हो गई, समर्थकों ने हर मौके पर सतपाल महाराज का नाम उछाला, जिसे मीडिया ने भी हाथों हाथ ले लिया. लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस से आए नेताओं को सीएम की कुर्सी से दूर ही रखा.
उधर हरक सिंह रावत जिन्हें उत्तराखंड में काफी तेज तर्रार और मौके की नजाकत समझकर फैसले लेने वाला नेता माना जाता है, वो भी बीजेपी में कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं. उन्होंने पिछले साल ये तक ऐलान कर दिया कि वो 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. इस ऐलान को बीजेपी के खिलाफ उनकी नाराजगी के तौर पर देखा गया.
नए सीएम धामी के पास क्या विकल्प?
अब नए सीएम पुष्कर सिंह धामी भले ही जनता तक पहुंचने का दावा कर रहे हों, लेकिन 6 महीने में पूरे उत्तराखंड की जनता के दिलों तक पहुंच पाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. यानी ये लगभग नामुमकिन है. अगर मुमकिन है तो सिर्फ ये कि धामी लगातार हर वर्ग को लेकर लोक लुभावन योजनाओं की घोषणाएं कर सकते हैं. जिसका संकेत नए सीएम दे चुके हैं. उन्होंने युवाओं के रोजगार की बात कही है, यानी हर क्षेत्र में रोजगार देने के वादों की झड़ियां लगाई जाएंगीं, वहीं पलायन, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर भी एक बार फिर बड़े वादों की लिस्ट देखी जा सकती है. लेकिन कुल मिलाकर जनता ये समझ चुकी है कि बीजेपी राज्य को एक बेहतर नेतृत्व देने में नाकाम रही है. इसीलिए एक बार फिर पहाड़ी राज्य पर चढ़ाई करना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.
उत्तराखंड में AAP फैक्टर कितना कारगर?
उत्तराखंड में इस बार बीजेपी और कांग्रेस ही नहीं बल्कि तीसरी बड़ी पार्टी भी दावेदारी ठोक रही है. आम आदमी पार्टी राज्य की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. उत्तराखंड में अब तक सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस का ही राज था, दोनों दलों को जनता तक पहुंचे बिना ये यकीन होता था कि अगली बार जनता सत्ता की चाबी उनकी ही झोली में डालेगी. लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने बीजेपी-कांग्रेस की मेहनत बढ़ाने का काम किया है. ये दोनों ही दल बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे कि राज्य में किसी तीसरी पार्टी की घुसपैठ हो. क्योंकि चुनाव में AAP दोनों ही पार्टियों का खेल बिगाड़ने का काम कर सकती है.
वहीं आम आदमी पार्टी की बात करें तो पहले तो दिनेश मोहनिया को स्टेट इंचार्ज बनाकर पार्टी ने उत्तराखंड में अपने पैर जमाने की कोशिश की, लेकिन इसके बाद पार्टी ने राज्य की नब्ज पकड़ी और एक ऐसे चेहरे को पार्टी में शामिल किया गया, जो AAP को पहाड़ पर चढ़ाने का काम कर सकता है.
वो नाम है रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल का, जिन्हें आज उत्तराखंड के लगभग हर परिवार में पहचाना जाता है, क्योंकि कोठियाल ने उत्तराखंड के हजारों युवाओं को सेना में भर्ती कराने का काम किया है. इसके लिए वो एक संस्था चलाते हैं, जहां पर बेरोजगार और भटके युवाओं को आर्मी में भर्ती होने की सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और भर्ती रैली में भेजा जाता है.
उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में शायद ही ऐसा कोई गांव होगा, जहां किसी परिवार से लोग सेना में ना हों. सेना से राज्य के लोगों का इसीलिए खास जुड़ाव रहा है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के कर्नल अजय कोठियाल गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. जब तीरथ सिंह रावत को हटाने से ठीक पहले उनके गंगोत्री से उपचुनाव लड़ने की बात सामने आई थी तो आम आदमी पार्टी ने कर्नल कोठियाल को सीएम के खिलाफ चुनाव में उतारने का ऐलान कर दिया था. साथ ही जब तीरथ सिंह रावत को हटाया गया तो भी AAP ने इसे खूब भुनाया और कहा कि कर्नल कोठियाल की चुनौती के बाद बीजेपी डर गई और सीएम ही बदलना पड़ा.
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