बीजेपी नेता और यूपी के सुल्तानपुर से सांसद वरुण गांधी ने सांसदों की सैलरी बढ़ाए जाने का विरोध किया है. गांधी ने मंगलवार को देश में किसानों की समस्या और उनके खुदकुशी के मामलों का जिक्र करते हुए देश के इस तरह के हालात में सांसदों को स्वयं का वेतन बढ़ाने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
वरुण गांधी मंगलवार को लोकसभा में बोल रहे थे. सांसदों की सैलरी बढ़ाए जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसके लिए ब्रिटेन की संसद की तर्ज पर एक बाहरी निकाय बनाया जाना चाहिए, जिसमें सांसदों का हस्तक्षेप नहीं हो.
वरुण गांधी ने कहा, “राजकोष से अपने खुद के फाइनेंशियल कलेक्शन को बढ़ाने का अधिकार हथियाना हमारी प्रजातांत्रिक नैतिकता के मुताबिक नहीं है. इस देश की ज्यादा से ज्यादा अच्छाई के लिए, हमें वेतन निर्धारित करने के लिहाज से संसद सदस्यों से स्वतंत्र एक बाहरी निकाय बनाना होगा. या, अगर हम स्वयं को रेग्युलेटिड करते हैं और देश के हालात और समाज में अंतिम व्यक्ति की आर्थिक स्थितियों पर विचार करते हैं, तो हमें कम से कम इस संसद की अवधि के लिए अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देना चाहिए.”
इंडिपेंडेंट अथॉरिटी तय करे सांसदों की सैलरी
बीजेपी सांसद ने कहा कि ब्रिटेन की संसद में एक इंडिपेंडेंट अथॉरिटी है. संसद सदस्यों से अलग यह निकाय सरकार को सांसदों के वेतन और पेंशन के लिए सलाह देती है, जिसके लिए यह अथॉरिटी लाभार्थियों और जनता दोनों की सिफारिशों को संज्ञान में लेकर सिफारिशों की वैधता और सरकार के सामर्थ्य की जांच करता है. इस तरह का तंत्र हमारे देश में नहीं है, यह दुखद है.
वरुण गांधी ने कहा, ‘महात्मा गांधी ने एक बार लिखा था कि मेरी राय में सांसदों और विधायकों द्वारा लिए जा रहे भत्ते उनके द्वारा राष्ट्र के लिए दी गयी सेवाओं के अनुपात में होने चाहिए.’
ब्रिटेन की तुलना में 400% हुई सैलरी हाइक
सांसद ने कहा, ''पिछले एक दशक में ब्रिटेन के 13 प्रतिशत की तुलना में हमने अपने वेतन 400 फीसदी तक बढ़ाये हैं ,क्या हमने सही में इतनी भारी उपलब्धि अर्जित की है? जबकि हम अपने पिछले दो दशक के प्रदर्शन पर नजर डालें तो मात्र 50 फीसदी विधेयक संसदीय समितियों से जांच के बाद पारित किए गए हैं.
गांधी ने कहा, ‘जब विधेयक बिना किसी गंभीर विचार-विमर्श के पारित हो जाते हैं, तो यह संसद के होने के उद्देश्य को निरर्थक साबित करता है. विधेयक को पारित करने की हड़बड़ी राजनीति के लिए प्राथमिकता दिखाती है, नीति के लिए नहीं. 41 फीसदी बिल सदन में चर्चा के बिना ही पारित किये गये.’
उन्होंने कहा कि कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि सांसदों का वेतन निजी क्षेत्र के अनुरूप होना चाहिए. वे लोग जो निजी क्षेत्र में काम करते हैं वे प्राथमिक रूप से स्वयं के हित के लिए कार्यरत होते हैं. हम सांसद लोग देश सेवा के लिए कार्यरत होते हैं, यह हमारे सपनों का भारत बनाने का एक मिशन है, इन दो उद्देश्यों की तुलना करना सार्वजनिक जीवन के प्रति प्रतिबद्धता को गलत तरीके से समझना है.
वरुण ने उठाया किसानों की आत्महत्या का मुद्दा
वरुण ने कहा, ''वेतन के संबंध में मामलों को बार-बार उठाया जाता है, यह मुझे सदन की नैतिक परिधि के बारे में परेशान करता है. पिछले एक साल में करीब 18,000 किसानों ने आत्महत्या की है. हमारा ध्यान कहां है? '
वरुण ने कहा, ‘कुछ सप्ताह पहले तमिलनाडु के एक किसान ने अपने राज्य के किसानों की पीड़ा को लेकर प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय राजधानी में आत्महत्या का प्रयास किया. पिछले महीने इसी राज्य के किसानों ने अपने साथी किसानों की खोपड़ियों के साथ यहां प्रदर्शन भी किया था. इस सबके बावजूद तमिलनाडु की विधानसभा ने बीती 19 जुलाई को बेरहमी से असंवेदनशील अधिनियम के माध्यम से अपने विधायकों की तनख्वाह को दोगुना कर लिया.’
उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट की पहली बैठक में कैबिनेट के सभी सदस्यों ने तात्कालिक समय में नागरिकों की आर्थिक पीड़ा को देखते हुए छह महीने तक तनख्वाह का लाभ न लेने सामूहिक निर्णय लिया था. वरुण गांधी ने कहा कि साल 1949 में वीआई मुनिस्वामी पिल्लई ने किसानों की पीड़ा को मान्यता देने के लिए 5 रुपये प्रतिदिन की वेतन कटौती का प्रस्ताव मद्रास विधानसभा में रखा था, जिसे विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया था.
बता दें कि विभिन्न दलों के सांसद पिछले कुछ समय से अपना वेतन बढ़ाने की मांग करते रहे हैं. इसी को लेकर बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने चिंता जताई है.
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